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बच्चों में ब्लड इंफेक्शन (सेप्सिस) के लक्षण व इलाज  | Baccho Me Blood Infection Ke Lakshan

एक स्वस्थ शरीर के लिए इम्यून सिस्टम स्ट्रांग रखना जरूरी माना जाता है। हालांकि, नवजात और छोटे बच्चों की इम्यूनिटी वयस्क लोगों के मुकाबले काफी कमजोर हो सकती है (1)। इस कारण उन्हें कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं। इन समस्याओं में सेप्सिस या सेप्टिसीमिया भी शामिल हो सकता है। यही वजह है कि मॉमजंक्शन के इस लेख में हम छोटे बच्चों में सेप्सिस की समस्या के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। यहां आपको सेप्सिस के कारण, लक्षण व उपचार के साथ-साथ सेप्सिस से बचाव के घरेलू उपायों को जानने का भी मौका मिलेगा।

चलिए, सबसे पहले जानते हैं कि सेप्सिस या सेप्टिसीमिया का मतलब क्या होता है।

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सेप्सिस या सेप्टिसीमिया क्या है?

सेप्सिस एक बीमारी है, जिसमें शरीर बैक्टीरिया या अन्य कीटाणुओं को पनपने का मौका देता है। सेप्सिस या सेप्टिसीमिया को ब्लड पॉइजनिंग, सेप्सिस सिंड्रोम, सिस्टमेटिक एंटी इंफ्लेमेटरी रिस्पांस सिंड्रोम और सेप्टिक शॉक भी कहा जाता है (2) (3) यह किसी भी संक्रमण के कारण से हो सकता है। इनमें फेफड़े का संक्रमण, मूत्र पथ का संक्रमण, त्वचा का संक्रमण या पेट से जुड़ा संक्रमण सबसे सामान्य कारण हो सकता है। बता दें कि सेप्सिस एक खतरनाक स्थिति मानी जा सकती है। इसके उपचार में देरी होने पर यह शरीर के कुछ अंगों को नुकसान पहुंचा कर उन्हें खराब भी कर सकता है (4)

अब जानते हैं कि क्या छोटे बच्चों में सेप्सिस की समस्या हो सकती है या नहीं।

क्या छोटे बच्चों को सेप्सिस हो सकता है?

एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) पर दी गई एक रिपोर्ट के मुताबिक, सेप्सिस विश्व स्तर पर बाल मृत्यु दर का एक बड़ा कारण हो सकता है। विकासशील देशों में बच्चों की सेप्सिस से होने वाली मृत्यु दर 50% से अधिक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों से पता चला है कि बच्चों में 80% मौत का कारण सेप्सिस हो सकता है। आंकड़ों के मुताबिक इन बच्चों की उम्र 4 साल से कम थी (5)। इन आंकड़ों से यह साफ देखा जा सकता है कि छोटे बच्चों में सेप्सिस होने का खतरा अधिक हो सकता है।

आगे बात करते हैं, बच्चों में ब्लड इंफेक्शन के लक्षण या सेप्सिस के लक्षण कैसे पहचाने जा सकते हैं।

बच्चों के ब्लड में इंफेक्शन (सेप्सिस) होने के लक्षण

बच्चों में ब्लड इंफेक्शन के लक्षण या सेप्सिस के लक्षण पहचानने में कभी-कभी मुश्किल हो सकती है। वजह यह है कि इसके कुछ लक्षण आम बीमारियों जैसे:- गैस्ट्रोएंटेराइटिस या सामान्य सर्दी या फ्लू के समान हो सकते हैं। फिर भी सेप्सिस के कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार देखने को मिल सकते हैं (6) (7):

  • दिल की धड़कन का तेज या धीमा होना।
  • तेजी से सांस लेना।
  • सांस लेने में परेशानी होना।
  • तेज दर्द होना या बेचैनी महसूस करना।
  • कंपकंपी वाला बुखार या हाथ-पैर ठंडे होना।
  • बहुत ज्यादा पसीना होना या चिपचिपी त्वचा होना।
  • सूजन के साथ त्वचा का पीला या नीला होना।
  • शरीर के तापमान में बदलाव होना।
  • दौरा आना।
  • पेट के आस-पास सूजन होना।
  • उल्टी होना।

अगर ऊपर बताए किसी भी तरह के लक्षण बच्चों में दिखाई देते हैं या किसी अन्य लक्षण पर शंका होती है, तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें।

आगे जानते हैं, बच्चों के ब्लड में इंफेक्शन के कारण यानी बच्चों में सेप्सिस होने का कारण क्या हो सकता है।

बच्चों के ब्लड में इंफेक्शन के कारण

शिशुओं में सेप्सिस किसी भी संक्रमण, जैसे- वायरल, फंगल, बैक्टीरिया या टिक बोर्न डिजीज (जानवरों के बालों में पाई जाने वाली किलनी) के कारण भी हो सकता है (8) इसके अलावा, निम्नलिखित स्थितियां भी नवजात बच्चों में सेप्सिस का कारण बन सकती हैं, जो मां से जुड़ी हो सकती हैं। ऐसी स्थितियों में शिशु को जन्म के पहले या बाद में इसका खतरा हो सकता है, जैसे (6) :

  • गर्भावस्था के दौरान मां को ग्रुप-बी स्ट्रेप्टोकोकस (बैक्टीरिया संबंधी संक्रमण) होना।
  • जन्म से 18 घंटे पहले पानी की थैली का टूटना।
  • गर्भनाल में संक्रमण होना।
  • जन्म के बाद शिशु की नसों में अधिक समय तक कैथेटर लगा होना।

चलिए, अब जानते हैं शिशुओं में बैक्टीरियल सेप्सिस का निदान कैसे किया जा सकता है।

बच्चों में रक्त संक्रमण का निदान

बच्चों में ब्लड इंफेक्शन के लक्षण का पता लगाने के लिए स्वास्थ्य पेशेवर निम्न स्थितियों की जांच कर सकते हैं, जिसमें शामिल हो सकते हैं (7):

  1. फिजिकल एग्जामिनेशन : इसमें शरीर के तापमान की जांच करना, हृदय गति की दर मापना, सांस लेने की प्रक्रिया और दर की जांच करने के साथ-साथ बच्चे का ब्लड प्रेशर चेक कर सकते हैं।
  1. इमेजिंग टेस्ट : अगर बच्चे को खांसी या सांस लेने में पेरशानी होती है, तो चिकित्सक एक्स-रे की सलाह दे सकते हैं (6)
  1. लैब टेस्ट : बच्चों में सेप्सिस का निदान करने के लिए डॉक्टर बच्चे का ब्लड टेस्ट, यूरिन टेस्ट और रीढ़ की हड्डी के तरल पदार्थ की जांच कर सकते हैं (6)

बच्चों में सेप्सिस के लक्षणों की जांच करने के बाद अगर रिपोर्ट पॉजिटिव आती है, तो डॉक्टर बच्चों में सेप्सिस का उपचार करने की उचित सलाह दे सकते हैं।

इस बीमारी से संबंधित उपचार के बारे में आगे बताया गया है।

बच्चों में सेप्सिस का उपचार

शिशुओं में बैक्टीरियल सेप्सिस का उपचार उसके कारण पर निर्भर कर सकता है। इसके लिए डॉक्टर उपचार के निम्न तरीकों को अपना सकते हैं, जो इस प्रकार हैं (6) :

  • एंटीबायोटिक्स की खुराक देना : 4 सप्ताह से कम उम्र के शिशु में अगर बुखार या अन्य संक्रमण के लक्षण नजर आते हैं, तो इंट्रावेनस इंजेक्शन की मदद से एंटीबायोटिक दवाओं की खुराक दी जा सकती है। एंटीबायोटिक्स की खुराक कितनी और कब तक दी जाएगी यह बैक्टीरिया से प्रभावित हिस्से पर निर्भर कर सकता है।
  • एंटीवायरल दवा का उपयोग करना : अगर बच्चे को संक्रमण किसी वायरस के कारण कारण हुआ है, तो उसका उपचार करने के लिए एंटीवायरल दवाओं का उपयोग किया जा सकता है।
  • बच्चे की स्थिति की जांच करना : कुछ मामलों में बच्चे के स्वास्थ्य की स्थिति की निगरानी करने के लिए उन्हें अस्पताल में भर्ती किया जा सकता है। जहां स्वास्थ्य चिकित्सक उनकी उचित निगरानी कर सकते हैं।

अब जानते हैं, बच्चों में सेप्सिस के घरेलू उपचार क्या हो सकते हैं।

बच्चों में रक्त संक्रमण के घरेलू उपचार

बच्चों में सेप्सिस के घरेलू उपचार के लिए निम्न तरीकों को इस्तेमाल में लाया जा सकता है। साथ ही इसका ध्यान रखें कि यहां बताए गए घरेलू उपचार इसके लक्षणों को कम करने में मदद कर सकते हैं। हालांकि, इन्हें इसका उपचार नहीं माना जा सकता है। चलिए अब इन घरेलू उपचारों के बारे में जानते हैं।

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए विटामिनसी : जैसा कि लेख में बता चुके हैं कि कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण सेप्सिस का जोखिम बढ़ सकता है। ऐसे में शरीर में डैमेज सेल्स की मरम्मत करने इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए विटामिन-सी महत्वपूर्ण हो सकता है। इसके लिए विटामिन-सी से समृद्ध संतरा, कीवी, ब्रोकली, टमाटर व पालक का सेवन किया जा सकता है (9)। वहीं, एक शोध के मुताबिक, विटामिन-सी के एंटीऑक्सीडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण सेप्सिस के उपचार में कुछ हद तक सहायक हो सकते हैं (10)। फिलहाल, इस विषय पर शोध किया जा रहा है।

संक्रमण दूर करने के लिए हल्दी : लेख में बताया गया है कि किसी भी तरह का संक्रमण आसानी से सेप्सिस का कारण बन सकता है। ऐसी स्थिति से बचाव करने के लिए हल्दी के एंटीबैक्टीरियल गुण कारगर हो सकते हैं। यह शरीर को बाहरी संक्रमण से लड़ने और घावों को भरने में भी मदद कर सकता है, जो संक्रमण को फैलने से रोकने में मददगार हो सकता है (11)

वहीं, चूहों पर किए गए एक शोध के मुताबिक, हल्दी में करक्यूमिन नाम का एक खास तत्व पाया जाता है। इस तत्व के कारण हल्दी में एंटी इंफ्लेमेटरी (सूजन कम करने) और एंटीऑक्सीडेंट (फ्री रेडिकल्स को खत्म करने) गुण पाए जाते हैं। हल्दी के ये दोनों गुण संयुक्त रूप से सेप्सिस के कारण होने वाली फेफड़ों की क्षति को ठीक करने में लाभकारी साबित हो सकता है (12) इस आधार पर हल्दी को सेप्सिस के जोखिम को कम करने के लिए उपयोगी माना जा सकता है। यह इंसानों के लिए कितना प्रभावी होगा, इस बारे में अभी कुछ भी स्पष्ट कह पाना मुश्किल है।

सेप्सिस के घरेलू उपचार के लिए लहसुन : लहसुन में पाया जाने वाला एक प्राकृतिक यौगिक सेप्सिस के उपचार में मदद कर सकता है। अध्ययन के मुताबिक, लहसुन का एक प्राकृतिक यौगिक सेप्सिस का कारण बनने वाले सूक्ष्मजीवों को खत्म कर सकता है। साथ ही यह साइटोकिन स्‍टार्म (Cytokine Storm) यानी साइटोकिन प्रोटीन की अधिकता के कारण पैदा होने वाले अतिसक्रिय प्रतिरोधक विकार को कम करने में मदद कर सकता है (13)। लहसुन का कौन-सा गुण इस मामले मददगार होता है, इस बात का अभी कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। इसके बावजूद कुछ हद तक लहसुन में पाए जाने वाले एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटी माइक्रोबियल प्रभावों को इस प्रतिक्रिया के लिए अहम माना जा सकता है। लहसुन के यह गुण किसी भी इंफेक्शन से बचाव करने में मुख्य माने जाते हैं (14)

शहद का इस्तेमाल : शहद के फायदे की बात करें, तो चूहों पर किए गए एक अन्य अध्ययन के मुताबिक, शहद के एंटी-इंफ्लेमेटरी और इम्यूनोमॉड्यूलेटरी गुण सेप्सिस का उपचार करने में मदद कर सकते हैं (15)। इस लिहाज से शहद का इस्तेमाल करना सेप्सिस के इलाज में लाभकारी माना जा सकता है। इस संबंध में इंसानों पर बेहतर प्रभाव जानने के लिए अभी और शोध किए जाने की आवश्यकता है।

आगे बढ़ते हैं और जानते हैं बच्चों में सेप्सिस से होने वाले खतरे क्या हो सकते हैं।

बच्चों को सेप्सिस से होने वाले खतरे

बच्चों में सेप्सिस के कारण होने वाले खतरे निम्नलिखित हो सकते हैं, जिनकी जानकारी नीचे दी गई है (6) (7) :

  • रक्तचाप का स्तर बहुत कम होना
  • शरीर के कई अंगों का काम न करना (ऑर्गेन फेलियर)
  • गंभीर स्थितियों में बच्चे की मृत्यु होना

सेप्सिस के कारण होने वाली इन स्थितियों से बचाव करने के लिए जरूरी है कि समय रहते बच्चे में सेप्सिस के लक्षणों का उपचार कराया जाए, ताकि इसके घातक परिणामों से बचाव किया जा सके।

बच्चों का सेप्सिस से बचाव कैसे करें, इसके लिए आगे जानकारी दे रहे हैं।

बच्चों का सेप्सिस से बचाव कैसे करें

नवजात शिशुओं को बैक्टीरियल सेप्सिस से बचाव करने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए (6):

  • अगर किसी बैक्टीरिया के कारण पिछले प्रसव के दौरान बच्चे में सेप्सिस के लक्षण थे, तो डॉक्टर की सलाह पर गर्भवती महिलाओं को एंटीबायोटिक दवाओं की खुराक लेनी चाहिए।
  • हर्पीज की समस्या होने पर उसका उचित उपचार कराना चाहिए।
  • प्रसव के लिए साफ-सुथरे स्थान का चयन कर सकते हैं।
  • गर्भ की झिल्ली टूटने के 12 से 24 घंटे के अंदर बच्चे को जन्म देना जरूरी हो सकता है। वहीं, सिजेरियन डिलीवरी के विकल्प में यह प्रक्रिया 4 से 6 घंटे के अंदर ही की जानी सुरक्षित हो सकती है।

इसके अलावा, बड़े बच्चों में सेप्सिस से बचाव करने के लिए भी निम्न बातों का ध्यान रखा जा सकता है (7) :

  • स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। शिशु को हमेशा साफ-सुथरे कपड़े पहनाएं। उसके नाखूनों को छोटा रखें।
  • किसी भी तरह के घाव को खुला न रखें। घाव के आसपास की त्वचा को साफ करते रहें। जब तक घाव पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाता, तब तक उसका उपचार करें।
  • साथ ही अगर कोई क्रोनिक समस्या है, तो उसका उचित उपचार कराएं।

एक बात का ध्यान रखें कि अगर बच्चे को किसी तरह का इंफेक्शन हुआ है, तो उसे ज्यादा लोगों से मिलने-जुलने न दें। लोगों के संपर्क में आने से उसका इंफेक्शन बढ़ सकता है।

अब अंत में बात करते हैं कि कब अवस्था में डॉक्टर से मिलने की जरूरत होती है।

डॉक्टर से मिलने कब जाएं

ऊपर बच्चों के ब्लड में इंफेक्शन (सेप्सिस) होने के लक्षण बताए गए हैं। इनमें से एक या एक के साथ अधिक लक्षण दिखाई देने पर, तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए (6)

बच्चों में सेप्सिस या किसी अन्य तरह के संक्रमण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अगर मां या पिता को मौजूदा समय में या पहले कभी सेप्सिस की समस्या हुई थी, तो उन्हें इसके प्रति अपने बच्चे को लेकर सजग रहना चाहिए। इसके लिए जरूरी हो सकता है कि गर्भावस्था के दौरान मां को जरूरी टेस्ट के साथ-साथ उचित टीकाकरण भी मिले। साथ ही एक बात का ध्यान रखें कि किसी भी तरह का संक्रमण आपके बच्चे में सेप्सिस का कारण बन सकता है। इसलिए, बच्चे को संक्रमण के कारकों से बचाए रखने पर जोर दें। इसके अलावा, अगर बच्चे के स्वास्थ्य में किसी भी तरह से सेप्सिस के लक्षण या जोखिम दिखाई देते हैं, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

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