अलिफ लैला - सिंदबाद जहाजी की दूसरी समुद्री यात्रा की कहानी

February 5, 2021 द्वारा लिखित

दोस्तों, जैसा कि आप जानते हैं कि पहली यात्रा के दौरान मुझे कितनी परेशानियां झेलनी पड़ी थी तो इस बार मैंने तय किया कि व्यापार यात्रा नहीं करूंगा। अपने नगर में ही सुख से रहूंगा। किंतु ज्यादा दिनों तक ऐसे चल न पाया। मैं बेचैन रहने लगा और फिर काफी सोच-विचार के दोबारा यात्रा करने का फैसला किया। मैंने तरह-तरह की व्यापारिक वस्तुएं मोल लीं और व्यापारी दोस्तों के साथ नई यात्रा का कार्यक्रम बनाया। तय समय पर हम जहाज में सवार हुए और भगवान का नाम लेकर कप्तान ने जहाज का लंगर निकाल दिया।

कई दिनों की यात्रा के दरमियान हम देशों और द्वीपों में गए। वहां व्यापार किया और फिर एक दिन हमारा जहाज हरे-भरे द्वीप के तट पर आ लगा। द्वीप में सुंदर और मीठे-रसीले फलों के कई वृक्ष थे। वहां का वातावरण इतना मोहक था कि हम सैर के लिए उतर गए। द्वीप बहुत खूबसूरत था लेकिन वहां किसी मनुष्य, किसी जीव के कोई नामोनिशान नहीं थे। कई साथी पेड़ों से फल तोड़कर खाने लगे। मैंने एक कोने में बैठकर अपने साथ लाए खाने को निकाला और खाने लगा। खाने के बाद मैंने शराब पी। शराब ज्यादा हो जाने के कारण मैं काफी देर तक वहीं बैठा रहा। मुझे पता भी नहीं चला कि मैं कब सो गया।

अचानक झटके से आंख खुली तो देखा आसपास कोई नहीं था। मैं दौड़ के जहाज की तरफ भागा। जहाज भी नहीं था। मैंने समुद्र में गौर से देखा तो एक जहाज पाल उड़ाता हुआ जाता दिखाई दिया। मैं चिल्लाया लेकिन किसी ने नहीं सुना। मैं इस वीरान द्वीप पर अकेला था। मैं जितना सोचता उतना ज्यादा रोना आता था। मैं छाती पीट-पीटकर रोने लगा। वहां कोई नहीं था जो मुझे सुन पाता। मैं खुद को कोसने लगा कि आखिर क्यों मैंने दोबारा यात्रा का ख्याल मन में आने दिया। पहली यात्रा से मैंने सीख क्यों नहीं ली। काफी देर विलाप के बाद मैं उठा और इधर-उधर घूमने लगा कि कहीं तो कोई सुराग मिले, जिससे बाहर जा पाऊं। मैं पेड़ पर चढ़ा ताकि दूरी तक देख सकूं। लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ।

कुछ देर बाद टापू पर मुझे एक सफेद चीज दिखाई दी। मैंने सोचा करीब जाकर देखता हूं शायद कुछ ठिकाना मिले। वह गुंबदनुमा था लेकिन उसका कोई दरवाजा न था। मैं उस पर चढ़ गया। इतने में अचानक अंधेरा छाने लगा। मैं विचलित हो गया कि अचानक रात कैसे होने लगी, अभी तो उजाला था। मैंने आकाश की ओर देखा और डर गया। मेरा कलेजा मुंह को आ गया। मैंने देखा कि एक विशालकाय पक्षी मेरी ओर तेजी से उड़ता हुआ आ रहा था। मुझे जहाजियों की बात याद आई। मैंने उन्हें कहते सुना था कि रुख पक्षी बड़ा होता है जो अक्सर यात्रा के दौरान मिलता है। मैं समझ गया ये वही है। इतने में वह आया और गुंबदनुमा चीज पर बैठे गया। अब मैं समझ चुका था कि वह मादा रुख का अंडा है, जिसे पक्षी सेने बैठी है।

उसका एक पांव मेरे समीप पड़ गया। उसका नाखून एक बड़े वृक्ष जैसा था। मैंने अपनी पगड़ी खोली और अपने शरीर को उसके नाखून से कस दिया। मैंने सोचा पक्षी उड़कर कहीं तो जाएगा ही उसी के साथ चला जाऊंगा। कुछ देर बाद वह पक्षी उड़ा और इतनी दूर उड़ गया कि धरती मुश्किल से दिखाई पड़ रही थी। मैं बहुत डरा हुआ था। थोड़ी देर बाद वह एक घने जंगल में पहुंचा। मैंने जमीन मिलते ही उसके नाखून में बंधी गांठ खोल दी और उससे अलग हो गया। इतने में रुख ने तपाक से एक अजगर को दबोचा और उसे पंजे में लेकर पलक झपकते उड़ गया।

रुख पक्षी ने जहां मुझे छोड़ा था वहां बहुत नीची एक ढलान घाटी थी। जहां जाना मतलब मौत। मैं अफसोस करने लगा कि मैं यहां क्यों उतरा। मैं मायूस इधर-उधर देखने लगा तभी मैंने देखा कि द्वीप पर बड़े-बड़े असंख्य हीरे बिखरे पड़े हैं। मैं खुश हो गया और अपनी चमड़े की थैली में उन्हें जमा करने लगा। अगले ही क्षण जब कैद होने की बात याद आई तो मैं वापस दुखी हो गया। धीरे-धीरे शाम ढलने लगी। अंधेरा होते ही बहुत सारे अजगर और भयानक सांप बिलों से बाहर निकल आए। मैं डर गया। भाग्यवश एक छोटी सी गुफा दिखी, मैं भागकर उसमें छिप गया और पत्थर से गुफा के मुंह को ढक दिया ताकि कोई सांप अंदर न आ सके। फिर मैंने पास पड़े भोजन को खाया और सोने की कोशिश की। आंखों से नींद गायब थी। रात भर में जान जाने का डर खाता रहा।
रात बीती और सूरज निकला। सांप वापस बिलों में चले गए। मैं बाहर निकला और एक खुली जगह में लेट गया। तभी मेरे पास एक भारी चीज गिरी। मैं डर गया,

आंखें खोली तो देखा एक विशाल मांस गिरा। मैं कुछ समझता इससे पहले ढेरों मांस पिंड बरसने लगे। मैंने किसी तरह जान बचाई और यह सब देखता रहा। फिर मुझे जहाजियों की बात याद आई।

एक बार मैंने जहाजियों को कहते सुना था कि एक द्वीप है जहां बहुत सारे हीरे हैं। लेकिन वहां इतने सांप है कि डर के मारे कोई नहीं जाता। हीरों की आस में व्यापारी द्वीप पर मांस फेंकते हैं जिसे रुख पक्षी खाने पहुंचते हैं और उनमें चिपक कर हीरे भी आ जाते हैं। बाद में जब रुख घोंसले में पहुंचते हैं तो व्यापारी उनके जाने पर घोंसले में से हीरे उठा लेते हैं। मैं वहां से निकलने को लेकर पहले से ही काफी परेशान था। मुझे अब तक कोई रास्ता नहीं मिला था। इतने में मुझे मांस के साथ बाहर निकलने की तरकीब सूझी। मैं भागा और एक विशाल मांस के टुकड़े के साथ खुद को बांध लिया। कुछ देर बाद एक गिद्ध उतरा और उसने मुझसे बंधे मांस के टुकड़े को उठाकर उड़ना शुरू किया। मैंने हीरों वाली चमड़े की थैली जोर से कस ली। गिद्ध ने मुझे पहाड़ की चोटी पर बने घोंसले में पहुंचाया। मैंने झट से खुद को मांस खंड से अलग कर लिया।

तभी पहले से घात लगाए व्यापारियों ने शोरगुल शुरू कर दिया। गिद्ध डरकर उड़ गया। उन व्यापारियों में से एक की निगाह मुझ पर पड़ी। वह मुझे गुस्साई नजरों से ताकने लगा। गिद्ध के जाते ही व्यापारियों का समूह मेरे करीब आया और मुझे घेर लिया। मैंने हाथ जोड़ लिए और बोला, ‘भाईयों आप एक बार मेरी बात सुन लें। मेरी कहानी जानने के बाद आप निश्चित ही मुझ पर तरस खाएंगे और माफ कर देंगे।’ मैंने हीरों से भरी थैली उनके सामने खोल दी और बोला ‘ये सारे आप लोगों को दे दूंगा कृपया मुझ पर रहम करें।’ व्यापारी ने इंकार किया और बोला ये आपके हीरे हैं। मैं इसे नहीं ले सकता। मैंने बहुत जोर दिया। इस पर उन्होंने एक बड़ा हीरा और दो-चार छोटे हीरे उठा लिए।

मैंने उन व्यापारियों के साथ वहां किसी तरह रात बिताई। उन्होंने मुझे विस्तार से यात्रा वृतांत सुनाने को कहा। मैंने भी उत्सुकता से सारी कहानी उन्हें बताई। उन्हें मेरे सौभाग्य पर विश्वास नहीं हो रहा था। दूसरे दिन मैं उन व्यापारियों के साथ रुहा नामी द्वीप पर गया। यहां भी सांप भरे पड़े थे। लेकिन हमें कोई क्षति नहीं हुई। रुहा द्वीप में कपूर के बहुत बड़े-बड़े पेड़ थे। व्यापारी कपूर के पेड़ की टहनियों को छुरी से चीर कर बर्तन रख देते थे। पेड़ का रस उन बर्तनों में जमा हो जाता था जो कपूर कहलाता था।

द्वीप पर एक पशु था, जिसे गैंडा कहते थे। वह भैंस से बड़ा और हाथी से छोटा होता है। उसकी नाक पर एक लंबा सींग होती है, जिसमें सफेद रंग के आदमी की तस्वीर बनी होती है। कहते हैं कि गैंडा अपने सींग को हाथी के पेट में घुसेड़ कर उसे मार डालता है और उसे अपने सींग पर उठा लेता है। हाथी का खून और उसकी चर्बी जिसकी आंखों में पड़ती है वह अंधा हो जाता है। ऐसी स्थिति में रुख पक्षी आता है और मरे हुए गैंडे और हाथी को पंजे में दबाकर उड़ जाता है।
उस द्वीप से होता हुआ मैं अन्य द्वीपों में गया। मैंने अपने हीरों के बदले बहुमूल्य वस्तुएं खरीदी। इस प्रकार कई द्वीपों और देशों से व्यापार करता हुआ बसरा बंदरगाह और फिर बगदाद पहुंचा। मेरे पास इस यात्रा से भी बहुत सारा धन जमा हो गया। मैंने उसमें से निर्धनों को काफी दान किया। अपनी दूसरी सागर यात्रा खत्म करके सिंदाबाद ने हिंदबाद को चार सौ दीनारें देकर विदा किया। मैंने हिंदबाद को कहा कल फिर इसी समय आना मैं तुम्हें अपनी तीसरी यात्रा का वृतांत सुनाउंगा। सभी दोबारा आने के वादे के साथ हंसी-खुशी विदा हुए।

तीसरे दिन समय पर हिंदबाद और अन्य साथी सिंदबाद के घर आ पहुंचे। दोपहर का भोजन करने के बाद सिंदबाद ने तीसरी कहानी शुरू की। तीसरा यात्रा वृतांत पहले दो यात्राओं से कम विचित्र नहीं था। तीसरी यात्रा में क्या हुआ जानने के लिए पढ़ें अगली कहानी:

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