विक्रम बेताल की बाईसवीं कहानी: चार ब्राह्मण भाइयों की कथा

May 25, 2021 द्वारा लिखित

The twenty-second story of Vikram Betal the story of four Brahmin brothers

जब राजा विक्रमादित्य ने एक बार फिर बेताल को पकड़ा, तो उसने हर बार की तरह एक नई कहानी शुरू कर दी। बेताल ने कहानी सुनाते हुए राजा विक्रमादित्य से कहा….

कुसुमपुर नाम के एक नगर में एक ब्राह्मण परिवार रहा करता था। ब्राह्मण के परिवार में चार बेटे और उसकी पत्नी थी। ब्राह्मण अपने परिवार के साथ सुखी-सुखी जीवन बिता रहा था। एक दिन अचानक ब्राह्मण बीमार हो गया और उसकी हालत दिन-ब-दिन खराब होती चली गई। सेहत में सुधार न होने के कारण एक दिन ब्राह्मण की मौत हो गई। ब्राह्मण की मौत के दुख में उसकी पत्नी भी सती हो गई।

ब्राह्मण और उसकी पत्नी की मौत के बाद उनके रिश्तेदारों ने चार लड़कों को अकेला देख उनका सारा धन छीन लिया। पूरी तरह से कंगाल होने पर चारों भाई अपने नाना के यहां रहने चले गए। कुछ दिन तक तो सब ठीक-ठाक चला। बाद में नाना के घर में भी ब्राह्मण के चारों बेटों के साथ बुरा व्यवहार किया जाने लगा।

इस स्थिति को देखते हुए चारो भाइयों ने निश्चय किया कि उन्हें कोई विद्या ग्रहण करनी चाहिए, ताकि लोग उनके माता-पिता की तरह ही उनका भी सम्मान करें। यह सोचकर चारो भाई चारों दिशाओं में अलग-अलग चल दिए। चारों भाइयों ने घोर तपस्या की और फलस्वरूप कुछ विशेष विद्याएं हासिल की।

जब चारों भाई काफी समय बाद मिले, तो उन्होंने एक-दूसरे को खुद के द्वारा हासिल की गई विद्या के बारे में बताया।

एक ने कहा- मैं मरे हुए जीव की हड्डियों पर मांस चढ़ा सकता हूं।

दूसरे ने कहा- मैं मांस पर खाल और बाल बना सकता हूं।

तीसरे ने कहा- मैं मरे हुए जीव के सभी अंगों का निर्माण कर सकता हूं।

चौथे ने कहा- मैं मरे हुए जीव में जान फूंक सकता हूं।

सभी ने बारी-बारी हासिल की गई विद्या का गुणगान किया और एक-दूसरे की विद्या की परीक्षा लेने के लिए जंगल पहुंच गए। जंगल में उन्हें एक मरे हुए शेर की हड्डियां मिली। उन्होंने बिना जाने कि यह किस जीव की हड्डियां हैं, उन्हें उठा लिया।

पहले ने अपनी विद्या से उन हड्डियों पर मांस चढ़ा दिया। दूसरे ने उस पर खाल और बाल पैदा कर दिए। तीसरे ने उस जीव के सभी अंगों का निर्माण कर दिया। अंत में चौथे ने अपनी विद्या का प्रयोग करके शेर में जान फूंक दी। शेर जीवित होते ही चारों भाइयों को मार कर खा गया।

इतना कहते हुए बेताल बोला, “बता विक्रम बता इन चार पढ़े लिखे मूर्ख में सबसे बड़ा मूर्ख कौन था।”

विक्रम ने जवाब देते हुए कहा, “इन चार मूर्ख में सबसे बड़ा मूर्ख चौथा भाई था, जिसने शेर में जान फूंके। वजह यह है कि अन्य ने बिना जाने ही शेर के शरीर का निर्माण किया। उन्हें पता ही नहीं था कि वह किस जीव का निर्माण कर रहे हैं। वहीं, चौथे को अच्छी तरह से पता चल चुका था कि यह शेर का ही शरीर हैं। इसके बावजूद उसने शेर के शरीर में जान डाल दी। यही उसकी सबसे बड़ी मूर्खता का प्रमाण है।”

विक्रम का जवाब सुनकर बेताल बोला, “विक्रम तूने बिल्कुल ठीक जवाब दिया, लेकिन तूने मेरी शर्त तोड़ दी। मैंने कहा था कि अगल तू बोला, तो मैं वापस पेड़ पर चला जाऊंगा। इसलिए तू बोला और मैं चला। इतना कहकर बेताल एक बार फिर वहीं पेड़ पर जाकर लटक जाता है। इसी के साथ चार मूर्ख विक्रम बेताल कहानी समाप्त होती है।

कहानी से सीख:

बुद्धि बिना बल का प्रयोग मूर्खता की पहचान है।

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