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बच्चों के लिए स्पीच थेरेपी : फायदे, तरीके व घर में कराने के टिप्स | Speech Therapy For Kids In Hindi

बढ़ती उम्र के साथ बच्चों के लिए कई चीजों को सीखना बहुत जरूरी हो जाता है। शुरुआत में मुंह से निकले टूटे-फूटे शब्द ही उनकी मजबूत भाषा का आधार बनते हैं। शब्दों का ज्ञान बच्चे धीरे-धीरे अपने दिमाग में पिरोते हैं और उनकी भाषा का विकास होने लगता है। हालांकि लाख कोशिशों के बावजूद कुछ बच्चों का भाषायी ज्ञान विकसित नहीं हो पाता है, जिसे ठीक करने के लिए स्पीच थैरेपी यानी भाषण चिकित्सा की मदद लेनी पड़ती है। मॉमजंक्शन के इस लेख में हम इसी विषय पर चर्चा करने वाले हैं कि स्पीच थेरेपी क्या होती है और इसे कैसे किया जाता है। तो चलिए, स्पीच थेरेपी के बारे में संपूर्ण जानकारी पाने के लिए लेख को अंत कर जरूर पढ़िए।

आइए, पहले समझते हैं कि स्पीच थेरेपी क्या होती है।

In This Article

स्पीच थेरेपी या भाषण चिकित्सा क्या है?

स्पीच थेरेपी एक प्रकार की चिकित्सा पद्धति है, जिसमें ऐसे लोगों का इलाज किया जाता है, जिन्हें बोलने में कठिनाई होती है। इस थेरेपी की मदद से उन्हें बेहतर ढंग से संवाद करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों के उच्चारण में सुधार करना, बोलने में इस्तेमाल आने वाली मांसपेशियों को मजबूत करना और सही ढंग से बोलना सिखाना है।

भाषण चिकित्सा यानी स्पीच थेरेपी का उपयोग कई अलग-अलग भाषण समस्याओं और विकारों के लिए किया जा सकता है। इसमें छोटी समस्याओं, जैसे स्वर का बैठना से लेकर मस्तिष्क क्षति के कारण बोलने की क्षमता प्रभावित होना तक शामिल है (1)

अब जान लेते हैं कि बच्चों को स्पीच थेरेपी की जरूरत कब पड़ती है।

बच्चे को स्पीच थेरेपी की जरूरत कब पड़ती है?

बच्चों को स्पीच थेरेपी की जरूरत निम्नलिखित कारणों की वजह से पड़ सकती है (2) :

  • अगर बच्चे की भाषा स्पष्ट न हो, जिस वजह से उसकी बातों को समझने में परेशानी हो रही हो।
  • अगर बच्चे को किसी शब्द को बोलने में परेशानी हो रही हो, जिसके कारण वह अपनी बातों को नहीं रख पा रहा हो।
  • बच्चा दो से तीन शब्दों वाले वाक्य बोलने की बजाय केवल मम्मा-पापा जैसे ही शब्द बोलता हो।
  • अगर बच्चे में सामाजिक विकास, जैसे- दोस्त बनाना, खेलने और सीखने का कौशल और दूसरों के साथ मिलना-जुलना आदि नही हुआ हो।

इसके अलावा कुछ अन्य समस्याओं की वजह से भी बच्चों को स्पीच थेरेपी की जरूरत पड़ सकती है (1) :

  • लैंग्वेज डिसॉऑर्डर (Language disorders) : इस समस्या में बच्चे की बोलने की क्षमता, वस्तुओं को नाम देने या फिर पूर्ण वाक्य बनाने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। हालांकि, इस समस्या के कारण अक्सर स्पष्ट नहीं होते हैं। वहीं, इसके लिए कुछ जोखिम कारकों को जिम्मेदार माना जा सकता है, जिसमें   सुनने की समस्याएं, सामान्य विकास संबंधी समस्याएं और मस्तिष्क के विकास को प्रभावित करने वाली समस्याएं शामिल हैं।
  • स्पीच डिसॉऑर्डर (Speech disorders) : इस समस्या में बच्चों को उच्चारण या फिर स्पष्ट शब्दों को बोलने या धाराप्रवाह यानी लगातार बोलने में कठिनाई होती है। यह विकास संबंधी समस्याओं के कारण हो सकता है। हालांकि, मनोवैज्ञानिक कारक भी इसमें निभा सकते हैं।
  • वॉइस डिसॉऑर्डर (dysphonia – डिसफोनिया) : इस समस्या में आवाज बदल जाती है या फिर स्वर बैठ जाता है। आमतौर पर यह समस्या अधिक या बहुत जोर से बोलने से, गलत सांस लेने की तकनीक का उपयोग करने आदि जैसे कारण हो सकती है। इसके अलावा, अवसाद की समस्या जैसे मनोवैज्ञानिक कारण या किसी दुखद घटना की प्रतिक्रिया की वजह से भी आवाज बदल सकती है।
  • निगलने में परेशानी (Trouble swallowing) : इस समस्या में गले की मांसपेशियां प्रभावित होती हैं। इसके पीछे का कारण तंत्रिका तंत्र की बीमारी को माना जाता है, जैसे कि पार्किंसंस रोग, मल्टीपल स्केलेरोसिस यानी इम्यून सिस्टम से संबंधित समस्या, मनोभ्रंश, लाइम रोग या टेटनस जैसा संक्रमण या सिर में चोट लगना आदि। वहीं, यदि निगलने की समस्या के कारण, भोजन फेफड़ों में चला जाता है, तो यह जीवन के लिए खतरा पैदा कर सकता है।

लेख के इस हिस्से में जानें स्पीच थेरेपी के दौरान क्या होता है।

बच्चों के लिए स्पीच थेरेपी के दौरान क्या होता है?

जैसा कि हमने लेख में बताया कि यह एक चिकित्सा पद्धति है, जो स्पीच-लैंग्वेज पैथोलॉजिस्ट के द्वारा ही की जाती है। इस थेरेपी को सत्रों में बांटा जाता है। थेरेपी का हर सेशन 30 से 60 मिनट तक चलता है। इस प्रक्रिया को या तो समूह में कर सकते हैं या फिर आमने सामने बैठ कर भी किया जा सकता है। इस दौरान निम्नलिखित तरीकों को अपनाया जा सकता है : (1)

  • इसके तहत परसेप्शन एक्सरसाइज कराई जा सकती है, जिसमें शब्दों और उसके उच्चारण का अभ्यास कराया जा सकता है।
  • इसके अलावा, उच्चारण और प्रवाह में सुधार के लिए भी व्यायाम कराया जा सकता  है।
  • सांस लेने, निगलने और आवाज में सुधार के लिए भी एक्सरसाइज कराई जा सकती है।

साथ ही, सांकेतिक भाषा, कंप्यूटर आदि के इस्तेमाल से भी संवाद में सुधार किया जा सकता है।

बच्चों के लिए स्पीच थेरेपी करने के फायदे

बच्चों को स्पीच थेरेपी दिलाने के कई फायदे हो सकते हैं, जो निम्नलिखित हैं (3) (4):

  • स्पीच थेरेपी की मदद से बच्चों की भाषा में सुधार किया जा सकता है, जिससे वह साफ-साफ बोल सकते हैं।
  • बच्चों के निगलने की समस्या को भी स्पीच थेरेपी की मदद से कुछ हद तक ठीक करने में मदद मिल सकती है।
  • स्पीच थेरेपी से बच्चे की समझने की क्षमता को भी विकसित किया जा सकता है।
  • यही नहीं, स्पीच थेरेपी से बच्चे के लिखने की शैली में भी सुधार हो सकता है।
  • इसके अलावा, स्पीच थेरेपी बच्चों में संज्ञानात्मक विकास को भी बढ़ावा दे सकता है।
  • साथ ही, इस थेरेपी की मदद से बच्चों में सामाजिक विकास भी हो सकता है।

चलिए, अब जरा स्पीच थेरेपी के तरीके भी जान लीजिए।

बच्चों के साथ स्पीच थेरेपी करने के तरीके

बच्चों को स्पीच थेरेपी कराने के लिए निम्न तरीकों को अपनाया जा सकता है:

    • लैंग्वेज इंटरवेंशन एक्टिविटीज (Language intervention activities) –  बच्चों को दी जाने वाली  स्पीच थेरेपी में लैंग्वेज इंटरवेंशन एक्टिविटीज की मदद ली जा सकती है। इससे संबंधित शोध में बताया गया है कि मौखिक भाषा के विकास के लिए इस तरह के कार्यक्रम प्रभावी साबित हो सकते हैं (5)।
  • आर्टिकुलेशन थेरेपी (Articulation therapy) : बच्चों की भाषा और उच्चारण में सुधार के लिए आर्टिकुलेशन थेरेपी की भी मदद ली जा सकती है। इसके माध्यम से बच्चों को उस विशेष अक्षर का सही ढंग से उच्चारण करना सिखाया जाता है, जिसे बोलने में उन्हें तकलीफ होती है। उदाहरण के लिए –  अगर मान लीजिए किसी बच्चे को माइल्ड स्पीच डिसऑर्डर है और वह ‘रैबिट’ को ‘वैविट’ कहता है। यहां वह “आर” का “डब्ल्यू” के रूप में उच्चारण कर रहा है। ऐसे में उसे इस थेरेपी की मदद से अक्षर के सही उच्चारण का अभ्यास कराया जाता है (6)
  • ओरल मोटर/फीडिंग एंड स्वालोइंग थेरेपी (Oral-motor/feeding and swallowing therapy): इस थेरेपी की मदद से भी कुछ हद तक बच्चों के लैंग्वेज डिसऑर्ड को सुधारा जा सकता है। इस प्रकार की थेरेपी में मुंह की मांसपेशियों को मजबूत बनाने के लिए बच्चों से विभिन्न प्रकार के व्यायाम कराए जा सकते हैं, जैसे – मुंह को खोलना और बंद करना, होठों को आगे की तरफ निकालना, गाल को फूलना व पचकाना आदि (7)। इसके अलावा इस थेरेपी को बच्चों के फिडिंग संबंधी समस्याओं के लिए भी लाभकारी माना गया है (8)

आगे पढ़ें स्पीच थेरेपी कितने समय के लिए होती है।

बच्चों को कब तक स्पीच थेरेपी की आवश्यकता है?

आमतौर पर बच्चे 3 से 5 साल की उम्र में बोलना शुरू कर देते हैं (9)। वहीं, एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित शोध की मानें तो, छोटे बच्चों में उच्चारण की समस्या होने पर स्पीच थेरेपी की सिफारिश की जाती है। अधिकांश मामलों में इस थेरेपी में एक वर्ष से अधिक समय लग सकता है (10)। हालांकि, यह बच्चे की उच्चारण समस्या पर भी निर्भर करता है। अगर समस्या छोटी है तो जल्द ही इसे ठीक किया जा सकता है। वहीं, अगर समस्या गंभीर है तो, इसमें लंबा वक्त लग सकता है। ऐसे में बच्चों को कब तक स्पीच थेरेपी की आवश्यकता हो सकती है, इसके सटीक समय की जानकारी दे पाना थोड़ा मुश्किल है।

लेख के अंत में जानें घर में बच्चों को स्पीच थेरेपी कराने के तरीके।

माता पिता के लिए बच्चों को स्पीच थेरेपी घर में कराने के टिप्स

यहां हम कुछ ऐसे टिप्स बता रहे हैं, जिनकी मदद से बच्चों को घर बैठे ही स्पीच थेरेपी कराई जा सकती है :

  • बच्चों को बातचीत के लिए प्रोत्साहित करें : बच्चे अपने घरवालों से जितना अधिक बात करेंगे, उनके उच्चारण की समस्या उतनी आसानी से दूर की जा सकती है। इसलिए, जितना हो सके बच्चों को बातचीत के लिए प्रोत्साहित करते रहें। इसके लिए अपने बच्चों से तरह-तरह के सवाल पूछ सकते हैं, खासकर ऐसे सवाल जिसके जवाब देने में वो रूची रखते हों। उदाहरण के लिए – बच्चों से पूछ सकते हैं कि अगर उन्हें कहा जाए अपने दोस्त को गिफ्ट देने के लिए तो वो क्या देंगे। ऐसे प्रश्नों के जवाब बच्चे उत्साहित हो कर देते हैं।
  • बच्चों की बातों को ध्यान से सुनें : अपने बच्चों की बातों को हमेशा ध्यानपूर्वक सुनें। चाहे वो अपनी बातों को पूरा करने में अत्यधिक समय क्यों न लगा रहे हो। माता-पिता जब बच्चों की बातों को सुनते हैं, तो इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और वो अपनी बातों को धाराप्रवाह बोलने की कोशिश भी करते हैं। इसलिए जरूरी है कि बच्चों की बातों को ध्यानपूर्वक सुना जाए।
  • खेल के जरिए सिखाएं : बच्चों की भाषा में सुधार के लिए वाक्यों का खेल भी एक प्रभावी तरीका माना जा सकता है। इसके लिए अपने बच्चे और उनके दोस्तों का एक समूह बनाएं। सारे बच्चों को गोला बनाकर बिठाएं। इसके बाद किसी एक बच्चे के कान में एक वाक्य कहें। हर बच्चा उस वाक्य को अपने साथ में बैठे दोस्त के कान में बताए। फिर वह दोस्त उसी वाक्य को अपने अगले दोस्त के कान में कहेगा। अंतिम दोस्त को वाक्य को जोर से कहने के लिए कहें और चेक करें कि क्या उसने सही वाक्य बोला है।
  •  बच्चों को जोर-जोर से पढ़ने के लिए कहें : बच्चों को कहानियों में अधिक रुचि रहती है। ऐसे में उनकी भाषा को सुधारने के लिए इसका उपयोग करना भी फायदेमंद साबित हो सकता है। इसके लिए उन्हें उनकी ही पसंद की एक कहानी की किताब दें और बच्चे को जोर-जोर से पढ़ने के लिए कहें। बच्चा जब एक बार पढ़ ले तो उसे दोहराने के लिए भी कहें। इससे उनकी भाषा में काफी हद तक सुधार हो सकता है। वहीं, इससे संबंधित एक शोध में भी बताया गया है कि जोर-जोर से पढ़ने से बच्चों में शब्दावली और भाषा में सुधार हो सकता है (11)
  • बच्चों के शब्दों पर गौर करें : बच्चा जब कुछ बोल रहा हो तो उसके शब्दों पर गौर करें। इससे यह पता लगाने में आसानी होगी कि बच्चे को कौन से अक्षर या शब्द के उच्चारण में परेशानी हो रही है। साथ ही यह भी आंकलन करने में मदद मिल जाएगी कि क्या उस उम्र के बच्चों को यह समस्या हो सकती है। वहीं, एक बार जब समस्या के बारे में पता चल जाएगा तो उसके बाद से बच्चों को उस अक्षर या शब्द का सही उच्चारण करने में काफी मदद मिल सकती है। उदाहरण के लिए – अगर बच्चा ‘रसगुल्ला’ को ‘लसगुल्ला’ बोल रहा है तो उसे पहले ‘र’ बोलने का अभ्यास कराएं।
  • शब्दों को तोड़कर बोलना सिखाएं : बच्चों को किसी भी शब्द को बोलना सिखाने से पहले, उसके पहले अक्षर का उच्चारण उसे सिखाएं। उदाहरण के लिए – अगर बच्चे को ‘एप्पल (apple)’ बोलना सिखाना है तो, पहले ‘ए (a)’ बोलना सिखाएं। जब बच्चा ए बोलना सिख जाए तो फिर उसे ऐप (ap) बोलना सिखाएं। फिर उसे ‘अल (al)’ बोलने का अभ्यास कराएं। बच्चा जब इन अक्षरों को बोलना सिख जाए, तो उसे एप्पल बोलने का अभ्यास कराएं, इससे बच्चा असानी से शब्दों को पकड़ पाएगा।

स्पीच थेरेपी तभी कारगर मानी जाती है जब इसका अभ्यास बच्चों को छोटी उम्र से ही कराया जाता है। हालांकि, इस प्रकार की थेरेपी की आवश्यकता केवल उन्हीं बच्चों को होती है, जिन्हें बोलने में किसी प्रकार की परेशानी हो। वहीं, अगर कोई माता पिता अपने बच्चे की भाषा और संवाद को बेहतर बनाना चाहते हैं, तो भी घर पर रहकर इस थेरेपी का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए हमने लेख में कुछ टिप्स भी बताए है, जिसका आसानी से घर बैठे अभ्यास कराया जा सकता है। हम उम्मीद करते हैं कि हमारा यह लेख आपके लिए मददगार साबित होगा।

References

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1. What is speech therapy? – By NCBI
2. Speech and language therapy interventions for children with primary speech and/or language disorders– By NCBI
3. Is speech and language therapy effective for children with speech/language impairment? A report of an RCT– By Researchgate
4. Speech Assessment – By NCBI
5. Interventions for children’s language and literacy difficulties- By Researchgate
6. Treatment and Persistence of Speech and Language Disorders in Children– By NCBI
7. Let’s Do The Face And Mouth Exercise – By My Health
8. Effects of oral motor therapy in children with cerebral palsy– By NCBI
9. Distinct developmental profiles in typical speech acquisition– By NCBI
10. Language disorders in young children: when is speech therapy recommended?– By NCBI
11. Effects of Two Teaching Strategies on Preschoolers’ Oral Language Skills: Repeated Read-Aloud With Question and Answer Teaching Embedded and Repeated Read-Aloud With Executive Function Activities Embedded– By NCBI

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