गर्भावस्था का समय किसी भी महिला की जिंदगी का सबसे खुशनुमा पल होता है। यह वो एहसास है जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। नौ महीने के लंबे इंतज़ार के बाद अपने दिल के टुकड़े को देखना और गोद में लेना हर माँ के लिए एक अद्भुत अनुभव होता है। हालाँकि ये नौ महीने किसी भी महिला के लिए इतने आसान नहीं होते हैं। इस समय महिलाओं को कुछ छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है। इसलिए, आज इस लेख द्वारा हम महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान ‘क्या करना चाहिए और क्या नहीं’, जैसी ज़रूरी बातों के बारे में जानकारी दे रहे हैं।
गर्भावस्था के चालीस सप्ताहों को तीन भागों में बाँटा गया है, जो कुछ इस प्रकार हैं।
- पहली तिमाही (पहले सप्ताह से बारहवें सप्ताह तक – 1 to 12 weeks)
- दूसरी तिमाही (तेरहवें सप्ताह से छब्बीसवें सप्ताह तक – 13 to 26 weeks)
- तीसरी तिमाही (सत्ताइसवें सप्ताह से चालीसवें सप्ताह तक – 27 to 40 weeks)
अब सवाल यह उठता है कि इन दिनों में क्या करें की महिला और उनके गर्भ में पल रहा शिशु दोनों ही सुरक्षित हों। इसके लिए सबसे पहले तो महिला खुद को और परिजनों को यह समझा दें कि गर्भावस्था कोई बीमारी नहीं है। कई बार ऐसा होता है कि गर्भवती महिलाओं को लोग सहानुभूति की नज़र से देखते हैं और खाने-पीने की चीज़ों में रोक-टोक करते हैं। जो की पूरी तरह सही नहीं है। हालाँकि, इस अवस्था में महिला को अपना ध्यान रखकर थोड़ी सावधानी ज़रूर रखनी चाहिए। इन्हीं कुछ छोटी-छोटी पर महत्वपूर्ण चीज़ों के बारे में हम बता रहे हैं।
पहली तिमाही
यह वक़्त किसी भी महिला के लिए नाज़ुक होता है। पहली तिमाही के पहले महीने के कुछ दिनों बाद महिला को अपने अंदर गर्भावस्था के कुछ शारीरिक लक्षण दिखने लगते हैं। इस दौरान बेहतर है कि पहले महिला प्रेगनेंसी टेस्ट के ज़रिये इसकी पुष्टि करें। इसके साथ-साथ एक बार तसल्ली के लिए अस्पताल जाकर भी जांच ज़रूर करायें ताकि इस खुशख़बरी की पुष्टि हो सके। एक बार जब इस खुशख़बरी पर मुहर लग जाये, तो बारी आती है खुद का और आने वाले नन्हे मेहमान का ध्यान रखने की। अगर महिला को धूम्रपान या शराब पीने की आदत है, तो इसे तुरंत बंद करें क्योंकि यह महिला और शिशु दोनों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
पहली तिमाही के दौरान महिलाएँ ना सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक परिवर्तनों से भी गुज़रती हैं। इस दौरान गर्भ में पल रहे शिशु के हृदय और मस्तिष्क की सरंचना शुरु हो जाती है। इसलिए इस वक़्त खान-पान का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है। इस समय फ़ोलिक एसिड का सेवन करना ज़रूरी होता है। इसके लिए आप संतरा, निम्बू और पालक का सेवन कर सकती हैं (1)। अगर गर्भवती महिला मांसाहारी हैं तो अंडे का सेवन भी कर सकती हैं। इनका सेवन करने से शिशु को जन्मजात दिमागी और रीढ़ की हड्डी की बिमारियों से बचाया जा सकता है। इसके अलावा महिलाओं को इस दौरान जी मचलने या उल्टी की शिकायत होती है, जो कि गर्भावस्था में आम बात है। कई महिलाओं को अनिद्रा की भी शिकायत होती है। सिर्फ शरीरिक ही नहीं बल्कि महिलाओं को मानसिक और भावनात्मक बदलाव का भी सामना करना पड़ता है। इसलिए महिलाओं को गर्भावस्था धारण करने से पहले खुद को न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक तौर से भी तैयार करना होता है।
दूसरी तिमाही –
दूसरी तिमाही के समय महिलाएँ अपने आप में होने वाले बदलावों की आदि हो जाती हैं, हालाँकि यह समय थोड़ा आसान होता है। इस समय भूख बढ़ जाती है और ऐसे में पौष्टिक भोजन करना और अधिक पानी पीना ज़रूरी होता है। यह वो समय होता है जब गर्भ में भ्रूण का शारीरिक विकास शुरू हो जाता है। इस दौरान कैल्शियम और आयरन की दवाइयाँ भी शुरू की जाती हैं। खाने में कैल्शियम, विटामिन और प्रोटीन युक्त आहार लेना गर्भ में पल रहे शिशु के लिए लाभदायक होता है। महिलाएँ कैल्शियम के लिए दही और दूध से निर्मित आहार अपने भोजन में शामिल कर सकती हैं । हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ, सोयाबिन से बने खाद्य पदार्थ और मांसाहारी महिलाएँ अंडे, मछ्ली तथा अन्य मांसाहार का भी सेवन कर सकती हैं। दूसरी तिमाही में डॉक्टर के साथ सलाह-परामर्श करके महिलाएँ हल्के-फुल्के व्यायाम या योगासन भी कर सकती हैं। गर्भावस्था के लिए कुछ विशेष योगासन भी होते हैं, जिससे महिलाओं को मानसिक और शारीरिक तनाव से राहत हो सकती है। लेकिन, इतना ज़रूर ध्यान रखें कि अगर व्यायाम या योग करते समय या उसके बाद थोड़ी सी भी असहजता महसूस हो तो इसे अनदेखा ना करते हुए तुरंत डॉक्टर से परामर्श करें।
तीसरी तिमाही –
यह गर्भावस्था का अंतिम चरण है। गर्भवती महिला और उसके पूरे परिवार को आने वाले नन्हे मेहमान का इंतज़ार होता है। इस समय शरीर में होने वाले शारीरिक बदलाव लगभग पूरे हो चुके होते हैं, लेकिन इस दौरान सावधानी बरतने में थोड़ी भी कमी नहीं होनी चाहिए। कई महिलाओं को सुबह और शाम सैर के लिए कहा जाता है। हालाँकि, यह गर्भावस्था पर निर्भर करता है क्योंकि हर महिला की गर्भावस्था एक जैसी नहीं होती है। किसी को ज़्यादा आराम की ज़रूरत होती है और किसी को ज़्यादा शारीरिक क्रिया की। इसके अलावा महिलाएँ अपने खाने में प्रोटीन युक्त आहार जैसे – दूध, दाल, अंडा शामिल कर सकती हैं (2)। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को तनाव-मुक्त और खुश रहना चाहिए|
इसके साथ-साथ अगर आपको खाने में किसी चीज़ से एलर्जी है तो गर्भावस्था के शुरुआत में ही डॉक्टर से इसके बारे में ज़रूर बात करें। हालाँकि, डॉक्टर गर्भवती महिलाओं को उनके सही डाइट चार्ट के बारे में ज़रूर बताते हैं। अपने पूरे गर्भावस्था के दौरान डॉक्टर से नियमित रूप से जांच ज़रूर कराते रहें।
गर्भावस्था का अनुभव अनमोल है, इसे खुलकर महसूस करें। भले ही इन नौ महीनों में आपको कई शारीरिक और मानसिक उतार-चढ़ावों से गुज़रना पड़े, लेकिन जब महिला अपनी नन्हीं सी जान को गोद में लेगी तो उनका यह एहसास हर दुःख-दर्द को भुला देगा। इसलिए, सकारात्मक सोच और खुश रहकर खुद को और आने वाले शिशु को स्वस्थ रखें।
स्वस्थ महिला तो स्वस्थ गर्भावस्था !