विक्रम बेताल की कहानी: ज्यादा पापी कौन - बेताल पच्चीसी

April 19, 2021 द्वारा लिखित

Story of Vikram Betal Who is more sinful - the fourth story of Betal twenty five

बेताल के उड़ने के बाद दोबारा विक्रमादित्य शिंशपा वृक्ष की ओर दौड़े और पेड़ पर उल्टे लटके बेताल को कंधे पर लादकर चल पड़े। इसी बीच एक बार फिर बेताल ने राजा को एक नई कहानी सुनाते हुए कहा –

बहुत समय पहले एक भोगवती नाम की नगरी हुआ करती थी। उस नगरी में राज रूपसेन का राज हुआ करता था। राजा को शादी करने का बड़ा मन था। एक दिन राजा ने अपने चिन्तामणि नाम के तोते से पूछा, “बताओ मेरी शादी किसके साथ होगी।” तोते ने कहा, “मगध की राजकुमारी चन्द्रवाती से।” राजा ने तोते की बात सुनने के बाद एक ज्योतिषी को बुलाकर यही सवाल पूछा। ज्योतिषी ने भी राजा को वही उत्तर दिया, जो तोते ने दिया था।

मगध की राजकुमारी को भी अपने होने वाले वर के बारे में जानने का बड़ा मन था। राजकुमारी ने अपनी मैना मन्जरी से पूछा, “अरे! यह बताओ मेरा विवाह किसके साथ होगा।” मैना ने भी राजकुमारी को राजा रूपसेन से शादी होने की बात बताई। इतना सुनने के बाद दोनों नगर की तरफ से शादी का न्योता एक दूसरे को भेजा गया, जो स्वीकार हो गया। इस तरह राजा रूपसेन और राजकुमारी की शादी हो गई। शादी होने के बाद रानी अपने साथ मैना को भी लेकर आई। राजा ने अपने तोते से मन्जरी मैना की शादी करवा दी और दोनों को एक ही पिंजरे में रख दिया।

एक दिन किसी बात को लेकर मैना और तोते के बीच में बहुत बहस होने लगी। मैना गुस्से में कहने लगी, “पुरुष पापी, धोखेबाज और अधर्मी होते हैं।” फिर गुस्साएं तोते ने कहा, “स्त्री लालची, झूठी और हत्यारी होती हैं।” दोनों के बीच का झगड़ा इतना बढ़ गया कि यह बात राजा तक पहुंच गई। राजा ने दोनों से पूछा, “क्या हुआ, तुम दोनों क्यों लड़ रहे हो।” मैना ने झट से कह दिया कि महाराज, आदमी बहुत बुरे होते हैं और फिर सीधे कहानी सुनाने लग गई।

सालों पहले इलाहापुर नगरी में महाधन नाम का सेठ रहता था। उस सेठ के घर शादी के कई सालों बाद एक लड़का पैदा हुआ। महाधन सेठ ने उसका बड़े ही अच्छे से पालन-पोषण किया। अच्छे संस्कार मिलने के बाद भी सेठ का बेटा बड़ा होकर जुआ खेलने लगा। जुए की लत में वो सारा पैसा जुआ खेलते हुए हार गया। इसी बीच सेठ की मौत हो गई। जुए की लत की वजह से न तो लड़के के पास पैसे बचे और न पैसा कमाने वाला बाप, तो लड़का अपना नगर छोड़कर चन्द्रपुरी नगर पहुंच गया।

नए नगर पहुंचकर लड़के की मुलाकात कर्ज देने वाले साहूकार हेमगुप्त से हुई। लड़के ने अपने पिता के बारे में साहूकार को बताया और एक झूठी कहानी उसको सुनाने लगा। उसने कहा कि वो जहाज लेकर बहुत बड़ा सौदा करके लौट रहा था। उसी समय समुद्र में इतना तेज तूफान आया कि उसका जहाज वहीं डूब गया और वो बच-बचाकर यहां पहुंचा है। इतना सुनते ही साहूकार ने उसे अपने घर में रहने की इजाजत दे दी। इसी बीच हेमगुप्त साहूकार को ख्याल आया कि सेठ का यह लड़का मेरी बेटी के लिए अच्छा वर साबित हो सकता है। तुरंत साहूकार ने अपनी बेटी की शादी सेठ के बेटे से करवा दी।

शादी के कुछ दिन तक अपने दामाद का काफी सत्कार करने के बाद साहूकार ने अपनी बेटी को खूब सारा धन देकर विदा कर दिया। दोनों के साथ साहूकार ने एक दासी को भी भेजा। रास्ते में सेठ के बेटे ने अपनी पत्नी से कहा, “सारे गहने मुझे दे दो। यहां कई लुटेरे हैं।” उसकी पत्नी ने ऐसा ही किया। जेवर मिलते ही उसने दासी को मारकर कुएं में फेंक दिया और अपनी पत्नी को भी कुएं में धक्का दे दिया। लड़की जोर-जोर से रोने लगी। उसकी रोने की आवाज सुनकर एक राहगीर ने महिला को कुएं से निकाला।

कुएं से निकलते ही वो अपने पिता के पास चली गई। उसने अपने साहूकार पिता को सच्चाई नहीं बताई, उसने कहा, “कुछ लुटेरे ने उन्हें लूट लिया और दासी को मार दिया।” साहूकार ने अपनी बेटी को दिलासा देते हुए कहा, “चिंता मत करो तुम्हारा पति जिंदा होगा और वो कभी-न-कभी जरूर लौटकर आ जाएगा।” उधर लड़का अपने नगर पहुंचकर दोबारा सारे पैसे और जेवरात जुए में हार जाता है। पैसे खत्म होने के बाद उसकी हालत बहुत बुरी हो गई।

इससे परेशान लड़का दोबारा साहूकार के पास जाता है। वहां पहुंचते ही उसकी मुलाकात पत्नी से होती है। वो उसे देखकर बहुत खुश होती है और बताती है कि उस दिन जो कुछ भी हुआ उसने अपने पिता को नहीं बताया है। वो उस झूठी कहानी के बारे में अपने पति को बताती है। जैसे ही साहूकार अपने दामाद को घर में देखा तो उसने उसका स्वागत किया। कुछ दिन साहूकार के घर में रहने के बाद एक रात को मौका देखकर सेठ का बेटा अपनी पत्नी को मारकर उसके सारे जेवरात लेकर फरार हो जाता है। यह कहानी बताने के बाद मैना कहती है, “महाराज ये सब होते हुए मैंने खुद अपनी आंखों से देखा है। यही वजह है मैं आदमियों को पापी कहती हूं।”

मैना की कहानी सुनने के बाद राजा तोते से कहता है, “अब तुम बताओं स्त्रियों को बुरा क्यों कह रहे थे।” यह सुनते ही तोता भी कहानी सुनाने लग जाता है। वो बताता है कि एक समय वो कंचनपुर में सागरदत्त नाम सेठ के यहां रहता था। उसके बेटे का नाम श्रीदत्त था, जिसकी शादी पास के ही नगर श्रीविजयपुर के सेठ सोमदत्त की बेटी से हुई थी।

शादी के बाद व्यापार करने के लिए लड़का परदेस चला गया। उसकी पत्नी जयश्री उसका इंतजार बेताबी से करती थी, लेकिन 12 साल गुजर गए, लेकिन वो परदेस से लौटकर नहीं आया। अपने पति का इंतजार करते हुए एक दिन महिला अपनी छत से एक पुरुष को आते हुए देखती है। वो उसे बेहद पसंद आता है। वो उसे अपनी सहेली के घर बुलाती है। वो उससे बात करती है और उससे रोज अपनी सहेली के घर मिलने को कहती है। अब श्रीदत्त की पत्नी जयश्री उस युवक से रोज मिलने लगी। ऐसा होते-होते कुछ महीने बीत गए। इसी बीच एक दिन जयश्री का पति श्रीदत्त परदेस से लौट आता है।

महिला अपने पति को देखकर परेशान हो जाती है। थका-हारा श्रीदत्त आराम करने के लिए बिस्तर पर लेटते ही एक दम सो जाता है। मौका देखते ही उसकी पत्नी उस युवक से मिलने के लिए अपनी सहेली के घर चली जाती है। रात को उसे बाहर जाते हुए देख एक चोर उसका पीछा करता है। वो देखता है कि वो किसी घर में चली गई। अफसोस, वो युवक सांप के काटने की वजह से मर जाता है। जैसे ही जयश्री उसे देखती है तो उसे लगता है कि वो सो रहा है। वो उसके करीब जाती है, उसी समय पास के पिपल के पेड़ पर बैठा भूत मरे हुए युवक के शरीर में घुसता है और महिला की नाक काटकर वापस पेड़ पर बैठ जाता है।

रोते हुए वो अपनी सहेली के पास पहुंची और उसे पूरी कहानी बताई। सब कुछ सुनकर उसकी सहेली जयश्री को सलाह देती है कि चुपचाप घर चली जाओ और जोर-जोर से रोने लग जाना। जैसे ही कोई नाक के बारे में पूछे तो कह देना कि तुम्हारे पति ने काट दी है। वो ऐसा ही करती है। लड़की का पिता श्रीदत्त की शिकायत करता है। इसके बाद सभा में सभी पेश होते हैं। जैसे ही राजा लड़की की कटी हुई नाक देखता है तो गुस्से में उसके पति को सूली से लटकाने का फैसला सुना देता है।

उस सभा में वो चोर भी मौजूद होता है, जिसने श्रीदत्त की पत्नी को रात में घर से बाहर जाते और अन्य चीजों को देखा था। राजा द्वारा सुनाई गई सजा को सुनते ही चोर बहुत दुखी होता है। वो किसी तरह से हिम्मत करके राजा को सारी कहानी बताता है। कोई भी उसकी बात पर विश्वास नहीं करता, तो चोर कहता है, “आप वहां चलकर देख लीजिए, भूत भी वहीं है और युवक की लाश भी।” जब जांच की जाती है तो बात सच निकलती है। यह बताकर तोता कहता है, “राजन महिलाएं इतनी दुष्ट होती हैं।”

इतना कहकर बेताल राजा विक्रमादित्य से कहता है, “बताओ महिला और पुरुष में से ज्यादा पापी कौन?” राजा कुछ देर सोचकर बताते हैं, “महिला ज्यादा पापी है।” बेताल कहता है, “कैसे?” राजा ने जवाब में कहा, “विवाहित होने के बावजूद महिला की पर-पुरुष पर नजर थी और उसने अपने पति को धोखा दिया।”

कहानी से सीख:

इंसान को कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहिए। झूठ बोलने का परिणाम हमेशा बुरा ही होता है।

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