विक्रम बेताल की उन्नीसवीं कहानी: पिण्ड दान का अधिकारी कौन?

May 25, 2021 द्वारा लिखित

nineteenth story of Vikram Betal

हर बार की तरह इस बार भी राजा विक्रमादित्य ने बेताल को अपने कंधे पर लादा और आगे बढ़ने लगे। सफर लंबा था, इसलिए बेताल ने राजा को फिर से एक नई कहानी सुनाई। बेताल कहता है…

यह कहानी है विधवा भागवती और उसकी बेटी धनवंती की। भागवती के विधवा होने के बाद उसके पति के रिश्तेदार उसका सारा धन लेकर भागवती और उसकी बेटी को घर से निकाल देते हैं। इसके बाद दोनों मां-बेटी दूसरे नगर के लिए निकल पड़ती हैं। रास्ते में दोनों एक जगह आराम करने के लिए रुकती हैं तो वहां एक सिपाही एक चोर को बांधकर रखे रहता है। चोर को प्यास लगी होती है वो भागवती और उसकी बेटी धनवंती से पानी पिलाने के लिए विनती करता है। पानी पीने के बाद वो मां-बेटी से सारी बातें पूछता है कि उनके साथ क्या हुआ था। सारी बातें सुनने के बाद चोर धनवंती के साथ शादी करने की इच्छा रखता है। यह सुनकर भागवती को गुस्सा आता है और वो उस सिपाही को चोर की बात बताती है। सिपाही भी चोर पर गुस्सा जाहिर करते हुए कहता है कि, “कुछ दिनों में तुम्हें फांसी लगेगी और तुम शादी करने की बात करते हो।” यह सुनकर चोर कहता है, “बहुत पाप किये हैं मैंने, अब लगता है कोई तो हो जो मरने के बाद मुझे पानी दे सके। मेरा कोई बच्चा नहीं है, मैं चैन से मर भी नहीं सकता, भूत बनकर भटकूंगा मैं।”

यह सब सुनने के बाद सिपाही वहां चोर को बांधकर आराम करने चला गया। सिपाही के जाने के बाद चोर भागवती और उसकी बेटी धनवंती को अपने छिपाये धन के बारे में बताने लगा, उसने कहा, “अगर आप अपनी बेटी धनवंती की शादी मेरे साथ कर देंगी तो मैं आपको अपने छिपाये धन के बारे में बता दूंगा, मेरे मरने के बाद आप दोनों उस धन के साथ अपनी पूरी जिंदगी आराम से बिता सकेंगी।” उसकी बात सुनकर दोनों सोच में पड़ गईं। धनवंती की मां भागवती ने चोर से पूछा, “तुम यह क्यों करना चाहते हो।” तो चोर ने कहा, “शादी के बाद मेरा जो बच्चा होगा वो मेरे मरने के बाद पिंडदान करेगा, जिससे मुझे मुक्ति मिल जाएगी और मैं भूत नहीं बनूंगा।” ये सब सुनने के बाद  भागवती अपनी बेटी की शादी चोर से कराने के लिए तैयार हो जाती है।

दोनों की शादी होती है और जल्द ही दोनों को एक बच्चा भी होता है। कुछ दिनों बाद चोर को फांसी लगा दी जाती है। भागवती और धनवंती काफी दुखी होते हैं। कुछ दिनों बाद भागवती को चोर की बात याद आती है कि एक गुफा में मूर्ति के सामने की जमीन के नीचे उसने खजाना छिपाकर रखा था। दोनों मां-बेटी वहां जाकर देखते हैं और जमीन खोदने लगते हैं, फिर उन्हें वहां सोना-चांदी और पैसे मिलते हैं। धनवंती फिर भी दुखी रहती है और कहती है, “अगर पैसे नहीं मिलते, लेकिन वो जिंदा रहते तो मुझे सबकुछ मिल जाता।” भागवती बेटी को समझाते हुए बोलती है कि, “अगर पैसा है तो सारी खुशी मिल जाएगी।”

उसके बाद दोनों मां-बेटी एक नए शहर जाकर खुशी-खुशी अपनी जिंदगी बिताने लगते हैं। कुछ समय बाद भागवती की सहेलियां धनवंती की शादी कराने को लेकर पूछने लगती हैं। भागवती कहती है, “मुझे अपनी बेटी की शादी तो करवानी है, लेकिन लड़का ऐसा होना चाहिए जो घर-जमाई बनकर रहे।” फिर कुछ वक्त बाद एक एक पंडित लड़का उनके घर आता है, जिसके सामने भागवती अपनी बेटी धनवंती के शादी का प्रस्ताव रखती है। उनका बड़ा घर और पैसे देखकर वो लड़का लालच में आकर शादी के लिए हां कर देता है। वो कुछ वक्त तक उनके साथ रहता है और उनका भरोसा जीतने के बाद एक रात घर के सारे गहने और पैसे लेकर भाग गया। इस दुख में धनवंती की मां भगवती की मौत हो गई और धनवंती गरीब और अकेली हो गई। उसके बाद वो उस शहर से अपने बच्चे के साथ दूसरे शहर निकल पड़ी।

समय बीतता गया और धनवंती किसी तरह अपना गुजारा करने लगी। धीरे-धीरे धनवंती का बच्चा भी बड़ा होने लगा।

एक दिन दोनों मां-बेटे रास्ते में भटक रहे थे कि इतने में उन दोनों की नजर एक राजकुमार पर पड़ी, जिसके गले को एक अजगर ने जकड़ रखा था। धनवंती के बेटे ने उस अजगर को काफी मुश्किलों के बाद राजकुमार के गले से निकाला, लेकिन अफसोस तब तक राजकुमार की मौत हो गई थी। इसी बीच राजकुमार के पिता जो कि उस राज्य के राजा थे वो वहां पहुंच गए। बेटे की मौत से वो काफी दुखी हुए, लेकिन धनवंती के बेटे के साहस को देखते हुए राजा ने धनवंती के बेटे को गोद लेने का फैसला किया। धनवंती और उसका बेटा महराज के यहां रहने लगें।

धनवंती का बेटा देखते ही देखते राजमहल और राजा के सारे कार्यों को सीख गया और राजा के बेटे की जगह ले ली। राजा की उम्र बहुत ज्यादा हो गई थी और कुछ वक्त बाद राजा की मौत हो गई। राजा ने मरने से पहले धनवंती के बेटे को सारा राजपाठ सौंप उसे राजा बना दिया। उसके बाद धनवंती ने अपने बेटे से कहा कि पिता की मौत के बाद बेटे को पिता की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और पिंडदान करना होता है। यह बात सुन उसका बेटा अपनी मां धनवंती के साथ पिंड दान करने निकल पड़ा। जब वो नदी के किनारे पहुंचा तो उसे तीन हाथ दिखाए दिए।

इतनी कहानी सुनाने के बाद बेताल रुक गया और हर बार की तरह इस बार भी उसने राजा विक्रमादित्य से सवाल पूछा,  “बताओ राजन, उस लड़ने का पिता कौन है? धनवंती का बेटा किस हाथ में पिंड देगा? इसमें एक हाथ उस चोर का है, जिसके साथ धनवंती की शुरुआत में शादी हुई थी। दूसरा हाथ उस आदमी का है, जिसने धन की लालच में धनवंती से विवाह किया था और तीसरा हाथ उस राजा का, जिसने धनवंती के बेटे को गोद लेकर अपने बेटे की तरह रखा था।”

विक्रमादित्य ने जवाब दिया, “उस लड़के का पिता वो चोर है, जिसने धनवंती से पूरे रीति-रिवाज के साथ शादी की। दूसरे व्यक्ति ने लालच में धनवंती से शादी की थी और राजा ने बस अपना काम किया था। चोर ही धनवंती का असली पति और उसके बेटे का पिता है, क्योंकि उसने धनवंती के लिए बिना किसी स्वार्थ के मरने से पहले धन छोड़ा, ताकि वो खुशी से आराम की जिंदगी बिता सके।

यह सुनते ही बेताल बहुत खुश हुआ और वापस घने जंगल में उसी पेड़ पर जाकर उल्टा लटक गया।

कहानी से सीख :

जो इंसान बिना किसी स्वार्थ के कोई काम करता है, उसे कभी-न-कभी अच्छा फल जरूर मिलता है।

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