अलिफ लैला - ईसाई द्वारा सुनाई गई कहानी

February 10, 2021 द्वारा लिखित

बादशाह के कहने पर, ईसाई ने प्राणदंड से बचने के लिए अपनी कहानी शुरू की। ईसाई ने कहा कि ‘मैं मिश्र देश की राजधानी काहिरा का रहने वाला हूं। मेरे पिताजी दलाल थे। जिस वजह से उनके पास काफी धन था। उनकी मृत्यु के बाद मैंने उनके धन से व्यापार शुरू किया। एक दिन मैं अपने व्यापार के लिए अनाज मंडी गया, जहां मुझे एक आदमी मिला, जिसने बहुत अच्छे कपड़े पहने थे। उसने तिल दिखाकर मुझसे पूछा, ‘इसका दाम क्या है?’ मैंने जवाब दिया, ‘सौ रुपए प्रति मन।’ वह बोला, ‘तुम इन्हें अपने तय मूल्य पर बेचो, अगर कोई खरीदार मिल गया तो उसे मेरे पास लेकर आना। मैं फलां सराय में रुका हुआ हूं।’

मैंने आसपास के अन्य कारोबारियों से मोल-भाव किया। उन्होंने कहा कि वे सौ मुद्राएं प्रति मन में सारे तिल खरीदेंगे। माल तुलवाया गया, जो डेढ़ सौ मन निकला। उन्होंने तिल के बदले में मुझे साढ़े सोलह हजार मुद्राएं दी। उन्हें लेकर मैं उस सराय में गया जहां वह आदमी ठहरा था। मैंने मुद्राएं उसके सामने रखी। उसने हिसाब किया और कहा कि ‘इसमें से डेढ़ हजार मुद्राएं तो तुम्हारी ही है, इन्हें तुम ले लो और बाकी के बचे जो पंद्रह हजार मुद्राएं हैं, उन्हें भी तुम्हीं अपने पास रखो। कभी अगर जरूरत पड़ी तो मैं तुमसे मांग लूंगा।’

इतना कहने के बाद वह वहां से अपने शहर की ओर चला गया। उसके बाद तकरीबन एक महीने बाद वह फिर मेरे पास आया और बोला, ‘मेरे पैसे तुम्हारे पास है न।’ मैं चौंका और बोला, ‘रुपया तैयार है, कहो तो मैं अभी दे दूं, लेकिन आप घोड़े से उतरकर पहले कुछ खा-पी लीजिए।’ उसने कहा कि वह जल्दी में है, इसलिए मैं सारे पैसे निकालकर रखूं, वह आकर मुझसे पैसे ले लेगा।

मैंने उसके रुपये निकालकर रख दिए, लेकिन वह वापस नहीं आया। लगभग एक महीने तक उसका इंतजार करने के बाद मैंने उसके पैसों को सुरक्षित तिजोरी में रख दिया। मुझे वह फिर तीन महीने बाद दिखा। मैंने उससे कहा, ‘आकर अपनी रकम ले जाएं।’ उसने हंस कर कहा, ‘जल्दी क्या है, ले लूंगा। मैं जानता हूं कि मेरे पैसे एक ईमानदार व्यक्ति के पास रखे हैं।’ इतना कहकर वह चला गया।

साल भर बाद एक रोज वह फिर दिखा। मैंने उसे रोका और कहा, ‘अब तो अपना पैसा ले ही लीजिए। इन रुपयों को अगर आप किसी काम-काज में लगाते, तो अभी तक आपको कितना लाभ हो जाता। खैर, घर चलिए वहां आराम से खाइए और अपने रुपये ले लीजिए।’ इतना सुनकर वह मेरे साथ मेरे घर चलने को राजी हो गया।

उसके लिए मैंने घर पर भोजन की व्यवस्था की थी। वह भोजन करने बैठ गया। मैंने देखा कि वह बाएं हाथ से खा रहा था। हर काम वह बाएं हाथ से ही करता था। मुझे अजीब लगा, तो मैंने वजह जाननी चाही, लेकिन रुक गया। हमने साथ बैठकर खाना खा लिया। इसके बाद मैंने उसे रकम और अन्य उपहार दिए जो उसने बाएं हाथ से ही लिए।

इतने में मैंने कहा, ‘अगर आप बुरा न मानें तो एक बात पूछूं।’ उन्होंने कहा, ‘हां पूछिए।’ मैं बोला, ‘क्या वजह है कि आप हर काम बाएं हाथ से ही करते हैं और दाहिना हाथ ढके रखते हैं।’ उसने मेरी बात सुनी और लंबी सांस भरी। इसके बाद उसने अपनी कमीज की आस्तीन हटाकर कर अपना दाहिना हाथ दिखाया। मैंने देखा कि उसके दाहिने हाथ की कलाई नहीं थी। यह देख मैं बहुत आश्चर्यचकित हो गया और झिझकते हुए पूछा कि ‘आपकी कलाई कैसे कटी?’ मेरी बात सुनकर वह खुद को संभाल न सका और फूट-फूट कर रोने लगा, फिर वह मुझे अपनी कहानी सुनाने लगा।

उसने बताया कि, वह बगदाद का रहने वाला है। उसके पिता वहां के नामचीन अमीरों में से एक थे। वह मिस्र देश देखना चाहता था। राजधानी काहिरा को देखने की उसकी खास इच्छा थी। जब तक उसके पिता जिंदा थे, उन्होंने उसे मिश्र जाने की अनुमति नहीं दी। उनकी मौत के बाद वह आजाद हो गया और उसने मिश्र जाने का फैसला कर लिया था। उसने बगदाद और मोसिल की बहुत सारी व्यापारी वस्तुएं खरीदी और मिश्र के लिए निकल पड़ा था। काहिरा पहुंच कर वह एक मसरूर नामक सराय (मुसाफिरों की रूकने की जगह) में उतरा। इतनी कहानी सुनाने के बाद वह थोड़ी देर चुप रहा, फिर थोड़ी देर बाद उसने अपनी कहानी जारी रखते हुए कहा, ‘दो-चार दिन बाद मैंने किराए पर गोदाम ले लिया। कुछ सेवक रखे और उनसे काम कराने लगा। मैंने सेवकों से खाना लाने को भी कहा। खाना खाने के बाद मैं शहर देखने के लिए निकल पड़ा।’

‘एक दिन शहर घूमने के बाद अगले दिन फिर मैं तैयार होकर और गठरियों से कुछ थान निकालकर, उनका दाम पता करने के लिए उन्हें बाजार ले गया। मेरे आने की जानकारी पहले से ही लोगों को थी, इसलिए पहले ही कई दलाल वहां मौजूद थे, जिन्होंने मेरे थान व्यापारियों को दिखाए और उन्हें बेच दिया। उसके बाद हर रोज मैं अपना थोड़ा माल ले आता और बाजार में बेचता। घर से बाजार दूर होने के कारण मुझे माल लाने की मजदूरी काफी महंगी पड़ जाती थी। मेरी परेशानी को देखते हुए सभी ने मुझे सलाह दी कि मैं बाजार में बेचने वाला अपना सारा सामान कारोबारियों के दुकान में रखवा दूं। उसके बाद हर ह्फ्ते सिर्फ एक दिन सोमवार या गुरुवार को बाजार आकर व्यापारियों से अपने बिके हुए माल का दाम ले लिया करूं। इससे न सिर्फ रोज की मजदूरी बचेगी, बल्कि समय भी बचेगा। ऐसे में खाली समय में मैं शहर की सुंदरता को देखकर अपना जी बहला सकता हूं।’

‘मैंने उनकी यह बात मान ली और उन्हें अपने घर ले गया। उन्होंने एक ही बार में सारा माल ले लिया और बाजार आ गए। मैंने सारा सामान व्यापारियों के दुकान में रखवा कर उनसे माल की रसीद ले ली। मैंने भी कहा कि हर महीने-महीने आकर माल का दाम ले लिया करूंगा।’ इससे मुझे उनपर विश्वास हुआ और बड़ी ही संतुष्टि मिली। मैंने तो कुछ व्यापारियों से दोस्ती भी कर ली और उनके साथ घूमना-फिरना भी शुरू कर दिया। अब मैं कभी-कभी उनके साथ बाजार जाता और वहां के मोल-भाव को समझता था।

एक रोज मैं एक बदरुद्दीन नाम के व्यापारी की दुकान पर बैठा था। तभी एक सुंदर स्त्री वहां आई, जिसने खूबसूरत कपड़े और जेवर पहने थे। उसके साथ कई सेविकाएं भी थी। वह खूबसूरत स्त्री मेरे पास आकर बैठ गई। मेरे पास उसे बैठा देख मेरा मन किया मैं उसका चेहरा देखूं। मेरे मन की बात वह समझ चुकी थी, इसलिए बहाने से उसने अपने चेहरे नकाब कुछ पल के लिए हटा दिया। मैं उसे देखकर देखता ही रह गया। उसने बदरुद्दीन से हाल-चाल पूछा और फिर एक दरी थान मांगा। उसने एक थान पसंद कर उसकी कीमत पूछी। साथ ही उसने कहा कि ‘मैं कल इसे ले जाऊंगी और दाम भिजवा दूंगी।’

इतने में बदरुद्दीन ने थान की कीमत छह हजार छह सौ रुपए बताई और बोला कि ‘ यह माल इनका है और मैंने इनसे वादा किया है कि इनके माल की कीमत उन्हें मैं आज ही दूंगा। यह मेरा माल नहीं है, इसलिए मैं इसे नहीं दे सकता।’ यह सुनकर उस स्त्री को थोड़ा बुरा लगा और उसने कहा कि ‘‘क्या आप सिर्फ एक दिन नहीं रूक सकते हैं?’ इस पर बदरुद्दीन ने कहा, ‘मेरी मजबूरी समझने की कोशिश करें।’ यह सुनते ही वह नाराज हो गई और उसने थान को फेंक दिया और बोली, ‘तुम व्यापारियों में बिल्कुल सभ्यता नहीं होती है। तुम लोग किसी पर भी भरोसा नहीं करते हो।’ इतना कह कर वह झल्लाई और दुकान से चली गई।

मैं सब देख रहा था। वह थोड़ी ही दूर गई थी कि मैंने उसे आवाज दी और कहा, ‘मैं आपको बिना कष्ट पहुंचाए यह सौदा कर लूंगा आप आईए।’ वह लौट आई। मैंने कहा, ‘आप थान ले जाइए। भले कीमत दीजिए या न दीजिए।’ यह सुनकर वह खुश होकर बोली, ‘भगवान आपको हमेशा खुश रखे।’ इतना कहने के बाद वह थान लेकर वहां से चली गई।

मैं कुछ देर उसके ख्यालों में ही खोया रहा। फिर बदरुद्दीन से पूछा, ‘यह महिला कौन थी?’ उसने बताया कि वह एक व्यापारी की बेटी है, उसके पिता के पास खूब धन था, लेकिन उसके पिता की मृत्यु हो गई। अब यह सारी संपत्ति उसकी है।’ उसके बाद मैं उसकी सोच में डूबा अपने घर आ गया, लेकिन रात भर मुझे उसकी याद आती रही।

अगले दिन मैं फिर बाजार गया और अपने दोस्त बदरुद्दीन की दुकान पर हमेशा की तरह जाकर बैठ गया। तभी मैंने देखा कि वही खूबसूरत स्त्री अपनी सेविकाओं के साथ आ रही है। वह मेरे सामने खड़ी हो गई और बोली, ‘मैं अपने वादे के मुताबिक थान की कीमत चुकाने आ गई हूं।’ मैंने बोला, ‘आपने बेकार ही जल्दी आने का कष्ट उठाया। मुझे आपके वादे पर पूरा भरोसा था।’ वह बोली, ‘लेन-देन खरा होना चाहिए। उसने छह हजार छह सौ मुद्राएं मुझे थमा दी और मेरे पास आकर बैठ गई।’

मैंने बदरुद्दीन की नजरों से बचते-बचाते उसके सामने अपना प्रेम प्रस्ताव रखा। उसने कोई जवाब नहीं दिया और उठ कर चली गई। मुझे लगा कि उसे मेरी यह बात अच्छी नहीं लगी, इसलिए वह चली गई। मैं दुखी होकर दुकान से निकलकर अपने घर की ओर चल पड़ा। मैं थोड़ी ही दूर गया था कि अचानक एक सुनसान गली में मेरी पीठ पर किसी ने हाथ रखा। मैं झटके से पीछे मुड़ा तो देखा मेरे सामने उस महिला की सेविका थी। वह बोली, ‘मेरी मालकिन आपसे मिलना चाहती है और बात करना चाहती है इसलिए वह आपको बुला रही है।’

यह सुनकर मेरा चेहरा खिल गया। मैं झट से उसके साथ चलने को तैयार हो गया। कुछ दूर चलने के बाद मैंने देखा कि वह एक दुकान पर बैठी मेरा इतंजार कर रही थी। जैसे ही मैं उसके पास गया, तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और अपने पास बैठाकर बोली, ‘जो दशा तुम्हारी है वही मेरी भी है, लेकिन बदरुद्दीन के सामने कुछ कहना सही नहीं था।’ उसने कहा, ‘तुम मेरे घर चलो या फिर मुझे अपने घर ले चलो।’ मैंने कहा, ‘मेरा किराए का घर तुम्हारे लायक नहीं है। मुझे ही अपने घर ले चलो।’ उसने कहा, ‘ठीक है कल तुम अमुक गली आना और वहां किसी से भी अमुक व्यापारी का घर पूछना। मैं तुम्हें वहीं मिलूंगी।’

उसके बाद मैं उससे विदा लेकर घर आ गया और रातभर उसके बारे में सोचता रहा। दूसरे दिन सुबह जल्दी उठा और तैयार होकर एक थैली में पचास अशर्फियां लेकर मैं वक्त पर घर से निकला और उसके बताए पते पर पहुंच गया। मैंने एक व्यक्ति से उस स्त्री का पता पूछा। उसने बता दिया और फिर मैंने उसके दरवाजे पर पहुंचकर ताली बजाई। गुलामों ने दरवाजा खोला और बोले, ‘आइए, मालकिन कब से आपका इंतजार कर रही है।’

वह एक खूबसूरत महल में रहती थी। फूलों के बाग, बड़े-बड़े फल लदे ऊंचे पेड़, पक्षियों की चहचहाहट और झरने सभी की सुंदरता देखते ही बन रही थी। वे गुलाम मुझे एक कमरे में ले गए जो बेहद खूबसूरत था। उसमें तरह-तरह के सजावटी सामान थे। थोड़ी देर बाद वह खूबसूरत महिला वहां आई, उसने कीमती कपड़े और जेवर पहन रखे थे। उसे देखकर मैं स्तब्ध रह गया और मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। हम बैठ कर बातें करने लगे और कुछ देर बाद हम दोनों ने साथ में खाना खाया और फिर बातें करने लगे। थोड़ी देर बाद एक गुलाम हाथों में मेवे, फल और शराब लेकर आया। वहीं सेविकाएं मध्यम स्वर में गाना गा रही थी, जिससे माहौल अच्छा था।

इसी तरह पूरी रात खुशी-खुशी में बीत गई। अगली सुबह मैंने पचास अशर्फियों वाली थैली उसके तकिए के नीचे छिपा दी और उससे विदाई का आग्रह किया। वह बोली, ‘फिर कब आओगे?’ मैंने कहा, ‘मैं शाम को दोबारा आऊंगा।’ उसका चेहरा खिल गया। वह दरवाजे तक मुझे छोड़ने आई। ऊंट वाला ऊंट लिए पहले ही मेरा इंतजार कर रहा था। मैं उस पर सवार हुआ और घर के लिए निकल गया। कुछ देर बाद मैं घर पहुंचा और ऊंट वाले से शाम को आने को कहा।

शाम को तय समय पर ऊंट वाला आ पहुंचा। मैंने फिर पचास अशर्फियां अपनी कमर में बांधी और प्रेमिका के घर पहुंचा। वहां मैंने उसके साथ खुशी के वक्त बिताए। उसके बाद पहले दिन की तरह फिर अशर्फियों की थैली वहां छोड़ कर अपने घर को निकल गया। ये सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा। कुछ समय बाद मेरे सारे पैसे खत्म हो गए। इसके बाद मैंने उसके यहां जाना छोड़ दिया। मेरी आर्थिक हालत काफी बुरी हो गई थी। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं।
एक दिन मैं शाही किले के आस-पास घूमने निकला। वहां काफी भीड़ थी और अचानक मैंने देखा कि एक व्यक्ति घोड़े पर सवार होकर आ रहा है। उसकी कमर में पैसों की लंबी थैली लटकी हुई है। संयोगवश उसी समय एक लकड़हारा वहां से गुजरा। उसकी खरोंच से घुड़सवार का नियंत्रण बिगड़ा और वह गिर पड़ा। इस दौरान अशर्फियों से भरी थैली बिल्कुल मेरे करीब आ गई। मेरे मन में लालच आ गया और मैंने झट से थैली को उठाकर छिपा लिया। घुड़सवार ने ऐसा करते हुए मुझे देख लिया और मेरे सिर पर तलवार दे मारी। मैं मना करता रहा कि थैली मैंने नहीं ली है, लेकिन घुड़सवार नहीं माना।

मेरा ऐसा दुर्भाग्य था कि उसी समय वहां पुलिस आ गई। दारोगा ने मुझसे थैली चुराने की बात पूछी। मैंने इंकार कर दिया। इस पर उन्होंने मेरी तलाशी ली। थैली मेरे पास ही मिली। तभी वह घुड़सवार जोर से चिल्लाया, ‘यह थैली मेरी है।’ दारोगा बोला, ‘अगर ऐसा है तो साबित करो। थैली की कुछ पहचान बताओ।’ सवार ने एक खास तरह के सिक्के का नाम लेते हुए कहा कि इसमें ऐसे बीस सिक्के हैं। थैली खोल कर देखा गया, तो ऐसा ही मिला। वास्तव में उसमें बीस सिक्के निकले।

दारोगा समझ गया कि मैंने झूठ बोला है। उसने थैली घुड़सवार को दे दी और मुझे पकड़ कर काजी के सामने पेश किया। काजी ने सब कुछ जानने के बाद मेरा हाथ काट देने की सजा सुनाई। काजी के फैसले का मान रखते हुए मेरा हाथ काट दिया गया। इतने पर काजी बोला, ‘यह तो चोरी की सजा है। इसने जो झूठ बोला है उसकी सजा भी इसे मिलेगी।’ उसने चुनांचे को आदेश दिया कि मेरा एक पैर भी काट दिया जाए। मैं रोने लगा और घुड़सवार से मुझे माफ कर देने की विनती करने लगा। उसे मुझ पर दया आ गई और वह मान गया। उसने काजी से कहा, ‘इतनी सजा काफी है। आप इसके पांव न काटे और इसे जाने दें।’ काजी मान गया।

सवार भला आदमी था। उसने अशर्फियों वाली थैली मेरे हाथों में थमा दी और बोला, ‘तुम शक्ल-सूरत से चोर नहीं मालूम पड़ते। जरूर कोई मुश्किल होगी तभी तुमने ऐसा कदम उठाया है।’ इतना कह कर वह चला गया। वहां मौजूद लोगों को मुझ पर दया आ गई। वे मुझे अपने साथ अपने घर ले गए और इलाज कराया। उन लोगों ने मुझे खाने को भी दिया और मेरे हाथ का इलाज भी किया। उसके कुछ देर बाद मैं अपने घर लौट आया। अकेले घर में मेरा मन नहीं लग रहा था। मैं असहाय महसूस करने लगा। सोचा कि अपनी प्रेमिका के यहां जाऊं, लेकिन मन में डर था कि मुझे ऐसे देख कर वह मुझसे दूर न चली जाए। उसके अलावा मेरा यहां ऐसा कोई नहीं था, जिसके घर मैं जा सकता था। इसलिए किसी तरह गिरते-पड़ते मैं उसके घर पहुंचा।

वहां पहुंच कर मैं चुपचाप एक कमरे में लेट गया। कुछ देर बाद उसे मेरे आने की खबर मिली और वह दौड़ती हुई आई। मैंने अपना कटा हाथ अपने कपड़े में छिपा लिया। उसने पूछा, ‘तुम्हारी यह दशा कैसे हुई?’ मैंने उसके सामने सिर दर्द का बहाना बना लिया।’ वह मेरा झूठ समझ गई और बोली, ‘तुम मुझसे कुछ छुपा रहे हो। तुम्हें कोई और तकलीफ है। सिर्फ सिर दर्द से तुम इतना नहीं तड़प सकते हो।’

मैंने कोई जवाब नहीं दिया और रोने लगा। उसने बोला, ‘तुम मुझे सब सच-सच बताओ वरना मैं समझूंगी कि तुम्हें मुझसे बिल्कुल प्यार नहीं है। अब तक तुमने सिर्फ मेरे साथ प्यार का नाटक किया है।’ यह सुनकर मैं और जोर से रोने लगा। कुछ देर बाद मैंने कहा, ‘प्रियतम मेरा हाल बताने लायक नहीं है। मैं किस मुंह से अपनी हालत तुम्हें बताऊं।’

यह सब सुन कर वह चुप रही और मेरे सिर पर हाथ फेरते रही। इसी तरह काफी वक्त बीत गया। शाम हुई तो उसने मुझसे कहा, ‘चलो खाना खा लो।’ मैंने सोचा मेरा दाहिना हाथ नहीं है, तो मैं खाना कैसे खाऊंगा। इसलिए मैंने कहा कि मुझे भूख नहीं है। वह बोली, ‘बड़े दुख की बात है कि तुम अपना कष्ट मुझसे छिपा रहे हो।’ उसने मुझे शरबत बना कर दी। मैंने बाएं हाथ से शरबत का गिलास लिया और शरबत पीने लगा। थकान और दर्द के कारण मुझे नींद आ गई। मैं बेहोश सा सो गया। मुझे गहरी नींद में सोता देख उसने मेरे दर्द का कारण जानना चाहा। उसने आस्तीन हटाकर देखा तो उसने मेरा दाहिना हाथ कटा हुआ पाया।

कुछ समय बाद मैं जागा तो देखा कि वह मेरे पास उदास बैठी हुई है। वह मेरे सामने यह जाहिर नहीं करना चाहती थी कि उसे मेरे हाथ के बारे में पता चल चुका था। उसने झट से सेवकों को बुलाया और यखनी (एक प्रकार का व्यंजन) तैयार करने को कहा। कुछ देर बाद यखनी मेरे सामने परोसी गई। उसे पीने के बाद मेरे शरीर में ताकत आ गई और मैं वहां से जाने के लिए उठा। तभी प्रेमिका ने मुझे रोका और मुझे अपने पास बैठा लिया। वह बोली, ‘मैं यह जानती हूं कि तुम्हारी यह हालत मेरी वजह से हुई है। इस पश्चाताप के साथ मैं नहीं जी पाऊंगी, इसलिए मेरे जाने के दिन नजदीक ही समझो।’ थोड़ी देर चुप रहने के बाद वह बोली, ‘मैं जैसा कहती हूं तुम वैसा ही करो।’

उसने अपने सेवकों को आवाज दी और मोहल्ले के पुलिस, सिपाहियों और कुछ स्थानीय लोगों को बुलाने को कहा। सभी के आने पर उसने अपना सारा धन और सारी संपत्ति मेरे नाम कर दी और कागज पर सबकी गवाही ले ली और उन्हें विदा कर दिया। उसके बाद मेरी प्रेमिका ने एक संदूक खोला। मैंने देखा, उसमें मेरे द्वारा दी गई सिक्कों की थैलियां जस के तस पड़ी हुई थी। उसने कहा, ‘तुम यह मेरे लिए छोड़कर जाते थे, लेकिन मैंने इन्हें हाथ तक नहीं लगाया है। सब वैसा ही रखा हुआ है।’

उसी दिन वह बीमार पड़ गई। धीरे-धीरे उसकी बीमारी बढ़ती गई और लगभग तीन हफ्ते बाद उसकी मृत्यु हो गई। मैंने विधि-विधान से उसका अंतिम संस्कार किया और उसकी दी हुई सारी संपत्ति लेकर बगदाद आकर बस गया। तुमने जो तिल बेचे थे, वे भी उसी स्त्री के धन से खरीदें हुए तिल थे।

इतना कहने के बाद और अपना किस्सा सुनाने के बाद वह व्यापारी मुझसे बोला, ‘अब तुम जान चुके हो कि मैं बाएं हाथ से क्यों खाता हूं। मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूं, जो तुमने मेरी परेशानी सुनी और मेरा जी हल्का किया। तुम्हारे व्यवहार से मैं बहुत खुश और प्रभावित हूं। मेरे तिलों के जो पैसे मिले है, उन्हें तुम अपने पास ही रख लो।’ फिर उसने कुछ देर बाद कहा, ‘मेरी एक इच्छा है। मैं काफी समय से बगदाद में हूं, इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम मेरी मदद करो और नगर चल कर व्यापार करो। साल में जो भी फायदा होगा उसका आधा तुम मुझसे ले लेना।’ यह सुनने के बाद मैं खुशी के मारे फूला नहीं समाया और बोला, ‘लगता है आपकी कृपा की कोई सीमा नहीं है। पहले ही आपने तिलों के पैसे मुझे दे दिए और अब व्यापार में मुझे हिस्सेदार बना रहे हैं। यह मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात होगी।’

उसके बाद हमने शुभ मुहूर्त देख कर यात्रा शुरू की। बगदाद से कूच करते हुए हमने कई देशों के मुख्य शहरों में व्यापार किया और फिर एक रोज ईरान पहुंचे। उसके बाद वहां से आपकी राजधानी काशगर आए। इस तरह व्यापार करते हुए हमें कई साल हो गए थे। व्यापार करते हुए हमारे पास काफी धन-संपत्ति जमा हो गई थी। उसके बाद उस आदमी ने एक दिन कहा कि ‘अब मैं ईरान में बसना चाहता हूं।’ उसके बाद उसने सारी संपत्ति आधी-आधी बांट दी और हमने खुशी-खुशी एक-दूसरे से विदाई ली। वह ईरान में बस गया और मैं यहां काशगर में रहने लगा।

इतना कहते हुए ईसाई व्यापारी ने अपनी कहानी खत्म की और कहा, ‘ तो मेरी यह कहानी कुबड़े की कहानी से अलग है या नहीं?’ बादशाह ने गुस्से में आंखें चढ़ाते हुए कहा, ‘तुम्हारी कहानी में कोई दम नहीं है, यह बकवास है। मैं उस कुबड़े के बदले तुम चारों को मरवा दूंगा।’ इतने में बादशाह के गुस्से से डरकर मुसलमान व्यापारी आगे बढ़कर बोला, ‘बादशाह एक बार मुझे एक कहानी सुनाने का मौका दीजिए। मुझे पूरी उम्मीद है कि मेरी कहानी आपको जरूर पसंद आएगी।’ बादशाह ने उसे कहानी सुनाने की इजाजत दे दी।

अब मुसलमान व्यापारी ने बादशाह को कौन सी कहानी सुनाई? क्या उसकी कहानी मनोरंजक थी? ये सारी बातें जानने के लिए कहानी का अगला भाग जरूर पढ़ें।

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