शेखचिल्ली की कहानी : दूसरी नौकरी | Dusri Naukari Story In Hindi

February 25, 2021 द्वारा लिखित

sheikh chilli ki dusri nukari ki story

शेखचिल्ली का काम में मन नहीं लगता था। ऐसे में सही से काम न करने की वजह से शेखचिल्ली के मालिक ने उसे नौकरी से हटा दिया। नौकरी जाने के कारण शेखचिल्ली बहुत दुखी था। अब उसे दूसरी नौकरी चाहिए थी, इसलिए वह दूसरी नौकरी की तलाश करने लगा। नौकरी की तलाश करते-करते एक दिन वह एक सेठ के पास पहुंच गया। उसने सेठ से नौकरी मांगते हुए कहा कि मैं बहुत गरीब हूं। मेरे पास जेब खर्च के भी पैसे नहीं हैं, इसलिए कोई भी काम मुझे चलेगा। बस आप मुझे नौकरी पर रख लें।

वह सेठ बहुत चालाक था, इसलिए वह शेखचिल्ली को नौकरी पर रखने के लिए राजी हो गया। ऐसा करते हुए उसने अपनी एक शर्त भी रखी। उसने शेखचिल्ली से कहा कि मैं तुम्हें नौकरी पर रख लूंगा, लेकिन उसके लिए तुम्हें एक इकरारनामा लिखकर देना होगा। इकरारनामे में यह लिखा जाएगा कि अगर तुम अपने मन से नौकरी छोड़ने की बात करोगे, तो मैं तुम्हारी नाक और कान कटवा दूंगा।

शेखचिल्ली राजी हो गया, लेकिन उसने भी अपनी एक शर्त इकरारनामे में लिखवाने को कही। शर्त यह थी कि अगर सेठ खुद से शेखचिल्ली को नौकरी से निकालेगा, तो शेखचिल्ली उसके नाक और कान कटवा देगा। थोड़ा सोचने-विचारने के बाद सेठ भी शेखचिल्ली की बात पर राजी हो गया।

दोनों के राजी होने के बाद एक इकरारनामा तैयार कराया गया और उसपर दोनों के हस्ताक्षर ले लिए गए, ताकि भविष्य में कोई अपनी बात से न पलट सके। इसके बाद शेखचिल्ली सोने के लिए चला गया।

अगले दिन जब शेखचिल्ली उठा तो उसने देखा कि उसकी दाढ़ी और बाल बहुत बढ़ गए हैं। यह देख उसने दाढ़ी और बाल बनाने की सोची और चूना पानी में पीसकर डाल दिया।

तभी सेठ वहां आया और उस चूने वाले पानी से अपना मुंह धो लिया और सेठ की पत्नी ने भी उससे अपने बालों को धो लिया। नतीजा यह हुआ कि इससे सेठ जी के चेहरे पर खुजली और जलन होने लगी। उसकी पत्नी के भी सारे बाल गिर गए। यह देख सेठ बहुत नाराज हुआ। उसने शेखचिल्ली को डांटते पूछा, “यह क्या है?”

इस पर शेखचिल्ली ने जवाब देते हुए कहा कि मैंने तो इकरारनामे के खिलाफ कोई भी काम नहीं किया है, तो फिर आप मुझ पर क्यों चिल्ला रहे हैं। शेखचिल्ली के इस जवाब पर सेठ शांत हो गया और आगे कुछ नहीं कहा।

अगले दिन शेखचिल्ली नें एक बैग लेकर उसमें पत्थर भर दिए और उसे सेठ के ऑफिस में जाकर रख दिया। यह बैग बिलकुल वैसा ही था, जिसमें सेठ अपनी जरूरी किताबें रखा करता था। जब सेठ ने वो बैग खोला, तो वो उसे देखकर दंग रह गए। बैग में किताबों की जगह पत्थर भरे हुए थे। यह देखकर सेठ के ऑफिस के लोग भी हंसने लगे। इस बात से सेठ को शर्मिंदगी हुई। अब उन्हें यह अंदाजा हो गया था कि जिसे उन्होंने नौकरी पर रखा है, वह चालाक और तेज दिमाग वाला है और वह उनके इकरारनामे वाली योजना का जवाब इस तरह से दे रहा है।

इकरारनामे के मुताबिक, शेखचिल्ली को हर रोज घोड़े को चराकर भी लाना था। एक दिन जब शेखचिल्ली घोड़े को चराने लेकर गया, तो वह खुद एक जगह पर सो गया और घोड़े को अकेले ही चरने के लिए छोड़ दिया। रात को जब शेखचिल्ली सेठ के घर वापस आ रहा था, तो उसे रास्ते में एक सौदागर मिला।

सौदागर ने शेखचिल्ली से घोड़े को बेचने के लिए कहा। शेखचिल्ली और सौदागर के बीच 40 रुपये में सौदा तय हुआ। इस पर शेखचिल्ली ने सौदागर से पैसे लेकर घोड़ा उसे दे दिया, लेकिन घोड़े की पूंछ कट ली।

सौदागर को घोड़ा बेचने के बाद रुपये और घोड़े की कटी हुई पूंछ लेकर शेखचिल्ली सेठ के पास पहुंचा। सेठ के पास पहुंचते ही शेखचिल्ली जोर-जोर से चिल्लाने लगा। सेठ ने जब उसके रोने और चिल्लाने की वजह पूछी, तो शेखचिल्ली ने घोड़े की पूंछ दिखाते हुए कहा, “एक चूहा घोड़े को अपने बिल में खींच ले गया। घोड़े को बचाते हुए बस उसकी यह पूछ मेरे हाथ में रह गई।”

इस बात पर सेठ को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन वो शेख को कुछ नहीं कह पाए। वजह यह थी कि इकरारनामे के मुताबिक, अगर वह शेखचिल्ली को नौकरी से निकालता, तो उन्हें शेखचिल्ली से अपनी नाक-कान कटवानी पड़ती।

इकरारनामे में इस बात का भी जिक्र था कि शेखचिल्ली हर रोज सेठ के घर में जलाने के लिए लकड़ी लेकर आएगा। ऐसे में तय हुए काम के अनुसार, जब शेखचिल्ली लकड़ी लेकर तो आया, लेकिन उसने घर में रखी और लकड़ियों को भी आग लगा दी।

इस दौरान सेठ मंदिर गया था। जब वो वापस आया, तो जला हुआ घर देखकर वो काफी दुखी हो गया। उन्होंने शेखचिल्ली से कहा, “तुमने घर में आग क्यों लगाई? अब मैं तुम्हें नौकरी पर नहीं रखेंगे।”

सेठ की इस बात पर शेखचिल्ली ने उन्हें इकरारनामे की याद दिलाई। सेठ ने तंग आकर अपनी पत्नी से कहा कि इस नौकर ने तो परेशान कर दिया है और मैं चाहकर भी इससे पीछा नहीं छुड़ा पा रहा हूं।

सेठ की परेशानी देखकर उसकी पत्नी सुझाव देती है कि मैं अपने मायके जाने की तैयारी करती हूं। आप मुझे छोड़ने जाने के बहाने मेरे से साथ एक बक्से में सारा समान भरकर यहां से निकल चलिए। फिर हम यहां दोबारा लौटकर नहीं आएंगे और आपको इस नौकर से छुटकारा मिल जाएगा।

जब सेठ और उसकी पत्नी यह बातें कर रहे थे, तो शेखचिल्ली छिपकर उन दोनों की बातें सुन रहा था। वह पहले से ही जाकर उस बक्से में बैठ गया, जिसे सेठ अपने साथ ले जाने वाला था। सुबह होते ही सेठ और उसकी पत्नी बक्सा उठाकर चुपचाप घर से निकल जाते हैं।

घर से निकल कर सेठ सोचते है कि उनका शेखचिल्ली से पीछा छूट गया। तभी शेखचिल्ली को बक्से में बैठे-बैठे पेशाब आ गई और उसने संदूक में ही पेशाब कर दिया। सेठ को लगा कि संदूक के अंदर जो हलवा रखा है, शायद ये उसका घी निकल रहा है।

जब सेठ ने संदूक उतारकर जमीन पर रखा, तो शेखचिल्ली झट से संदूक से बहार निकल आया। उसने सेठ से कहा कि मैं आपका पीछा तब तक नहीं छोडूंगा, जब तक मैं इकरारनामे के अनुसार आपके नाक और कान काट नहीं लेता।

शेखचिल्ली के सामने आने पर सेठ ने शेखचिल्ली से संदूक उठाकर चलने को कहा। शेखचिल्ली ने इसके लिए साफ मना कर दिया। शेख के मना करने पर बेचारे सेठ खुद ही संदूक उठाकर चलने लगे।

जब ससुराल कुछ दूर रह गया, तो सेठ ने शेखचिल्ली से कहा कि जाओ और ससुराल वालों से कह दो कि मैं आया हूं और कुछ दूरी पर बैठा हूं। कोई आकर मुझे यहां से ले जाए।

शेखचिल्ली ने सेठ जी की बात मानते हुए ससुराल जाकर कहा, “सेठ जी बीमार हैं और वो काफी मुश्किल के साथ यहां तक आए हैं। वह यहां से कुछ ही दूरी पर बैठे हैं। कोई जाकर उन्हें ले आओ।”

इस तरह सेठ जैसे-तैसे अपनी ससुराल पहुंच गया। ससुराल में जब खाने का वक्त आया, तो सेठ के सामने बिना तड़के वाली दाल रखी गई। वहीं, शेखचिल्ली को अच्छे पकवान परोसे गए।

इसके बाद रात को सेठ को जब पाखाना लगा तो सेठ जी से शेखचिल्ली ने कहा कि इतनी रात को कहां जाएंगे यहीं जो हांडी रखी है, उसमें पाखाना कर लीजिए। सेठ जी ने शेखचिल्ली की बात मानी और ठीक वैसा ही किया।

सुबह जब सेठ ने शेखचिल्ली को वह हांडी फेंकने को कहा तो शेखचिल्ली ने मना कर दिया। लाचार सेठ खुद ही वो हांडी उठाकर फेंकने चल दिया, लेकिन जैसे ही वो घर की चौखट पर पहुंचा, ठोकर लगने से हांडी छूटकर नीचे गिर गई और आस-पास मौजूद सभी लोगों पर पाखाने के छींटे पड़ गए। इस पर सभी लोग सेठ से दूर होकर थू-थू करते हुए भागे।

कहानी से सीख :

शेखचिल्ली की दूसरी नौकरी कहानी से सीख मिलती है कि अधिक चतुराई कभी-कभी खुद पर भारी पड़ जाती है।

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