विक्रम बेताल की पन्द्रहवीं कहानी: शशिप्रभा किसकी पत्नी?

May 25, 2021 द्वारा लिखित

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हर बार की तरह राजा विक्रामादित्य फिर से बेताल को पेड़ से उतारते हैं और उसे योगी के पास ले जाने के लिए आगे बढ़ते हैं। इस बार भी बेताल एक नई कहानी राजा को सुनाता है। बेताल कहता है…

वर्षों पहले नेपाल के शिवपुर नाम के एक नगर में यशकेतु राजा का राज हुआ करता था। वह बहुत साहसी और बलवान था। शादी के सालों बाद पत्नी चंद्रप्रभा से उसे एक बेटी शशिप्रभा हुई। समय के साथ-साथ बेटी बड़ी हुई, जिसकी सुंदरता की चर्चा हर जगह थी। एक दिन राजा अपनी पत्नी और बेटी के साथ बसंत ऋतु उत्सव देखने के लिए गए। उसी उत्सव में एक धनी ब्राह्मण का बेटा मनस्वामी भी आया था। उसने बसंत उत्सव में जैसे ही राजा की बेटी शशिप्रभा को देखा तो उसे पहली नजर में उससे प्यार हो गया।

इसी बीच एक हाथी तेजी से राजकुमारी की ओर दौड़कर आने लगा। शशिप्रभा की रक्षा में तैनात सभी सैनिक मतवाले हाथी से डरकर भाग गए। ब्राह्मण पुत्र मनस्वामी ने जैसे ही हाथी को राजकुमारी की ओर बढ़ते देखा, तो अपनी जान पर खेलकर उसे बचा लिया। यह सब देखकर राजकुमारी ब्राह्मण युवक पर मोहित हो गई। ब्राह्मण युवक की सब ने तारीफ की और दोनों बसंत उत्सव के बाद अपने-अपने घर लौट आए।

राजमहल में शशिप्रभा का बुरा हाल था। वो अपनी जान बचाने वाले ब्राह्मण की याद में खोई रहने लगी। दूसरी ओर ब्राह्मण युवक भी शशिप्रभा से दोबारा मिलने के लिए बेचैन था। राजकुमारी से मुलाकात कैसे हो, यह सोचते-सोचते वो एक सिद्ध पुरुष के पास पहुंच गया। मनस्वामी ने अपने मन का सारा हाल उसे बताया। सिद्ध पुरुष ने सिद्धि के बल पर दो गोली बनाई। एक गोली उसने ब्राह्मण युवक को मुंह में रखने को दी। मुंह में गोली रखते ही युवक एक सुंदर सी युवती बन गया। सिद्ध पुरुष ने दूसरी गोली अपने रख ली और वो एक वृद्ध ब्राह्मण के भेष में आ गया।

फिर सीधे सिद्ध पुरुष, मनस्वामी को लेकर राजमहल पहुंच गया। उसने राजा से कहा, “देखिए यह मेरे बेटे की होने वाली धर्म पत्नी है। इसे आप कुछ दिनों के लिए राजमहल में रख लीजिए, क्योंकि मुझे तीर्थ के लिए जाना है। मुझे लगता है कि यह राजमहल से ज्यादा सुरक्षित और कही नहीं रहेगी।” राजा ने सोचा कि अगर वो मना करता है, तो यह सिद्ध पुरुष श्राप भी दे सकता है। राजा ने कहा, “हे ब्राह्मण! आप जाइए, आपके बेटे की होने वाली पत्नी हमारे यहां सुरक्षित रहेगी। यह मेरी बेटी के साथ उसकी सखी की तरह रहेगी।”

इतना सुनने के बाद सिद्ध पुरुष वहां से निकल गया और मनस्वामी लड़की के भेष में शशिप्रभा के साथ रहने लगा। उसकी सखी की तरह रहकर वो राजकुमारी से खूब बातें करता। एक दिन मौका पाकर मनस्वामी ने उससे पूछा, “आप हर समय इतनी दुखी क्यों रहती हैं? आपकी आंखें हर समय किसको ढूंढती हैं? ये सुनते ही राजकुमारी ने बसंत उत्सव के दिन हुई घटना बताते हुए कहा, “वो ब्राह्मण युवक मेरे मन को भा गया है। मुझे न उसका नाम पता है, न ही शहर। मैं हर दम यही सोचती हूं कि उससे भेंट कैसे होगी।”

शशिप्रभा की मन की सारी बात जानकर स्त्री भेष में मौजूद मनस्वामी बड़ा खुश हुआ। उसने राजकुमारी से कहा, “सखी में तुम्हें उस ब्राह्मण युवक से मिला सकती हूं।” इतना सुनते ही प्रेम में बेचैन शिशप्रभा ने कहा, “बताओ कैसे? क्या तुम उसे जानती हो।” तब मनस्वामी ने कहा, “तुम जल्दी से आंखें बंद कर लो।” उसने जैसे ही आंखें बंद की, ब्राह्मण युवक ने जल्दी से मुंह से गोली बाहर निकाली और वापस लड़के के भेष में आ गया। मनस्वामी ने बड़े प्रेम से शशिप्रभा को पुकारा। युवक की आवाज सुनकर वो बड़ी प्रसन्न हुई और खुशी से उसे गले लगा लिया।”

राजकुमारी ने उससे पूछा, “अरे! मेरी सखी कहा गई”। यह सुनते ही मनस्वामी ने सारी बात बताई और गोली मुंह में डालकर दोबारा स्त्री बन गया। यह सब देखकर राजकुमारी दंंग रह गई और मन ही मन बेहद खुश भी हुई। उसी समय दोनों ने एक दूसरे को मन से पति-पत्नी मान लिया और इसी तरह राजभवन में साथ-साथ रहने लगे।

एक दिन राजा के मंत्री के बेटे की नजर मनस्वामी पर पड़ी। ब्राह्मण युवक के स्त्री रूप को देखकर वो उसका दीवाना हो गया। कुछ दिनों बाद उसने उससे मन की बात बताई, लेकिन मनस्वामी ने मना कर दिया। उसने कहा, “वो किसी और की है।” इतना सुनते ही मंत्री का बेटा परेशान हो गया। उसने अपने पिता को सारी बात बताई। बेटे को दुखी देखकर मंत्री से सारी बात राजा से कही। मंत्री की बातें सुनकर राजा ने मंत्री के बेटे और स्त्री रूप धारण किए मनस्वामी के विवाह का फैसला ले लिया।

राजा के यह फरमान सुनने के बाद मनस्वामी ने कहा, “महाराज! आपको पता है, मेरा विवाह किसी और से होने वाला है। ऐसा करना अधर्म होगा। फिर भी अगर आप मेरा विवाह करवाना चाहते हैं, तो राजा का आदेश मानकर मैं यह विवाह कर लूंगी।” राजा बहुत खुश हुआ और दोनों का विवाह करवा दिया। विवाह होते ही मनस्वामी ने मंत्री पुत्र से कहा, “तुम्हारी जिद की वजह से मेरा विवाह तुम्हारे साथ हुआ है, वरना मैं किसी और से विवाह करने के लिए इस राज्य में आई थी। अब तुम्हें इस पाप को धोने के लिए तीर्थ के लिए जाना होगा।” प्यार में पागल मंत्री पुत्र ऐसा ही करता है।

एक दिन सिद्ध पुरुष दोबारा ब्राह्मण के भेष में राजमहल पहुंचता है। इस बार वो अपने साथ अपने एक दोस्त को जवान करके अपना बेटा बनाकर लाता है। ब्राह्मण राजा से पूछता है, “मेरी बहू कहा है, मैं उसे अपने साथ लेकर जाना चाहता हूं और अपने बेटा का उससे विवाह करवाउंगा।” इतना सुनते ही राजा ने सारी कहानी उसे बता दी। सिद्ध पुरुष बहुत गुस्सा हुआ।

राजा ने उसके श्राप से बचने के लिए कहा, “देखो, अब जो हो गया उसे बदला नहीं जा सकता। हां, मैं अपनी बेटी से तुम्हारे बेटे का विवाह जरूर करवा सकता हूं।” इतना सुनते ही सिद्ध पुरुष राजा की बात पर सहमत हो गया और राजा ने सिद्ध पुरुष के दोस्त, जो उसके बेटे के रूप में महल पहुंचा था, उससे अपनी बेटी शशिप्रभा का विवाह अग्नि को साक्षी मानकर करवा दिया। इसी बीच मनस्वामी वहां अपने असली भेष यानी पुरुष रूप में पहुंचता है और शशिप्रभा को अपनी पत्नी बताता है।

इतना सुनते ही बेताल ने कहानी सुनाना बंद कर दिया। उसने कहा, “राजन अब तुम बताओ, शशिप्रभा किसकी पत्नी है?” विक्रमादित्य ने कोई जवाब नहीं दिया। गुस्से में बेताल ने कहा, “जवाब दोगे या तुम्हारी गर्दन धड़ से अलग कर दूं।” कुछ देर सोचकर विक्रमादित्य कहते हैं, “शशिप्रभा उस लड़के की पत्नी है, जिससे उसने अग्नि को साक्षी मानकर शादी की थी। मनस्वामी घर में भेष बदलकर रह रहा था और चोरी से शशिप्रभा से मिलता था।”  यह जवाब सुनकर बेताल ने कहा, “तुमने बिलकुल सही जवाब दिया है, अब तुमने सही जवाब दे दिया है तो मैं फिर से उड़ा राजन।” ऐसा कहकर एक बार फिर बेताल दोबारा पेड़ पर जाकर उल्टा लटक जाता है।

कहानी से सीख :

छल-कपट से किया गया प्रयास असफलता का कारण बनता है।

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