तुलसी माता की व्रत कथा | Tulsi Vivah Vrat Katha In Hindi

September 6, 2021 द्वारा लिखित

Tulsi Vivah Vrat Katha In Hindi

प्राचीन काल में एक लड़की का जन्म राक्षस कुल में हुआ, जिसका नाम वृंदा था। दैत्यराज कालनेमी जैसे राक्षस परिवार में पैदा होने के बाद भी वृंदा भगवान विष्णु की पूजा करती थी। जब वृंदा बड़ी हुई, तो उसकी शादी जालंधर नामक दैत्य से हो गई।

जालंधर काफी शक्तिशाली राक्षस था, जिसका जन्म भगवान शिव के तेज के कारण समुद्र से हुआ था। बलवान होने के कारण जालंधर को दैत्यों का राजा बनाया गया। वृंदा से शादी करने के बाद जालंधर की शक्ति और पराक्रम बढ़ता ही गया। उसे किसी भी तरह से हराना मुश्किल था।

जालंधर के बढ़ते अहंकार व आतंक से सभी देवता परेशान थे। जालंधर की बढ़ती ताकत के पीछे उसकी पत्नी वृंदा की विष्णु भक्ति और सतीत्व था। होते-होते जालंधर अपनी शक्ति और अहंकार में चूर होकर स्वर्ग की देवियों पर काबू पाने की कोशिश करने लगा।

इसी दौरान एक बार उसने माता लक्ष्मी को पाने का प्रयास किया, परंतु समुद्र से जन्म लेने के कारण माता लक्ष्मी ने उसे अपना भाई बना लिया। फिर उसकी नजर माता पार्वती पर गई और उन्हें पाने के लिए जालंधर ने मायाजाल बनाया।

अपने मायाजाल से जालंधर ने शिव का रूप धारण किया और माता पार्वती के करीब जाने की कोशिश करने लगा। उसी वक्त मां पार्वती ने उसे पहचान लिया और जब तक जालंधर कुछ समझ पाता वो अदृश्य हो गईं।

जालंधर के इस दुर्व्यवहार से पार्वती जी को काफी गुस्सा आया और इस पूरी घटना के बारे में उन्होंने भगवान विष्णु को बताया। इधर, जालंधर भगवान शिव से पार्वती जी को पाने के लिए कैलाश पर्वत पर युद्ध कर रहा था।

तभी भगवान विष्णु ने जालंधर को सबक सिखाने की ठानी। सभी को पता था कि जालंधर अपनी पत्नी के पूजा-पाठ और सतीत्व की वजह से ही अजेय हुआ है। ऐसे में भगवान विष्णु ने जालंधर को हराने के लिए उसकी पत्नी का पतिव्रत धर्म भंग करने के लिए मायावी चाल चली।

भगवान विष्णु एक साधु का रूप धारण करके वृंदा से वन में मिलने पहुंचे। उनके साथ दो मायावी राक्षस भी थे, जिन्हें देखते ही वृंदा डर गई। तभी भगवान विष्णु ने उन दोनों राक्षसों का वृंदा के सामने ही वध कर दिया। वृंदा ये देख समझ गई ये कोई आम व्यक्ति नहीं है। उसी पल वृंदा ने साधु से अपने पति के बारे में पूछा। साधु बने भगवान ने अपनी मायाशक्ति से दो बंदर प्रकट किए। दोनों बंदरों के हाथों में जालंधर का सिर व धड़ था।

ये देखते ही वृंदा बेहोश हो गई। कुछ समय बाद होश में आने पर वो साधु से अपने पति को दोबारा जिंदा करने की प्रार्थना करने लगी। वृंदा की विनती सुन उसके आंखों के सामने साधु ने अपनी माया से जालंधर के कटे हुए शरीर के हिस्सों को जोड़ दिया और स्वयं उस शरीर में समा गए। वृंदा को जरा सा भी अंदाजा नहीं था कि उसके साथ ऐसा छल किया गया है।

जालंधर का रूप धारण किए विष्णु जी को वृंदा अपना पति समझकर रहने लगी। वृंदा के ऐसा करने से उसका सतीत्व भंग हो गया, जिसके बाद जालंधर कैलाश पर्वत में युद्ध हार गया। जब वृंदा को यह सच पता चला, तो उसने गुस्से में विष्णु भगवान को पत्थर बनने का श्राप दे दिया। इस घटना के बाद वृंदा स्वयं सती हो गई, जिस स्थान पर वह भस्म हुई वहां तुलसी का पौधा प्रकट हुआ।

विष्णु भगवान वृंदा की पति भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा, “हे वृंदा! तुम्हारी पति भक्ति देखने के बाद तुम मुझे प्रिय लगने लगी हो। अब सदैव तुम मेरे साथ तुलसी के रूप में रहोगी। तुम्हारे तुलसी रूप का जो भी व्यक्ति मेरे शालिग्राम के साथ विवाह कराएगा उसे हजार गुना यश व पुण्य प्राप्त होगा। जिस भी मनुष्य के घर तुलसी का वास होगा, उस घर में कभी भी असमय यमदूत नहीं आएंगे।

आगे भगवान ने कहा, “तुलसी के पौधे की पूजा करने वालों को गंगा व नर्मदा में स्नान करने के बराबर पुण्य प्राप्त होगा। संसार में चाहे कोई भी मनुष्य कितना भी दुष्ट क्यों न हो, कितने भी पाप क्यों न किए हों, मृत्यु के दौरान उसके मुंह में तुलसी और गंगा जल अवश्य दिया जाएगा। इससे वह अपने पापों से मुक्त होकर वैकुंठ धाम जाएगा। इसके अलावा जो व्यक्ति तुलसी व आंवला के पेड़ की छाया में पितरों का श्राद्ध करेगा उसके पितरों को मोक्ष मिलेगा।”

कहानी से सीख : छल, कपट या फिर अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने वाले व्यक्ति का विनाश होना तय है।

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