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नवजात शिशुओं और बच्चों में त्वचा संबंधी रोग (स्किन एलर्जी) | Bacho Ki Skin Allergy

जब घर में नन्हा मेहमान आता है, तो आप उसकी देखभाल में व्यस्त हो जाती है। होना भी चाहिए, क्योंकि शिशु बहुत कोमल होते हैं और उससे भी नाजुक उनकी त्वचा होती है। इसलिए, बेबी की स्किन का ध्यान रखना जरूरी है। कई बार शिशुओं को डायपर रैशेज, एग्जिमा और अन्य समस्याएं होती है। अगर बच्चों की स्किन एलर्जी पर वक्त रहते ध्यान न दिया जाए, तो यह समस्या बढ़ भी सकती है। इसलिए, मॉमजंक्शन के इस लेख में हम बच्चों की स्किन एलर्जी से संबंधित मुद्दे पर बात करेंगे। साथ ही इसके कारण, लक्षण और इलाज भी जानेंगे।

In This Article

बेबी स्किन एलर्जी क्या है? | Bacho Me Skin Allergy

जब शरीर में हिस्टामाइन नामक केमिकल बनने लगता है, तो त्वचा पर एलर्जी हो सकती है (1) एलर्जी कई प्रकार के रैशेज और चकत्ते के रूप में होने लगती हैं। संवेदनशील त्वचा वाले शिशुओं में एलर्जी होने का खतरा ज्यादा हो सकता है। यहां तक ​​कि गंदे डायपर, भोजन, साबुन और डिटर्जेंट से भी एलर्जी का जोखिम बढ़ सकता है।

शिशुओं में त्वचा संबंधी समस्याएं या एलर्जी : कारण, लक्षण और इलाज | Bachon Ki Allergy Ka Ilaj

शिशु की कोमल त्वचा के लिए जरा-सी लापरवाही भी उनके लिए नुकसानदेह हो सकती है। ऐसे में उन्हें स्किन एलर्जी की परेशानी हो सकती है। स्किन एलर्जी शिशुओं में कई प्रकार की होती है। नीचे हम उन्हीं के बारे में आपको विस्तार से जानकारी दे रहे हैं :

1. डायपर रैशेज

शिशुओं में डायपर रैशेज सबसे सामान्य त्वचा संबंधी समस्या है। इसे नैपी रैशेज भी कहते हैं। यह डायपर पहनने की वजह से होता है। शिशु ज्यादातर जन्म के शुरुआती महीनों में इस समस्या से जूझते हैं (2)। कभी-कभी कुछ डायपर के मटेरियल थोड़े कड़क होते हैं, जिस वजह से यह त्वचा के संपर्क में आते ही त्वचा को छिल सकते हैं। जिस कारण शिशु को रैशेज हो सकते हैं।

Image: Shutterstock

कारण :

शिशु में डायपर रैशेज होना सबसे आम है और यह कई वजहों से हो सकता है, जैसे – गीलापन, पेशाब के कारण उच्च पीएच स्तर व नैपी में मौजूद कीटाणु (2)कभी-कभी कुछ नैपी में केमिकल पदार्थ होते हैं, जो डायपर रैशेज का कारण बन सकते हैं।

लक्षण :

  • डायपर रैशेज के कारण शिशु डायपर पहनने में असहजता हो सकता है।
  • शिशु के गुप्तांग और नितंबों पर लाल रैशेज, धब्बे या पैच उभर सकते हैं।
  • शिशु चिड़चिड़े हो सकते हैं या डायपर पहनाने से रोने लग सकते हैं।

इलाज :

  • अपने शिशु के डायपर को हर 4 घंटे में बदलें।
  • अगर शिशु को लंबे वक्त तक के लिए डायपर पहनाकर रखना है, तो पैंट शेप डायपर का चुनाव न करें।
  • जब भी शिशु का डायपर बदलें, तो शिशु के गुप्तांग को गुनगुने पानी से धोएं या पोछें।
  • फिर डायपर पहनाने से पहले शिशु को डायपर रैश क्रीम या नारियल तेल लगाएं, ताकि शिशु को डायपर से जलन या खुजली न हो।
  • ध्यान रहे शिशु के गुप्तांगों पर मॉइस्चराइजर लगाने से पहले त्वचा को हवा लगने दें ताकि वहां की गीली त्वचा सूख जाए।
  • बेबी पाउडर लगाने से बचें, क्योंकि पाउडर से त्वचा और रूखी हो सकती है व शिशु के रैशेज बढ़ सकते हैं।
  • वाइप्स का इस्तेमाल करें, लेकिन ध्यान रहे कि वो केमिकल युक्त न हो, बल्कि प्राकृतिक पदार्थों के मिश्रण से बना हो।
  • अगर डायपर रैशेज ठीक न हो, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क कर, उनके द्वारा लिखी गई मेडिकेटेड क्रीम का उपयोग करें (3)

2. मिलिया

शिशु की त्वचा पर छोटे-छोटे वाइटहेड्स होते हैं, जिसे मिलिया कहा जाता है। यह शिशु के जन्म के कुछ हफ्ते के बाद होते हैं। हालांकि, इससे घबराने की बात नहीं है, क्योंकि यह कभी-कभी एक महीने या कुछ हफ्तों में अपने आप ठीक हो जाते हैं (3)

Image: Shutterstock

कारण :

मिलिया तब होता है, जब मृत त्वचा मुंह या त्वचा की सतह पर छोटे-छोटे टुकड़ों में फंस जाती है। यह नवजात शिशुओं में होना आम हैं (4)

लक्षण

  • सफेद मोती जैसी सूजन होती है।
  • ये गाल, नाक और ठोड़ी पर दिखाई देते हैं।
  • ये मसूड़ों पर आने वाले दांत की तरह भी उभर सकते हैं (4)

इलाज

शिशुओं में इसका इलाज करने जरूरत नहीं होती है, ये वक्त के साथ अपने आप ठीक हो जाते हैं (4)

3. एक्जिमा

यह स्किन रैशेज होता है, जो आमतौर पर शिशु के माथे, गाल या खोपड़ी पर दिखाई देता है। हालांकि, यह हाथ, पैर, छाती या शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है। यह सूखी, पपड़ीदार त्वचा होती है और किसी भी तरह की खरोंच लगने पर संक्रमित होकर छाले या फुंसी का रूप ले सकती है (3)

Image: Shutterstock

कारण

अगर शिशु के परिवार में पहले किसी को एग्जिमा की शिकायत रही हो या किसी को एलर्जी हुई हो, तो शिशु को भी यह समस्या हो सकती है। किसी धातु, कपड़े या ज्यादा गर्मी से अगर शिशु को एलर्जी हो, तो ऐसा हो सकता है (3)। हालांकि, एक्जिमा का अभी तक कोई सही कारण नहीं पता चला है। एक्जिमा वाले कुछ बच्चों में अन्य एलर्जी की स्थिति भी होती है, जिसमें बुखार या अस्थमा शामिल है। जब एक्जिमा के कारण बच्चे की त्वचा सूख जाती है और नाजुक हो जाती है, तो उसमें खुजली होने लगती है। इसे एटॉपिक एक्जिमा, एटॉपिक डर्माटाइटिस, एलर्जिक एक्जिमा भी कहते हैं (5)

लक्षण

  • अगर शिशु की त्वचा पर लाल-लाल सूखी पपड़ी हो और उसे बार-बार खुजली की शिकायत हो, तो यह एग्जिमा हो सकता है ।
  • यह कोहनी, कलाई, गर्दन व घुटनों पर हो सकता है।
  • खुजली की समस्या रात और ज्यादा गर्मी में बढ़ सकती है।

इलाज

एग्जिमा होने से शिशु की उस जगह पर पानी न लगने दें, वरना यह बढ़ सकता है। शिशु के नहाने के पानी में नॉन-एलर्जेनिक तेल मिलाकर उसे नहलाएं। हल्का और नैचुरल मॉइस्चराइजर का उपयोग करें। अगर समस्या ज्यादा बढ़े, तो डॉक्टर से संपर्क करें (3)

4. पित्ती या हाइव्स

पित्ती गुलाबी या लाल चकत्तों जैसे या उभरे हुए पैच होते हैं। ये कभी-कभी रैशेज जैसे भी हो सकते हैं। आमतौर पर पित्ती में खुजली होती है, लेकिन ज्यादा होने पर उनमें जलन या चुभन भी हो सकती है। यह शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है और यह एक जगह पर ज्यादा होकर फैल भी सकती है (6)

Image: Shutterstock

कारण

शिशुओं में यह कई कारणों से हो सकता है जैसे- किसी संक्रमण की वजह से, गाय के दूध की वजह से, किसी खाद्य पदार्थ या दवा की वजह से। हालांकि, शिशुओं में पित्ती की समस्या बच्चों और बड़ों की तुलना में अलग होती है (7)

लक्षण

  • ये हल्के गुलाबी या लाल रंग के चकत्ते की तरह होते हैं (8)
  • ये एक या एक से ज्यादा हो सकते हैं।
  • इनमें खुजली और कभी-कभी जलन या चुभन भी हो सकती है।

त्वचा में सूजन हो सकती है, जो अपने आप ठीक हो सकती या 24 घंटे बाद ठीक होकर शरीर के किसी अन्य जगह पर हो सकती है।

इलाज

डॉक्टर एंटी-हिस्टामाइन दवाइयों से इसका इलाज कर सकते हैं (6)

5. घमौरी

गर्मियों के दिनों में घमौरी बहुत आम है। शिशु भी इस समस्या के शिकार हो जाते हैं। ये छोटे और लाल दाने होते हैं, जो शिशु की गर्दन, पेट, छाती और अन्य अंगों पर हो सकते हैं। यूं तो यह गर्मी के मौसम में होते हैं, लेकिन कभी-कभी ठंड के मौसम में भी यह समस्या हो सकती है, क्योंकि इस मौसम में शिशु ज्यादा कपड़े पहने रहते हैं (3)

Image: Shutterstock

कारण

  • गर्म मौसम घमौरियों का सबसे महत्वपूर्ण कारण है (3)
  • अगर सर्दियों के मौसम में शिशु ज्यादा मोटे कपड़े पहनें हैं और उन्हें लगातार पसीना आए, तो भी घमौरियां हो सकती हैं (3)

लक्षण

हीट रैश या घमौरी होने से शिशु चिड़चिड़े हो जाते हैं और खुजली व जलन से परेशान होकर रोने लगते हैं।

घमौरियां गले, नितम्ब, पेट, सीने और शरीर की अन्य जगहों पर हो सकती हैं (3)

इलाज

घमौरी होने पर शिशु को हल्के कपड़े पहनाएं, खासतौर पर गर्म मौसम में। अगर ज्यादा हो, तो डॉक्टर से सलाह लेकर पाउडर का उपयोग करें और ढीले कपडे पहनाएं (3)

6. मुंहासे

आपको जानकर हैरानी होगी कि बड़ों की तरह शिशुओं को भी मुंहासे हो सकते हैं। ये शिशु के चेहरे पर लाल रैशेज या दाने की तरह होते हैं (3))।

Image: Shutterstock

कारण

यह मां के कुछ हार्मोन के कारण हो सकता है, जो बच्चे के रक्त में रह जाते हैं (9)। यह तब भी हो सकते हैं, जब शिशु के शरीर में हार्मोनल परिवर्तन के कारण त्वचा में तेल ग्रथियां उत्तेजित होती हैं (10)

लक्षण

ये लाल दाने के तरह हो सकते हैं।

इलाज

यह वक्त के साथ खुद-ब-खुद ठीक हो जाते हैं (3)

7. दाद

बड़ों को अक्सर दाद की समस्या हो जाती है, लेकिन कभी-कभी शिशुओं को भी इसका सामना करना पड़ता है। हालांकि, शिशुओं में यह बहुत कम है। अगर उनमें दाद की समस्या होती भी है, तो उसका कारण त्वचा से उच्च मात्रा में सीबम (एक प्रकार का तैलीय पदार्थ) के निकलने के कारण हो सकता है (11)

Image: Shutterstock

कारण

दाद फंगी के कारण होता है, जो आमतौर पर त्वचा, बाल और नाखून में होते हैं और डर्मेटोफाइट्स कहलाते हैं। वो गर्म और नम वातावरण के कारण जरूरत से ज्यादा बढ़ने लगते हैं और दाद के लक्षण दिखने लगते हैं (12)

लक्षण

  • जब त्वचा पर दाद होता है, तो लाल, पपड़ीदार पैच या बंप होने के साथ-साथ, खुजली, जलन व चुभन जैसी समस्या हो सकती है।
  • स्कैल्प पर होने से ये डैंड्रफ और पपड़ीदार होते हैं। कभी-कभी इसमें पस यानी मवाद भी भरी हो सकती है, जिसे केरिओन (kerion) के नाम से जाना जाता है।
  • नाखूनों में होने वाला दाद एक से ज्यादा उंगलियों के नाखूनों को प्रभावित कर सकता है। यह मोटा, सफेद, पीला व नाजुक हो सकता है।

इलाज

  • डॉक्टर के साथ सलाह-परामर्श करने के बाद आप उनकी दी हुई दवा, क्रीम व शैंपू का उपयोग कर सकते हैं।
  • शिशु के कपड़े हर रोज बदलें।
  • उन्हें साफ-सुथरा रखें।

8. पपड़ी (क्रैडल कैप)

शिशु के जन्म के बाद शुरुआती दिनों में यह समस्या आम है। इसे क्रैडल कैप भी कहते हैं। इसमें शिशु के सिर पर पपड़ी जम जाती है। ये सूखी और लाल होती है और इस वजह से शिशु को खुजली की समस्या भी होने लगती है। यूं तो यह अपने आप ठीक हो जाता है, लेकिन कभी-कभी जन्म के तीन महीनों में यह फिर हो सकता है। यह सिर्फ सिर पर ही नहीं, बल्कि शिशु के चेहरे पर, डायपर पहनने की जगह पर, कांख व कानों के पीछे भी दिख सकते हैं। इसे क्रैडल कैप या सेबोरिएक डर्मेटाइटिस भी कहते हैं (3)

Image: IStock

कारण

अभी तक इसका सही कारण पता नहीं चला है, लेकिन डॉक्टरों का मानना है कि जब शिशु के स्कैल्प की तेल ग्रथियां अत्यधिक तेल बनाने लगती हैं, तो ऐसा होता है (13)

लक्षण

  • शिशु के स्कैल्प पर एक पीली या भूरी मोटी परत जम जाती है (13)
  • इसे शिशु के पलकों, नाक या कान पर भी दिखा जा सकता है (13)

इलाज

  • अगर आपके शिशु को क्रैडल कैप यानी पपड़ी की समस्या हुई है, तो आप शिशु के स्कैल्प पर हल्के-हल्के हाथों से मालिश करें।
  • शिशु का सिर हल्के बेबी शैंपू से धोएं।
  • आप चाहें तो सिर धोने से पहले बेबी ऑयल लगा दें और फिर शैम्पू करें।
  • फिर साफ तौलिये से पोंछकर मुलायम ब्रश से बालों को संवारें।
  • जिस ब्रश का उपयोग आप कर रहे हैं, ध्यान रहे कि आप उसे नियमित तौर पर धोकर साफ करें।
  • अगर आप डॉक्टर की सलाह शैंपू का उपयोग करेंगे तो और अच्छा होगा।
  • अगर समस्या ज्यादा हुई और संक्रमण के लक्षण दिखें, तो डॉक्टर एंटीफंगल क्रीम दे सकते हैं।

9. चिकन पॉक्स

यह बचपन में होने वाला सामान्य संक्रमण है, जो वैरिसेला जोस्टर वायरस के कारण होता है (14)। इसमें शरीर पर छाले पड़ जाते हैं (15)

Image: Shutterstock

कारण

  • चिकन पॉक्स वैरिसेला जोस्टर वायरस के वजह से होता है। यह बहुत आसानी से फैलता है, यह छूने से या जिसे चिकन पॉक्स हुआ है, उसके खांसने या छींकने पर उसके साथ जो व्यक्ति है उसे भी हो सकता है।
  • अगर गर्भावस्था के दौरान होने महिला को हुआ हो, तो शिशु को भी हो सकता है या फिर अगर नई मां को हुआ है, तो उससे शिशु को भी हो सकता है।

लक्षण

  • चिकन पॉक्स के लक्षणों की अगर बात करें, तो शिशु को उल्टी, बुखार, सिरदर्द व शरीर में दर्द की समस्या हो सकती है।
  • ऐसे में शिशु ज्यादा रोएगा और बेचैन महसूस करेगा। शरीर पर लाल दाने या छाले होने लगेंगे, जिनमें खुजली की भी शिकायत हो सकती है।

इलाज

  • बेहतर होगा कि आप जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करें और डॉक्टर के कहे अनुसार ही शिशु को दवाई दें।
  • साथ ही ध्यान रहे कि शिशु खुजली न करे (15)
  • उसे हल्के कॉटन के कपड़े पहनाएं (15)

10. खसरा

खसरा संक्रामक रोग है, जिसे रूबेला या मिजिल्स भी कहते हैं (16)। यह एक इंसान से दूसरे इंसान में आसानी से फैलता है (17)

Image: Shutterstock

कारण

  • यह पैरामिक्सोविरिडाए (Paramyxoviridae) परिवार के एक वायरस के कारण होता है (18)। अगर किसी को खसरा हुआ है, तो उसके संपर्क में आने वाला व्यक्ति भी इसका शिकार हो जाता है। ये पीड़ित के खांसने और छींकने के कारण दूसरे व्यक्ति को हो सकता है।

लक्षण

इसके लक्षण तीन से चार दिनों में दिखने लगते हैं। इनके कुछ मुख्य लक्षण हम नीचे बता रहे हैं –

  • बुखार
  • सर्दी-जुकाम
  • कंजक्टिवाइटिस
  • शरीर में दर्द
  • गले में दर्द
  • पूरे शरीर पर लाल रैशेज या चकत्ते हो जाते हैं (17)

इलाज

  • इसके लिए एमएमआर वैक्सीन (MMR vaccine) आती है। अगर शिशु को यह वैक्सीन दिया जाए, तो उसे खसरा होने का खतरा कम हो जाता है।
  • इसके साथ ही बच्चे को ज्यादा से ज्यादा पानी या अन्य पेय पदार्थ भी देते रहें।

बच्चे की त्वचा की देखभाल के लिए टिप्स | Baccho Ki Allergy Ke Upay

दुनिया में कदम रखने वाली नन्ही-सी जान अपनी समस्या बोलकर व्यक्त नहीं कर सकती है। ऐसे में उसकी सही देखभाल होनी जरूरी है। इसलिए, नीचे हम शिशु की त्वचा को स्वस्थ बनाए रखने के लिए कुछ टिप्स दे रहे हैं :

  1. शिशु के कपड़ों को हमेशा एंटीसेप्टिक से धोएं और ज्यादा डिटर्जेंट या साबुन का उपयोग न करें। कभी-कभी साबुन या सर्फ की वजह से भी त्वचा पर एलर्जी हो सकती है।
  1. शिशु को नर्म, ढीले-ढाले और कॉटन के कपड़े पहनाएं।
  1. शिशु को ज्यादा देर धूप में न रखें।
  1. शिशु का डायपर हर कुछ देर में चेक करें और गीला होने पर तुरंत बदलें।
  1. पूरे दिन में एक-दो बार शिशु को बिना डायपर के रहने दें। कई बड़े-बुजुर्गों का मानना है कि शिशु को अगर कुछ देर बिना डायपर के रखा जाए, तो उसके गुप्तांगों में हवा लगती है, जिससे त्वचा पर नमी बनी रहती है और रैशेज से बचाव हो सकता है।
  1. हल्के शैम्पू, नर्म ब्रश और साफ तौलिए का उपयोग करें।
  1. कोशिश करें कि शिशु के लिए हमेशा नैचुरल बेबी प्रोडक्ट का इस्तेमाल करें।
  1. शिशु को कई तरह की बीमारियों से बचाने के लिए उनका टीकाकरण कराना जरूरी है, इसलिए आप डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित टीकाकरण सूची के अनुसार बच्चे का वैक्सीनेशन करवाएं।
  1. जब तक शिशु मां के दूध का सेवन कर रहा है, तब तक मां कुछ ऐसा न खाएं, जिससे शिशु को परेशानी हो। जब शिशु कुछ खाना शुरू करे, तो भी उसके खाने का ध्यान रखें, ताकि वो कुछ ऐसा न खा ले, जिससे उसको एलर्जी हो जाए।

बेबी स्किन एलर्जी का यह लेख उन सभी माता-पिता के लिए है, जिनके शिशु को यह समस्या होती है। आशा करते हैं कि इस लेख में बताई गई बातें आपके काम आएंगी और आप सही वक्त पर इनका उपयोग करेंगे। वक्त रहते इस पर ध्यान देने से और हल्के-फुल्के उपाय करने से बच्चे की परेशानी थोड़ी कम हो सकती है।

References

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  1. Histamine and Skin Barrier: Are Histamine Antagonists Useful for the Prevention or Treatment of Atopic Dermatitis? By NCBI
  2. Diaper dermatitis–an overview By NCBI
  3. Skin care for your baby By NCBI
  4. Milia By Medlineplus
  5. Eczema (atopic dermatitis) By Better Health
  6. Urticaria (Hives) in Children By University of Rochester Medical Centre
  7. Urticaria in infants: a study of forty patients By NCBI
  8. Hives By American Academy of Dermatology
  9. Skin findings in newborns By Medlineplus
  10. Baby acne By Medlineplus
  11. Neonatal Tinea Corporis By NCBI
  12. Ringworm By Kidshealth
  13. Cradle cap By Medlineplus
  14. Facts about chickenpox By NCBI
  15. Chickenpox By Medlineplus
  16. Measles By Medlineplus
  17. Measles By Medlineplus
  18. Measles By NCBI
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