जन्म के समय शिशु का वजन कम होने के पीछे हैं ये 6 कारण

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गर्भावस्था के दौरान किसी भी छोटे बच्चे देखकर आपके मन में अक्सर यह सवाल उठता होगा कि जब मैं अपने नन्हे-मुन्ने को गोद में लूंगी, तो वह कैसा दिखेगा। उसकी आंखें कैसी होंगी, उसका चेहरा कैसा होगा? उसके छोटे-छोटे पैर और हाथों को लेकर आपके मन में कई सपने सजते होंगे। साथ ही एक डर भी लगा रहता है कि ऐसा कुछ न हो जाए, जिससे मेरे बच्चे को कोई तकलीफ हो। यह सोच बिल्कुल सही भी है, क्योंकि इस दौरान मां की हर एक्टिविटी होने वाले शिशु के स्वास्थ्य पर असर डाल सकती है। कुछ मामलों में तो शिशु कम वजन के साथ पैदा होते हैं। कम वजन और हाइट वाले शिशुओं को स्माल फॉर जेस्टेशनल एज (SGA) या लो बर्थ वेट कहा जाता है (1)। आखिर ऐसा कैसे होता है, आइए जानते हैं।

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1. समय से पहले प्रसव

आमतौर पर गर्भवती महिला की डिलीवरी 37- 40 हफ्तों के बीच होती हैं, जिसे फुल टर्म डिलीवरी कहते हैं। वहीं, कुछ मामलों में महिला का प्रसव 37वें हफ्ते से पहले ही हो जाता है। इन मामलों में भ्रूण को पूरी तरह से विकसित होने का समय नहीं मिल पाता, जिस कारण जन्म के समय उसका वजन कम रह जाता है (2)। प्रीमेच्योर डिलीवरी के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जो ज्यादातर गर्भवती महिला के जीवनशैली से जुड़े होते हैं।

2. कुपोषण

इस बात को तो आप भी मानती होंगी कि गर्भावस्था के दौरान सही पोषण न लेने से गर्भवती महिला और होने वाले शिशु की सेहत पर असर पड़ता है। इसलिए, गर्भावस्था के दौरान संतुलित आहार जैसे – हरी सब्जियां, ड्राई फ्रूट्स, फल और जरूरी सप्लीमेंट्स का सेवन न करें, तो भ्रूण का विकास ठीक तरह से नहीं हो पाता, जिससे जन्म के समय उनका वजन कम रह सकता है।

3. आनुवंशिक कारक

गर्भावस्था के दौरान मां का वजन भी सही रहना जरूरी है। दरअसल, बताया जाता है कि अगर शिशु के माता-पिता (दोनों) या दोनों में से कोई एक अंडरवेट या अंडरहाइट है और उनके जीन शिशु में आते हैं, तो जन्म के समय शिशु का वजन भी कम रहने की आशंका रहती है। अब यह हर केस में ऐसा हो, जरूरी नहीं है। कुछ मामलों में शिशु पूरी तरह स्वस्थ जन्म भी ले सकता है (3)।

4. धूम्रपान और ड्रग्स

अगर किसी महिला को धूम्रपान की आदत है, तो उसे गर्भावस्था के समय ऐसा नहीं करना चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि धूम्रपान के जरिए निकोटीन, कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे हानिकारक केमिकल भ्रूण के शरीर में जा सकते हैं। ये जन्म के समय कम वजन और उसके अन्य कारण जैसे प्रीमेच्योर डिलीवरी की वजह बन सकते हैं (4)।

5. उच्च रक्तचाप

गर्भावस्था के दौरान ज्यादा टेंशन लेने से बीपी बढ़ सकता है, जिससे होने वाले शिशु को नुकसान हो सकता है। जी हां, गर्भावस्था के दौरान महिला का उच्च रक्तचाप शिशु के वजन पर प्रभाव डाल सकता है। इसका मतलब यह नहीं कि सारी टेंशन अपने पति को दे दी जाए, क्योंकि पैरेंटल हाइपरटेंशन भी लो बर्थ वेट का एक जोखिम कारक हो सकता है (5)। इसलिए, गर्भावस्था के समय को पति और पत्नी दोनों को खुलकर इंजॉय करना चाहिए।

6. जुड़वां या उससे अधिक की गर्भावस्था

जब महिला के गर्भ में एक से अधिक भ्रूण होते हैं, तो उन्हें एक साथ बढ़ने के लिए भरपूर जगह और पोषण नहीं मिल पाता। यही कारण है कि जन्म के समय उनका वजन सामान्य से कम हो सकता है। यह जानकार शायद आपको हैरान होगी कि लो बर्थ वेट के 30 प्रतिशत मामलों में कारण जुड़वां या उससे अधिक की गर्भावस्था होती है (6)।

घबराइए मत, ये समस्याएं ऐसी नहीं कि इनसे बचा न जा सके। बस आप अपना और होने वाले शिशु को पूरा ध्यान रखें, अच्छा खाएं, अच्छा सोचिए और स्वस्थ रहिए। फिर भी अगर किसी को डिलीवरी के बाद ऐसी समस्या का सामना करना पड़ता है, तो नवजात की अच्छी देखभाल करके उसके वजन और हाइट को बढ़ाया जा सकता है।

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