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बच्चों में डायबिटीज (ब्लड शुगर) के संभावित लक्षण । Baccho Me Diabetes Ke Lakshan

आपने अक्सर घर के बुजुर्गों को कहते सुना होगा कि पौष्टिक और संतुलित भोजन बेहतर स्वास्थ्य की कुंजी होता है। वहीं, बिगड़ी आहार शैली और दिनचर्या गंभीर बीमारियों को न्यौता देती है। डायबिटीज भी ऐसी ही गलत आदतों और जीवनशैली का परिणाम है। यहां तक कि कभी-कभी बच्चे भी इसकी चपेट में आ जाते हैं। बच्चों में मुख्य रूप से टाइप-1 डायबिटीज की समस्या देखी जाती है। वहीं, बच्चों में बढ़ते वजन की समस्या और ऐसे ही कुछ अन्य विशेष कारणों से अब युवाओं में टाइप-2 डायबिटीज की समस्या भी तेजी से बढ़ रही है(1)। यही कारण है कि मॉमजंक्शन के इस लेख में हम इस विषय को उठा रहे हैं। लेख में हम आपको बच्चों में डायबिटीज के कारण, लक्षण और इलाज जैसी कई आवश्यक जानकारियां देने वाले हैं। इस समस्या से संबंधित हर पहलू को समझने के लिए जरूरी होगा कि आप लेख को अंत तक पढ़ें।

लेख में आगे बढ़ने से पहले हम उस सवाल का जवाब हासिल कर लेते हैं, जिसका लोगों के मन में आना आम है।

In This Article

क्या बच्चे को शुगर हो सकती है?

जी हां, बच्चों को भी डायबिटीज की समस्या हो सकती है। कुछ विशेष परिस्थितियों और कारणों पर इसके होने की आशंका निर्भर करती है। हालांकि, कई बार इसके कारण का पता लगाना मुश्किल भी हो जाता है।  इस विषय से संबंधित विस्तृत जानकारी हम लेख में आगे बताएंगे (1)

क्या बच्चों में ब्लड शुगर होना आम समस्या है?

भारत की बात की जाए, तो बच्चों में ब्लड शुगर होना बिल्कुल भी आम नहीं है, लेकिन जिस तरह से दिन-ब-दिन यह समस्या तेजी से बढ़ रही है, इस बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है। वर्ष 2018 में इस संबंध में किए गए एक शोध के मुताबिक करीब एक लाख में से 10 बच्चे डायबिटीज टाइप-1 से ग्रस्त पाए गए। वहीं, कुछ शहरी इलाकों में किए गए शोध के मुताबिक एक लाख में से 30 बच्चे टाइप-1 डायबिटीज से जूझ रहे थे (2)। कई लोगों को जानकर हैरानी हो सकती है कि हर साल करीब 10 से 15 हजार बच्चों में डायबिटीज की बीमारी का निदान किया जाता है। मधुमेह अब छोटी उम्र यानी 5 साल से छोटे बच्चों में अधिक पाई जा रही है।

लेख के अगले भाग में हम बच्चों में डायबिटीज के प्रकार के बारे में बता रहे हैं।

बच्चों में डायबिटीज (मधुमेह रोग) के प्रकार

वयस्कों की तरह ही बच्चों में भी शुगर दो प्रकार की होती है (1)

टाइप-1 डायबिटीज

टाइप-1 डायबिटीज में बच्चों का पेनक्रियाज यानी अग्नाशय शरीर के लिए इंसुलिन नहीं बना पाता। दरअसल, इंसुलिन हमारे शरीर के लिए बेहद जरूरी माना गया है। यह खाद्य पदार्थों से मिलने वाली ग्लूकोज या शुगर को कोशिकाओं तक पहुंचाने में सहायता करता है। इससे कोशिकाओं को कार्य करने के लिए ऊर्जा मिलती है, लेकिन इंसुलिन न बन पाने की स्थिति में यह प्रक्रिया प्रभावित हो जाती है। ऐसे में खाद्य पदार्थों से हासिल ग्लूकोज या शुगर खून में ही रह जाता है और डायबिटीज का कारण बनता है।

टाइप-2 डायबिटीज

टाइप-2 डायबिटीज की बात करें, तो डायबिटीज के इस प्रकार में पेनक्रियाज यानी अग्नाशय सही मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पाता या कुछ स्थितियों में बनाता भी है, तो उसे कोशिकाओं तक पहुंचाने के लिए उपयोग नहीं कर पाता। ऐसे में धीरे-धीरे खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है, जो डायबिटीज का एक बड़ा कारण है।

शुगर के प्रकार के बाद लेख के अगले भाग में हम बच्चों के सामान्य शुगर लेवल के बारे में जानेंगे।

बच्चों में शुगर लेवल कितना होना चाहिए?

नीचे हम आईएसपीएडी (ISPAD) के गाइडलाइन्स के अनुसार बच्चों में शुगर की मात्रा के बारे में टेबल द्वारा जानकारी दे रहे हैं (3)

शुगर की मात्राआयु
खाने से पहले
90 से 130 mg/dL (5.0 से 7.2 mmol/L)13 से 19 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिए
90 से 180 mg/dL (5.0 से 10.0 mmol/L)6 से 12 वर्ष तक के बच्चों के लिए
100 से 180 mg/dL (5.5 से 10.0 mmol/L)6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए
सोने से पहले
90 से 150 mg/dL (5.0 से 8.3 mmol/L)13 से 19 वर्ष तक के बच्चों के लिए
100 से 180 mg/dL (5.5 से 10.0 mmol/L)6 से 12 वर्ष तक के बच्चों के लिए
110 से 200 mg/dL (6.1 से 11.1 mmol/L)6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए

लेख के अगले भाग में हम आपको बच्चों में बल्ड शुगर के कारणों के बारे में बताएंगे।

बच्चों में ब्लड शुगर का क्या कारण है?

बच्चों में ब्लड शुगर के कोई भी ठोस कारण सामने नहीं आए हैं, लेकिन कुछ संभावित कारण निम्न प्रकार से हैं, जिन्हें हम टाइप-1 और टाइप-2 के हिसाब से अलग-अलग समझ सकते हैं :

  1. टाइप-1 डायबिटीजऑटोइम्यून प्रतिक्रिया के कारण बीटा कोशिकाओं का नष्ट हो जाना, जो पेनक्रियाज यानी अग्नाशय में इंसुलिन का निर्माण करती हैं (4)
  2. टाइप-2 डायबिटीज– जब पेनक्रियाज यानी अग्नाशय इंसुलिन का निर्माण सही मात्रा में नहीं कर पाते हैं या उसे उपयोग नहीं कर पाते हैं (5)

निम्न कारणों के चलते भी टाइप-2 डायबिटीज हो सकती है (6)

  • आनुवंशिक कारण की वजह से।
  • अधिक वजन कारण।
  • शारीरिक व्यायाम या खेल-कूद में कम भागीदारी की वजह से।
  • अच्छे कोलेस्ट्रोल की कमी के कारण।
  • ट्रिग्लीसिराइड (वसा का एक प्रकार) की अधिक मात्रा की वजह से।

अब हम उन जोखिम कारकों के बारे में जानेंगे, जो बच्चों में डायबिटीज का कारण बनते हैं।

बच्चों में मधुमेह के जोखिम कारक क्या हैं?

बच्चों में डायबिटीज के जोखिम कारण निम्न प्रकार से हैं (1)

  • अधिक वजन या मोटापा।
  • पारिवारिक इतिहास (आनुवंशिक)।
  • कम शरीरिक सक्रियता।

लेख के अगले भाग में हम बच्चों में शुगर के लक्षणों के बारे में बात करेंगे।

बच्चों में शुगर होने के लक्षण

बच्चे में निम्न लक्षण दिखाई देने पर एक बार शुगर की जांच जरूर करवा लें (7)

  • अधिक प्यास लगना।
  • शरीर में पानी की कमी होना (डिहाइड्रेशन होना)।
  • बार-बार पेशाब आना।
  • ज्यादा भूख लगने के बाद वजन कम होना।
  • भूख में कमी आना।
  • नजर का कमजोर होना।
  • मतली और उल्टी।
  • पेट में दर्द।
  • कमजोरी और थकान।
  • चिड़चिड़ापन और मनोदशा में बदलाव।
  • सांस फूलना और तेज सांस लेना।
  • लड़कियों में यीस्ट इन्फेक्शन (Yeast infection) या यूरिन इन्फेक्शन (Urine Infection)।

लक्षण के बाद अब हम आपको बच्चों में शुगर के निदान के बारे में बताएंगे।

बच्चों में मधुमेह का निदान कैसे किया जाता है?

बच्चों में शुगर के निदान के लिए निम्न तरीके अपनाए जा सकते हैं :

  • बच्चों में शुगर का पता लगाने के लिए डॉक्टर आपके बच्चे की प्रतिदिन की गतिविधियों और लक्षणों के बारे में पूछेंगे।
  • आपके बच्चे का शारीरिक परीक्षण भी किया जाएगा।
  • डॉक्टर आपके पारिवारिक इतिहास के बारे में भी पूछ सकते हैं।

उपरोक्त सभी पहलुओं को परखने बाद शुगर है या नहीं इस बात को सुनिश्चित करने के लिए बच्चे का ब्लड टेस्ट किया जाएगा, जो दो चरणों में पूरा होता है (7)

  • फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज– यह टेस्ट करीब 8 घंटे तक कुछ भी न खाने के बाद किया जाता है।
  • रैंडम प्लाज्मा ग्लूकोज– यह टेस्ट प्यास लगना, पेशाब आना और भूख लगना जैसे लक्षण दिखने पर किया जाता है।

वहीं, कई बार ये दो टेस्ट की जरूरत नहीं भी होती है। अगर बच्चे में डायबिटीज के लक्षण हो तो एक ब्लड ग्लूकोज रीडिंग >200mg/dl ही काफी है मधुमेह का निदान करने के लिए।

निदान के बाद लेख के अगले भाग में हम बच्चों में शुगर के इलाज के बारे में बात करेंगे।

क्या बच्चों में मधुमेह का इलाज संभव है?

डायबिटीज बच्चों को हो या बड़ों को, इसे नियंत्रण में रखना बिल्कुल संभव है। शुगर लेवल कम करने वाली दवाओं या इंसुलिन इंजेक्शन की मदद से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अलावा, खान-पान पर विशेष ध्यान देकर और नियमित एक्सरसाइज करके भी इसे नियंत्रित रखने में मदद मिल सकती है। वहीं, समय-समय पर खून और मूत्र की जांच कराने की सलाह भी दी जाती है, ताकि पता चलता रहे कि बच्चे में शुगर का स्तर कितना बना हुआ है (7)। वहीं, इस बीमारी में घर में भी दिनभर में 4 से 5 बार शुगर टेस्ट करके पता किया जा सकता है कि डायबिटीज कण्ट्रोल में है या नहीं। घर में ही शुगर टेस्ट करके इन्सुलिन का डोज भी कम या ज्यादा किया जा सकता है, जिससे कि डायबिटीज जल्द से जल्द कंट्रोल में आए।

लेख के अगले भाग में हम डायबिटीज से ग्रस्त बच्चों के खान-पान से जुडी कुछ जरूरी बातें जानेंगे।

मधुमेह वाले बच्चे को क्या खिलाना है और क्या नहीं?

डायबिटीज में बच्चों को क्या खिलाना चाहिए, क्या नहीं यह जानने के लिए नीचे दिए गए चार्ट पर डालें एक नजर (8)

आहार में शामिल किए जाने वाले खाद्य पदार्आहार जिनसे रहें दूर
    पांच सर्विंग्स में फल और सब्जियां  चीनी युक्त पेय पदार्थ और फलों का जूस
  अधिक फाइबर वाले अनाज और सीरल्स कम फाइबर और उच्च कार्बोहाइड्रेट वाले प्रोसेस अनाज
   प्राकृतिक मिठास वाले खाद्य पदार्थ जैसे:- स्वीट पोटैटो से बना डेजर्ट कैंडीज और अधिक शुगर वाले डेजर्ट व चीनी युक्त खाद्य पदार्थ
      कम वसा युक्त मांस जैसे :- चिकन और मछली                       रेड मीट जैसे :- बीफ
      कम वसा वाले तेल जैसे :- कच्ची घनी सरसों तेल                         अधिक वसा वाले तेल
 फैट कम करने की प्रक्रिया द्वारा पकाया गया खाना जैसे:- बेकिंग, स्टीमिंग और बॉइलिंग               अधिक मक्खन या वसा युक्त खाना
कम वसा युक्त दूध और डेयरी प्रोडक्ट           अधिक वसा युक्त दूध और डेयरी प्रोडक्ट

लेख के अगले भाग में अब हम बच्चों में शुगर के कारण होने वाली जटिलताओं के बारे में बताएंगे।

बच्चों में मधुमेह की जटिलताएं क्या हैं?

ब्लड शुगर की मात्रा अधिक बढ़ जाने पर शरीर कीटोनस का निर्माण करने लगता है। इस अवस्था को केटोएसिडोसिस (Ketoacidosis) कहा जाता है। उचित उपचार न मिलने पर रोगी डायबिटिक कोमा में जा सकता है। वहीं, कुछ स्थितियों में इंसुलिन रिएक्शन की वजह से हाइपोग्लाइसेमिया (ब्लड शुगर कम होना) होने का खतरा भी बन जाता है। शुगर नियंत्रण में न रहने पर आपको कुछ अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं, जिनके बारे में हम आपको नीचे क्रमवार बता रहे हैं (7)

  • नजर का कमजोर होना।
  • किडनी विकार।
  • नसों में शिथिलता।
  • दांत और मसूड़ों से संबंधित समस्याएं।
  • त्वचा और पैरों से जुड़ी समस्याएं।
  • हृदय और ब्लड वेसेल्स से जुड़ी परेशानियां।
  • पैरों में अल्सर।

बच्चों में डायबिटीज से जुडी जटिलताओं को जानने के बाद आप हम इसे होने से रोकने के कुछ उपाय के बारे में बात करेंगे।

क्या आप बच्चों में मधुमेह को होने से रोक सकते हैं?

टाइप-1 डायबिटीज से बचना मुश्किल है, क्योंकि यह आमतौर पर आनुवंशिक समस्या होती है, लेकिन टाइप-2 डायबिटीज को होने से रोका जा सकता है। आइए, कुछ बिन्दुओं के माध्यम से इससे बचाव संबंधी अहम बातें जान लेते हैं (9)

  • अति ज्यादा खाने की आदत को बंद करें।
  • बच्चों की शारीरिक गतिविधियों व व्यायाम पर विशेष ध्यान दें।
  • ध्यान रखें कि बच्चा एक बार में ज्यादा खाने की जगह हर कुछ देर में थोड़ा-थोड़ा खाए।
  • खाना खिलाते वक्त समय का विशेष ध्यान रखें। खाने के लिए उन्हें वक्त दें। जल्दी बिल्कुल भी न करें।
  • जंक फूड्स से दूरी बनाएं।
  • सोडा ड्रिंक्स और स्वीट ड्रिंक्स का इस्तेमाल कम करें।
  • टीवी, वीडियोगेम और कम्प्यूटर पर अधिक समय बिताने न दें।
  • संतुलित आहार, एक्सरसाइज और पोषक खाने को खुद की जिंदगी में भी जगह दें, ताकि आपको देखकर बच्चों में भी यह आदत विकसित हों।

लेख को पढ़ने के बाद अब आप अच्छी तरह समझ गए होंगे कि बच्चों में डायबिटीज की समस्या क्यों होती है और इसके मुख्य कारण क्या-क्या हो सकते हैं। साथ ही लेख में बचाव संबंधी कई तरीके भी सुझाए हैं। इन्हें अपना कर आप इस बीमारी को अपने बच्चे से दूर रख सकते हैं। जरूरत है तो बस इस समस्या में बच्चे की गतिविधियों और खान-पान के प्रति बरती जाने वाली सावधानियों की। वहीं, अगर किसी बच्चे को डायबिटीज हो भी जाती है तो उसका इलाज एक्सपर्ट (Pediatric Endocrinologist) से करवाएं, ताकि शुगर लेवल कंट्रोल में रहे और आगे डायबिटीज में होने वाली जटिलताओं का जोखिम कम हो। उम्मीद है कि यह लेख आपके लिए उपयोगी रहा होगा। ऐसे ही अन्य आर्टिक्ल पढ़ने के लिए विजिट करते रहिए मॉमजंक्शन की वेबसाइट।

References

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1. Diabetes in Children and Teens By Medlineplus
2. Childhood diabetes in India By Ncbi
3. ISPAD Clinical Practice Consensus Guidelines 2018: Glycemic control targets and glucose monitoring for children,adolescents, and young adults with diabetes
4. Type 1 Diabetes By Cdc

5. Type 2 Diabetes By Cdc
6. Type 2 Diabetes By Edu
7. Type 1 Diabetes Mellitus in Children By Edu
8. Type 2 Diabetes and Food Choices By Edu
9. Lifestyle Changes Can Help Kids Prevent Type 2 Diabetes By Edu

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