- गर्भावधि मधुमेह (जेस्टेशनल डायबिटीज) क्या है?
- गर्भावस्था में मधुमेह के कारण
- गर्भावस्था में मधुमेह के लक्षण
- गर्भावस्था में मधुमेह का निदान
- प्रेग्नेंसी में मां और बच्चे को शुगर के जोखिम
- गर्भावधि मधुमेह का जोखिम किन्हें ज्यादा होता है?
- गर्भावस्था में मधुमेह के लिए उपचार
- गर्भावस्था में मधुमेह का प्रबंधन
- गर्भावस्था में मधुमेह को कैसे रोकें
- गर्भावस्था में मधुमेह के दौरान आहार की आदतें – क्या खाना चाहिए और क्या नहीं
- अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
गर्भावस्था के नौ महीने काफी चुनौती भरे होते हैं और इस दौरान कई तरह के शारीरिक बदलाव होते हैं। इन्हीं बदलावों के चलते होती हैं कुछ शारीरिक समस्याएं, जिन्हें नज़रअंदाज़ करना खतरे से खाली नहीं होता। इन्हीं समस्याओं में से एक है गर्भावस्था में शुगर होना यानी गर्भावधि मधुमेह। इसे अंग्रेज़ी में ‘जेस्टेशनल डायबिटीज़ (Gestational Diabetes)’ कहा जाता है।
गर्भावस्था के दौरान कई महिलाओं को गर्भावधि मधुमेह से जूझते पाया जाता है, जिसका समय पर इलाज करवाना ज़रूरी है। इसलिए, मॉमजंक्शन के इस लेख में हम गर्भावधि मधुमेह के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। सबसे पहले तो जानते हैं कि गर्भावधि मधुमेह क्या है।
गर्भावधि मधुमेह (जेस्टेशनल डायबिटीज) क्या है?
गर्भावधि मधुमेह ऐसी स्थिति है, जिसमें गर्भवती महिला में ब्लड शुगर (शर्करा) का स्तर बढ़ जाता है। जिन्हें पहले से शुगर नहीं है, वो भी इसकी चपेट में आ सकती हैं। ऐसा तब होता है, जब आपका शरीर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नामक हार्मोन पैदा नहीं कर रहा होता है। इंसुलिन की मात्रा कम होने से जेस्टेशनल डायबिटीज हो सकती है (1)।
अब आप जान गए होंगे कि गर्भावधि मधुमेह क्या है। आइए, अब इसके कारणों को समझते हैं।
गर्भावस्था में मधुमेह के कारण | Pregnancy Me Sugar Hone Ke Karan
जैसा कि हमने बताया, जब शरीर में पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बन पाता, तब गर्भावधि मधुमेह होता है। इंसुलिन शरीर में पैदा होने वाला वह हार्मोन है, जो शरीर में भोजन व ग्लूकोज को ऊर्जा में बदलता है। गर्भावस्था के दौरान विभिन्न हार्मोंस के स्तर में बढ़ोत्तरी होती है, जिससे शरीर में वज़न बढ़ने जैसे कई बदलाव होते हैं। इन हार्मोंस के बढ़ने से शरीर में ब्लड शुगर का स्तर बिगड़ जाता है। इस स्थिति को इंसुलिन प्रतिरोधक कहा जाता है (2)। इंसुलिन प्रतिरोधक के कारण शरीर को इंसुलिन की जरूरत और ज्यादा बढ़ जाती है।
कुछ महिलाओं को गर्भावस्था के आखिरी महीनों में इंसुलिन प्रतिरोधक का सामना करना पड़ता है। वहीं, कुछ महिलाओं में यह गर्भावस्था शुरू होने से पहले भी होता है। ऐसी महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान और ज्यादा इंसुलिन की आवश्यकता होती है और इन्हें गर्भावस्था में मधुमेह होने का खतरा भी ज्यादा रहता है (1)।
ऊपर हमने गर्भावधि मधुमेह के कारणों के बारे में बताया। आइए, अब नजर डालते हैं इसके लक्षणों पर।
गर्भावस्था में मधुमेह के लक्षण | Pregnancy Me Diabetes Ke Lakshan
अगर आप गर्भवती हैं और आपको गर्भावधि मधुमेह के बारे में जागरूक रहना है, तो नीचे बताए गए लक्षणों पर ध्यान दें। यह लक्षण गर्भावस्था में मधुमेह के लक्षण हो सकते हैं (3) :
- बहुत जल्दी थक जाना।
- बार-बार प्यास लगना।
- जल्दी-जल्दी पेशाब जाने की ज़रूरत होना।
- जी-मिचलाना।
- धुंधला दिखाई देना।
- मूत्राशय, योनि और त्वचा के लगातार संक्रमण होना।
अगर आपको ऊपर बताए गए लक्षण नज़र आते हैं, तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें, ताकि समय रहते इसका उचित इलाज किया जा सके।
गर्भावधि मधुमेह के लक्षण जानने के बाद यह जानना ज़रूरी है कि इसका निदान कैसे किया जाता है।
गर्भावधि मधुमेह की जांच
डॉक्टर गर्भावस्था के 24वें सप्ताह से 28वें सप्ताह के बीच में गर्भावधि मधुमेह की जांच जरूर करवाने की सलाह देते हैं (3)।
इसकी पुष्टि करने के लिए ओरल ग्लूकोज टेस्ट (oral glucose test) किया जाता है। इस टेस्ट में देखा जाता है कि शरीर की कोशिकाएं ग्लूकोज (शुगर) को अवशोषित करने में कितनी समर्थ हैं। इस टेस्ट के लिए गर्भवती महिला को पहले एक लीटर पानी में 75 ग्राम शर्करा मिलाकर पिलाया जाता है, फिर अलग-अलग समय पर चार बार रक्त का नमूना लिया जा सकता है। इस टेस्ट को करवाने से 10 घंटे पहले तक कुछ नहीं खाना होता।
ऐसे में अगर आपकी रक्त शर्करा नीचे बताए गए स्तर से ज्यादा होती है, तो आपको मधुमेह हो सकता है।
टेस्ट करने का समय | जांच का स्तर |
---|---|
खाली पेट | अगर स्तर 95mg/dl से ज्यादा हो |
एक घंटे बाद | अगर स्तर 180mg/dl से ज्यादा हो |
दो घंटे बाद | अगर स्तर 155mg/dl से ज्यादा हो |
तीन घंटे बाद | अगर स्तर 140 mg/dl से ज्यादा हो |
आगे हम जानेंगे कि गर्भावस्था में शुगर होने पर किस प्रकार के जोखिम हो सकते हैं।
प्रेग्नेंसी में मां और बच्चे को शुगर के जोखिम
गर्भावस्था में मधुमेह होने पर नीचे बताए गए जोखिम हो सकते हैं :
- बच्चे का आकार बड़ा होना : अगर किसी गर्भवती महिला को मधुमेह है, तो गर्भ में बच्चे का आकार सामान्य से ज्यादा बड़ा हो सकता है (4)। इससे सिजेरियन डिलीवरी की आशंका बढ़ जाती है।
- समय पूर्व डिलीवरी का खतरा : गर्भावधि मधुमेह से पीड़ित महिलाओं में समय पूर्व डिलीवरी का खतरा बढ़ जाता है (5)। इसके अलावा, इस अवस्था में बच्चे को सांस संबंधी दिक्कतें भी हो सकती हैं।
- टाइप-2 डायबिटीज : जिन महिलाओं को गर्भावधि मधुमेह होता है, उन्हें और उनके बच्चे को भविष्य में टाइप-2 डायबिटीज होने का खतरा हो सकता है (6)।
- मृत बच्चे का जन्म : अगर गर्भावधि मधुमेह का इलाज समय पर न किया जाए, तो मृत बच्चे का जन्म होने का खतरा बढ़ सकता है (7)।
- प्रीक्लेम्पसिया : गर्भावधि मधुमेह के दौरान प्रीक्लेम्पसिया (उच्च रक्तचाप से संबंधित स्थिति) का खतरा हो सकता है।
आइए, अब जानते हैं, गर्भावधि मधुमेह होने का जोखिम किन्हें ज्यादा होता है।
गर्भावधि मधुमेह का जोखिम किन्हें ज्यादा होता है?
हालांकि गर्भावधि मधुमेह किसी भी गर्भवती महिला को हो सकता है, लेकिन नीचे बताए गए मामलों में इसका जोखिम बढ़ सकता है।
- आयु : 25 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को गर्भावधि मधुमेह होने का खतरा रहता है (8)।
- अगर परिवार में किसी को हो : अगर परिवार में किसी को मधुमेह है, तो गर्भावस्था में मधुमेह का खतरा बढ़ सकता है (9)।
- पहले से है मधुमेह : अगर आपको पहले से ही मधुमेह है, तो इसका खतरा और भी बढ़ सकता है।
- अगर पहले भी रहा है गर्भावधि मधुमेह : अगर आपको पहले की प्रेग्नेंसी में भी मधुमेह था, तो अगली गर्भावस्था में भी इसके होने की आशंका हो सकती है।
- अत्यधिक वज़न : अगर गर्भवती महिला का वज़न सामान्य से ज्यादा है, तो गर्भावधि मधुमेह का खतरा बढ़ सकता है (10)।
इसके बाद, आइए अब जानते हैं जेस्टेशनल डायबिटीज़ का उपचार क्या है।
गर्भावस्था के मधुमेह के लिए उपचार | Pregnancy Me Sugar Kaise Control Kare
अगर किसी गर्भवती महिला को गर्भावधि मधुमेह है, तो इसका जल्द से जल्द इलाज करवाना ज़रूरी है। देरी होने पर शिशु पर बुरा असर पड़ सकता है। आइए, जानते हैं कि गर्भावधि मधुमेह का उपचार क्या है :
- गर्भावधि मधुमेह का सबसे पहला इलाज है, सही जीवनशैली और स्वस्थ खानपान। इस दौरान, आपको एक स्वस्थ जीवनशैली अपनाने की ज़रूरत है।
- इसके अलावा, जैसे-जैसे गर्भावस्था बढ़ेगी आपको इंसुलिन की आवश्यकता ज्यादा होगी। इसके लिए डॉक्टर इंसुलिन के इंजेक्शन दे सकते हैं। सामान्य मधुमेह में दी जाने वालीं कई दवाइयां गर्भावस्था में लेनी सुरक्षित नहीं होती, इसलिए इंसुलिन के इन्जेक्शन लेना ज़रूरी हो जाता है (11)। इसके अलावा, डॉक्टर मेटफॉर्मिन नामक दवा भी दे सकते हैं (12)।
गर्भावस्था में मधुमेह का प्रबंधन
अगर आप थोड़ी-सी सावधानी बरतें, तो गर्भावधि मधुमेह को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए नीचे हम कुछ टिप्स दे रहे हैं, जो आपके काम आ सकते हैं :
- रक्त शर्करा पर नज़र बनाएं : अगर आपको गर्भावधि मधुमेह है, तो दिन में तीन से चार बार आप अपनी रक्त शर्करा की जांच करें। इससे आपको रक्त शर्करा नियंत्रित रखने में मदद मिलेगी।
- बच्चे पर ध्यान दें : अगर किसी को गर्भावधि मधुमेह है, तो बच्चे के जन्म के बाद उसके ब्लड शुगर पर नज़र बनाएं रखें, ताकि उसे यह बीमारी भविष्य में परेशान न करे।
- दवाएं : ज्यादातर मामलों में गर्भावधि मधुमेह के दौरान दवाई लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती, लेकिन परेशानी ज्यादा बढ़ने पर इंसुलिन के इंजेक्शन लेने की सलाह दे सकते हैं। इसलिए, डॉक्टर जो भी दवा दें उसे समय पर लें।
अाइए, अब जानते हैं कि गर्भावस्था में मधुमेह को कैसे रोका जा सकता है।
गर्भावस्था में मधुमेह को कैसे रोकें
यह सच है कि इलाज से बेहतर सावधानी बरतना है। अगर आप पहले से ही ध्यान रखें, तो बड़ी से बड़ी समस्याओं से बचा जा सकता है। ऐसा ही कुछ गर्भावधि मधुमेह के साथ भी है। यहां हम बता रहे हैं कि आप गर्भावस्था में होने वाले मधुमेह को कैसे रोक सकते हैं।
- स्वस्थ खानपान : जब आप गर्भधारण करने की कोशिश कर रही हों, तो अपने खानपान का विशेष ख्याल रखें। गर्भावधि मधुमेह से बचने के लिए स्वस्थ खानपान बेहद ज़रूरी है। आप फाइबर युक्त और कम फैट वाला खाना खाएं। इसके अलावा, तले हुए खाने से परहेज़ करें (13)।
- व्यायाम करें : फिट रहने के लिए व्यायाम ज़रूरी है। ज़रूरी नहीं कि इसके लिए आप जिम जाएं या कड़ी कसरत करें। फिट रहने के लिए नियमित रूप से सैर कर सकते हैं या फिर तैराकी आती है, तो ट्रेनर की देखरेख में इसे भी कर सकते हैं।
- वज़न नियंत्रित रखें : अगर गर्भावस्था से पहले आपका वज़न सामान्य से ज्यादा है, तो पहले अपना वज़न नियंत्रित करें और फिर गर्भधारण की योजना बनाएं।
- लक्षण नज़र आने पर डॉक्टर के पास जाएं : अगर इन सबके बावजूद आपको मधुमेह के लक्षण नज़र आते हैं, तो बिना देरी किए डॉक्टर के पास जाएं और अपनी जांच कराएं।
चलिए, इसके बाद अब नज़र डाल लेते हैं कि गर्भावस्था में शुगर होने पर क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए।
गर्भावस्था में मधुमेह के दौरान आहार की आदतें – क्या खाना चाहिए और क्या नहीं
सही खानपान से मधुमेह को नियंत्रित किया जा सकता है। इसलिए, आप अपने डॉक्टर से अपने लिए सही डाइट प्लान बनवा लें। इसके अलावा, नीचे हम बताने जा रहे हैं कि अगर किसी को गर्भावस्था में मधुमेह हो जाए तो उसे क्या खाना चाहिए और किन चीज़ों से परहेज करना चाहिए। आइए जानते हैं, इस दौरान क्या खाना चाहिए (14):
- अनाज जिनमें भरपूर मात्रा में फाइबर हो, जैसे साबुत अनाज खाना चाहिए।
- हरी सब्जियों व फलियों आदि का सेवन करना चाहिए।
- फल, दूध व योगर्ट (एक तरह का दही) खाना फायदेमंद रहेगा।
- मछली, अंडे, मीट, टोफू व नट्स खाएं।
- बेहतर होगा कि आप दिन में थोड़ा-थोड़ा करके तीन बार खाना खाएं और दो बार स्नैक्स लें।
गर्भावधि मधुमेह में कितना कार्बोहाइड्रेट लें?
गर्भावधि मधुमेह में कार्बोहाइड्रेट लेना ज़रूरी है। यहां जानिए कि इस दौरान आपको कितना कार्बोहाइड्रेट लेना चाहिए (14)।
- तीनाें समय के भोजन में कार्बोहाइड्रेट से युक्त दो से तीन खाद्य पदार्थ (लगभग 30-45 ग्राम)।
- स्नैक्स में एक से दो चीज़ें कार्बोहाइड्रेट वालीं (लगभग 15-30 ग्राम)।
गर्भावस्था में मधुमेह के दौरान क्या न खाएं
- कोल्ड ड्रिंक, कैंडी व टॉफी से परहेज़ करें।
- ऐसी चीज़ें न खाएं जिनमें बहुत तेज़ मीठा हो।
- जैम और शहद से परहेज़ करें।
- बेक की गई चीज़ें जैसे केक व मफिंस से दूर रहें।
- फास्ट फूड बिल्कुल न खाएं।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल :
क्या जन्म के बाद भी गर्भावस्था के दौरान रही मधुमेह मेरे बच्चे को प्रभावित करेगी?
जिन महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान मधुमेह होता है, उनके बच्चे को टाइप-2 डायबिटीज होने का खतरा रहता है। बच्चे के जन्म के बाद जब तक शिशु के शरीर में इंसुलिन का उत्पादन संतुलित नहीं हो जाता, तब तक उसके शरीर में शर्करा की कमी आ सकती है। इस अवस्था को हाइपोग्लाइसीमिया कहा जाता है (11)। ऐसे में शिशु के जन्म के बाद डॉक्टर नवजात कक्ष में शिशु के ब्लड शुगर की निगरानी कर सकते हैं।
क्या बच्चे के जन्म के बाद भी मुझे डायबिटीज रहेगी?
डिलीवरी के बाद डायबिटीज खुद-ब-खुद दूर हो जाती है। जब शिशु का जन्म होता है, तो अस्पताल से जाने के पहले डॉक्टर मधुमेह की जांच करते हैं। इसके अलावा, प्रसव के बाद छह सप्ताह में होने वाली जांच में मधुमेह की जांच की जा सकती है (15)।
अगर मुझे पहली गर्भावस्था में मधुमेह थी, तो क्या ये दूसरी गर्भावस्था में भी हो सकती है?
ऐसा हो सकता है, लेकिन हर बार ऐसा होना ज़रूरी नहीं है। अगर पिछली गर्भावस्था में इंसुलिन दिया गया हो, तो दूसरी गर्भावस्था में इसके होने की आशंका ज्यादा हो सकती है। इसके अलावा, पहले की गर्भावस्था में हुई डायबिटीज के बाद दूसरी गर्भावस्था के दौरान डॉक्टर रक्त शर्करा पर नज़र बनाए रख सकते हैं। 16वें से 18वें सप्ताह की गर्भावस्था के बीच ग्लूकोज टोलरेंस टेस्ट करवाया जा सकता है। अगर परिणाम सकारात्मक आए, तो 28वें सप्ताह में फिर से जांच की जा सकती है।
इस लेख में हमने गर्भावधि मधुमेह के बारे में ज़रूरी जानकारी दी, जिसके बारे में जानना गर्भवती के लिए बेहद जरूरी है। हम उम्मीद करते हैं कि इससे संबंधित सभी जवाब आपको मिल गए होंगे। अगर फिर भी इस बारे में आपको किसी अन्य सवाल का जवाब जानना है, तो हमसे कमेंट बॉक्स में ज़रूर पूछें।
संदर्भ (References) :
2. Gestational Diabetes By Medline Plus
3. Maternal gestational diabetes, birth weight, and adolescent obesity.By Ncbi
4. Preterm delivery in women with pregestational diabetes mellitus or chronic hypertension relative to women with uncomplicated pregnancies. By Ncbi
5. Gestational Diabetes Mellitus By Clinical diabetes
6. Gestational diabetes and the incidence of type 2 diabetes: a systematic review.By Ncbi
7. The Risk of Stillbirth and Infant Death Stratified by Gestational Age in Women with Gestational Diabetes By Ncbi
8. Gestational diabetes By missouri department of health and senior services
9. Diabetic family history is an isolated risk factor for gestational diabetes after 30 years of age. By Ncbi
10. Maternal obesity as a risk factor in gestational diabetes. By Ncbi
11. Diabetes – gestational By Better health channel
12. Gestational diabetes mellitus By Ncbi
13. Pre-pregnancy fried food consumption and the risk of gestational diabetes mellitus: a prospective cohort study.By Ncbi
14. Healthy Eating for Gestational Diabetes By Women’s and children’s hospital
15. Gestational Diabetes and Pregnancy By centers for disease control and prevention
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