अलिफ लैला - दरजी और बादशाह के कुबड़े सेवक की कहानी

February 5, 2021 द्वारा लिखित

हमेशा की तरह हमारी कोशिश यही रहेगी कि आप लोगों को यह कहानी पसंद आए और इस कहानी से कुछ सीख जरूर मिले, तो इस मजेदार कहानी का नाम है दर्जी और बादशाह के कुबड़े सेवक के हत्या की कहानी।

इस कहानी का बखान करने वाले का नाम है मलिका शहरजाद, जिसने अपनी बहन दुनियाजाद के कहने पर रात को यह कहानी सुनाई थी। इस कहानी की शुरुआत पुराने जमाने के एक दर्जी से होती है। यह दर्जी तातार देश के पास काश नगर में रहता था और वहां कपड़े सिलने की दुकान चलाता था। एक दिन दर्जी अपनी दुकान में कपड़े सिलने में व्यस्त था कि तभी अचानक न जाने कहां से एक कूबड़ व्यक्ति हाथ में बाजा लेकर आता है और दर्जी की दुकान के पास बैठकर गाने लगता है। कूबड़ का गाना सुनकर दर्जी को बहुत मजा आता है और वो खुश होकर कूबड़ से बोलता है, “अगर तुम्हें बुरा न लगे और कोई आपत्ति न हो, तो पास में ही मेरा घर है, वहां मेरे साथ चलो और आराम से गाना-बाजा करो।” दर्जी की बात सुनकर कूबड़ उसके साथ जाने के लिए मान गया और घर तक आ गया।

दर्जी कूबड़ के साथ घर पहुंचा और हाथ-मुंह धोने के बाद अपनी पत्नी जिसका नाम रूपवती था उसे बोला, “मैं एक आदमी को लेकर आया हूं अपने साथ ताकि तुम इसका मधुर गाना सुन सको। यह हमारे साथ खाना भी खाएगा।” पत्नी रूपवती ने भी पति की बात मानकर जल्दी से अच्छा खाना बनाकर परोस दिया। दर्जी और उसकी पत्नी ने खाना खाना शुरू किया और साथ में उस कूबड़ आदमी को भी अपने साथ खाना खाने के लिए बैठाया। दर्जी की पत्नी ने खाने में मछली भी बनाई थी, जिसे कूबड़ ने कांटा निकाले बगैर ही फट से खा लिया, क्योंकि मछली बहुत स्वादिष्ट बनी थी, जिसे देखकर कूबड़ को लालच आ गया था। लालच के मारे उसने काटे के साथ मछली को खा तो लिया, लेकिन उसके बाद कांटा कूबड़ के गले में फंस गया, जिसकी वजह से गले में चुभन और तेज दर्द होने लगा। कूबड़ दर्द के मारे तड़प रहा था और उसको सांस लेने में भी परेशानी होने लगी। उसकी ऐसी हालत देखकर दर्जी और उसकी पत्नी ने कूबड़ के गले से कांटा निकालने की बहुत कोशिश की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। कूबड़ की ऐसी हालत को देखकर दर्जी को यह डर सताने लगा कि अगर इस कूबड़ को कुछ हो गया, तो सैनिक इसकी हत्या के आरोप में मुझे पकड़ लेगी।

घबराहट के मारे दर्जी उस कूबड़ को एक हकीम के पास ले गया। जहां पर दर्जी की मुलाकात हकीम की नौकरानी से हुई। हकीम की नौकरानी को दर्जी ने पांच सिक्के दिए और कहा, “जाकर वह हकीम को कहे कि शीघ्र आकर मेरे दोस्त का इलाज करें।” नौकरानी जल्दी से हकीम को खबर करने गई उतनी ही देर में दर्जी ने कूबड़ की तरफ देखा, तो उसे लगा कि कूबड़ मर गया है। डर के मारे दर्जी ने कूबड़ को सीधा उठाया और हकीम के दरवाजे पर खड़ा करके वहां से भाग गया।

हकीम की नौकरानी ने अपने मालिक को सारी बात बताई जिसे सुनकर हकीम को लगा कि जिसने इलाज से पहले ही पांच सिक्के दिए, वो बहुत धनी होगा और ऐसा इंसान इलाज के दौरान काफी पैसा खर्च करेगा। हकीम हाथ में दीया लिए फौरन नीचे आया और दरवाजा खोला। हकीम के दरवाजा खोलते ही कूबड़ वहीं गिर पड़ा। हकीम ने दीये के प्रकाश में कूबड़ को देखा, तो वो भी उसे मरा हुआ मानकर घबराया और सोचने लगा कि यह बात अगर बादशाह को पता चल गई, तो वो बड़ी मुसीबत में फंस जाएगा।

हकीम ने बादशाह के डर से कूबड़ को एक रस्सी से बांधा और उसे अपने घर के पीछे वाले एक घर के में फेंक दिया। उस घर में रहने वाला शाही पाक शाला में सामान बेचता था। उसके घर में अनाज व घी का भंडार रहता था, जिसे चूहे खा जाते थे। इस कारण उसे नुकसान झेलना पड़ता था। जिस रात हकीम ने कूबड़ को उसके घर फेंका था, उसी रात घर का मालिक सामान को देखने भंडार घर में आया। वहां कूबड़ को देख उसे लगा कि वह चोर है। उसने सोचा कि ये ही सारा सामान चुरा ले जाता है और मैं सोचता था कि चूहों के कारण नुकसान हो रहा है। घर का मालिक चुपचाप एक लाठी लाता है और जोर से कूबड़ के सिर पर मार देता है, जिस कारण कूबड़ जमीन पर गिर जाता है। जब वो पास जाकर देखता है, तो उसे भी लगता है कि वह मर गया है।

कूबड़ को मरा हुआ देखकर घर का मालिक परेशान हो जाता है। परेशानी में वो सोचता है कि उसके हाथों अनजाने में हत्या हो गई, जिसकी वजह से उसे मौत की सजा मिलेगी। यह सोचते-सोचते वह बेहोश हो गया। जब थोड़ी देर बाद उसे होश आया, तो वह अपने आप को बचाने का उपाय सोचने लगा। उसने कूबड़ को उठाया और रात के अंधेरे का फायदा उठाकर बाजार में एक दुकान के दरवाजे के सहारे कूबड़ को खड़ा किया और वहां से अपने घर आकर सो गया।
उस दुकान के पास से एक व्यक्ति गुजर रहता था, जो किसी वैश्या के घर से आ रहा था और नशे में धुत उस कूबड़ से टकरा गया, जिसके कारण कूबड़ जमीन में गिर गया। उस व्यक्ति को लगा कि यह कोई चोर है, जो मुझे लूटने आया था। व्यक्ति ने उस कूबड़ को लात-घूसों से मारा और जोर-जोर से चोर-चोर चिल्लाने लगा। बाजार में सिपाही घूम रहे थे, चोर-चोर की आवाज सुनकर वे वहां आ गए।

कूबड़ को पीटने वाले व्यक्ति से सिपाहियों ने पूछा कि तुम इसे क्यों मार रहे हो। व्यक्ति ने कहा कि यह चोर है, जो यहां छुपकर खड़ा था, ताकि मुझे लूट सके। इसके बाद सिपाहियों ने कूबड़ का हाथ पकड़कर उठाया, तो उन्हें पता चल गया कि वह मर चुका है। सिपाहियों ने फौरन उस व्यक्ति को गिरफ्त में लिया और मरे हुए कूबड़ के शरीर के साथ कोतवाल के सामने पेश किया। सुबह पकड़े गए व्यक्ति और कुबड़े के साथ गश्त के सिपाहियों को भी काजी के सामने पेश किया गया, जहां पर रात का सारा हाल बताया गया।

सारा हाल जानने के बाद काजी ने खुद फैसला नहीं किया, बल्कि पकड़े गए व्यक्ति को बादशाह के सामने पेश किया गया और कहा कि इस व्यक्ति ने कूबड़ को चोर समझकर इतना मारा कि वह मर गया। काजी की बात सुनकर बादशाह ने पूछा कि इस्लामी न्याय व्यवस्था के अनुसार इस अपराध की क्या सजा होती है।
काजी ने बताया, “इस्लामी न्याय के अनुसार इस अपराध की सजा मृत्यु दंड है।” काजी की बात सुनकर बादशाह ने कहा कि फिर तो शरीयत के हिसाब से ही इसे सजा दी जाए।

बादशाह के आदेश एक बड़े चौराहे पर फांसी देने की तैयारियां शुरू हो गई और पूरे शहर में यह बात फैल गई। देखते ही देखते चौराहे पर भीड़ इकट्ठा हो गई। पकड़े गए व्यक्ति को बांध कर लाया गया और कुबड़े के शरीर को भी चौराहे पर रखा गया, ताकि लोग देख सके कि किसकी हत्या हुई है।
जल्लाद ने जैसे ही उसके गले में फंदा डाला, तो शाही पाकशाला में सामान बेचने वाला व्यापारी भीड़ से बाहर निकला और कहने लगा, “कूबड़ को इस व्यक्ति ने नहीं मैंने मारा है, बल्कि मैंने मारा है। इसलिए, इस निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए”। यह सुनकर काजी ने आदेश दिया कि पकड़े गए व्यक्ति की जगह व्यापारी को फांसी दी जाए।

काजी का आदेश पर जल्लाद जैसे ही व्यापारी को फांसी देने लगा, तो भीड़ से हकीम की आवाज आई। हकीम ने कहा, “फांसी व्यापारी को नहीं मुझे लगनी चाहिए, क्योंकि यह कूबड़ मेरे कारण मरा है।” अब काजी ने व्यापारी को छोड़ हकीम को फांसी पर लटकाने का आदेश दिया।

अब व्यापारी के गले में पड़ा फंदा हकीम के गले में था। जल्लाद जैसे ही हकीम को फांसी पर लटकाने लगा, तभी भीड़ में से दर्जी जोर से चिल्लाया। दर्जी ने कहा, “इसमें हकीम की गलती नहीं है, कुबड़े की लाश को मैंने ही हकीम के दरवाजे पर खड़ा किया था।” काजी को दर्जी ने विस्तार से पूरा हाल बताया कि यह कूबड़ मेरे घर पर खाना खा रहा था और उसने कांटे सहित मछली खा ली, जिस कारण कांटा उसके गले में अटक गया था। उसकी हालत खराब होने पर मैं उसे इलाज के लिए हकीम के पास लेकर पहुंचा, लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी। यह देखकर वह बहुत डर गया था। इसलिए, वह कूबड़ की लाश को हकीम के घर के दरवाजे से सटाकर वहां से भाग आया था। दर्जी की सारी बात सुनने के बाद काजी ने कहा, “हत्या तो हुई है, इसलिए इस दर्जी को फांसी पर लटका दो।”

जैसे ही फांसी देने का समय पास आया, तो बादशाह के खास सिपाहियों ने वहां आकर फांसी रुकवा दी और सभी लोगों को बादशाह के दरबार में आने को कहा। दरअसल, कूबड़ बादशाह का विदूषक था, जो उनका मनोरंजन किया करता था। जब एक दिन कूबड़ दरबार में नहीं पहुंचा, तो बादशाह ने सिपाहियों से पूछा कि वो क्यों नहीं आया। सिपाहियों ने कहा कि वो कल शाम मदिरा पीकर निकल गया था और आज शाम चौराहे पर उसकी लाश देखी जहां काजी ने उसकी हत्या के आरोप में एक व्यक्ति को फांसी देने को कहा। अंत में पता चला कि कूबड़ की हत्या दर्जी ने की है।

बादशाह के पास पहुंचने के बाद सभी के बयान दर्ज किए गए। इसके बाद बादशाह ने कहा कि फांसी किसी को भी फांसी नहीं मिलेगी। बादशाह ने आदेश दिया कि इन चारों के बयान इतिहास पुस्तक में दर्ज करवा दिया जाएं। साथ ही बादशाह ने चारों के सामने एक शर्त रखी। बादशाह ने चारों से कहा कि अगर तुम लोग इससे भी रोचक कहानी सुना दोगे, तो तुम्हें प्राणदान दिया जाएगा और अगर नहीं सुना पाए, तो प्राण दंड दिया जाएगा। चारों में से सबसे पहले रात में पकड़े गए व्यक्ति ने कहा कि मुझे एक रोचक और विचित्र कहानी आती है। अगर आपकी आज्ञा हो, तो सुनाऊं। बादशाह ने उसे कहानी सुनाने की अनुमति दी। उस व्यक्ति ने कहानी सुनाना आरंभ किया जिसका नाम था, सिंदबाद जहाजी की कहानी।

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