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बच्चों के पेट दर्द का इलाज व घरेलू उपचार | Navjat Shishu Ke Pet Dard Ka Ilaj

पेट दर्द किसी को भी हो सकता है, लेकिन शिशु के लिए यह समस्या गंभीर हो जाती है। उसके लिए बोलकर समझना मुश्किल होता है। ऐसे में माता-पिता को उसके हाव-भाव, रोने व पेट की कोमलता को चेक करके अंदाजा लगाना पड़ता है कि शिशु को पेट से संबंधित कोई समस्या है। मॉमजंक्शन के इस आर्टिकल में हम शिशुओं को पेट में होने वाले दर्द के बारे में ही बात करेंगे। साथ ही यह भी जानेंगे कि माता-पिता किस प्रकार से पता लगा सकते हैं कि शिशु के पेट में कोई समस्या है। इसके अलावा, शिशु की इस समस्या को ठीक करने के लिए कुछ घरेलू उपचारों के बारे में भी चर्चा करेंगे।

In This Article

शिशुओं में पेट दर्द होने के लक्षण | Baby Ke Pet Mai Dard Ke Lakshan

शिशुओं में पेट दर्द होने के कई तरह के लक्षण हो सकते हैं। इनमें से कुछ के बारे में हम नीचे बता रहे हैं (1)):

  • शिशु का ठीक से न खाना: आपका शिशु ठीक से नहीं खाता है या फिर दूध पीते-पीते बीच में ही छोड़ देता है।
  • शिशु का पेट पर हाथ रगड़ना: अगर शिशु खाने के बाद पेट पर हाथ फेरे, तो वह दर्द की वजह से हो सकता है।
  • शिशु दर्द को व्यक्त करते हुए अपने पैरों को मोड़े: शिशु पैरों को पेट की तरफ मोड़ते हैं, जो स्वभाविक है। अगर वह ऐसा बार-बार कर रहा है, तो यह पेट दर्द का संकेत हो सकता है।
  • शिशु के पेट पर छूने से दर्द होना: कभी-कभी शिशु के पेट की मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं, जिस कारण उसे पेट दर्द होने लगता है। ऐसे में अगर आप उसके पेट पर हाथ भी लगाएंगी, तो उसे दर्द हो सकता है और वो रोने लग सकता है।
  • शिशु का सामान्य से अधिक रोना: अगर शिशु सामान्य से अधिक रोए, तो यह पेट दर्द का कारण हो सकता है।

नोट :  ये सभी लक्षण केवल पेट दर्द के संकेत हैं। अगर कभी भी बच्चे में इस प्रकार के लक्षण दिखें, तो डॉक्टर से जरूर मिलें क्योंकि ये किसी अन्य गंभीर बीमारी की तरफ इशारा कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, दूध पीते वक्त रुक जाना या रुक-रुक कर दूध पिना हृदय रोग का संकेत हो सकता है।

आगे हम बता रहे हैं कि किन स्थितियों में बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।

शिशु के पेट में दर्द के लिए डॉक्टर के पास कब जाना चाहिए?

कुछ स्थितियां ऐसी होती हैं, जिनमें शिशु की अवस्था गंभीर हो जाती है। ऐसे में उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। नीचे हम कुछ ऐसी ही अवस्थाओं के बारे में बता रहे हैं (2):

  1. मल में खून आना या उल्टी : अगर आपके बच्चे को मल में खून या उल्टी आने के साथ पेट में दर्द होता है, तो आप नजरअंदाज न करें।
  1. पेट दर्द के साथ दस्त व तेज बुखार: गैस्ट्रोएंटेराइटिस संक्रमण होने पर शिशु को दस्त के साथ पेट में दर्द होता है। कई बार शिशु को बुखार भी हो सकता है। इस अवस्था में तुरंत इलाज की जरूरत होती है।
  1. दूध पिलाने और सुलाने में कठिनाई होना : अगर पेट दर्द की वजह से बच्चे को दूध पिलाना मुश्किल हो जाए या फिर बच्चा पूरी नींद न ले।
  1. पेट में सूजन : संक्रमण, चोट या फिर किसी अन्य कारण से शिशु के पेट में सूजन आ सकती है। इस अवस्था में उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं।
  1. शरीर में पानी की कमी : दस्त होने पर शरीर में पानी की कमी हो जाती है। यह स्थिति शिशु के लिए बहुत गंभीर हो सकती है। अगर बच्चा बहुत सुस्त हो जाता है, तो इसके पीछे सेप्सिस (खून में संक्रमण की गंभीर बीमारी) या संक्रमण हो सकता है।

आइए, अब यह जान लेते हैं कि शिशु को पेट दर्द किन कारणों से होता है।

शिशु के पेट दर्द के कारण और इलाज | Bacho Ke Pet Me Dard Ka Ilaj

शिशु को पेट में दर्द मुख्य रूप से किन कारणों से होता है और उसका इलाज क्या है, इस बारे में हम यहां विस्तार से बता रहे हैं।

1. पेट या आंतों में संक्रमण

बच्चों के पेट या आंतों में दर्द, बैक्टीरिया के कारण होता है। नीचे पेट दर्द करने वाले बैक्टीरिया के बारे में बताया जा रहा है:

  • रोटावायरस : रोटावायरस में शिशु गैस्ट्रोएंटेराइटिस (आंतों में होने वाली गैस) की वजह से परेशान रहता है (3)। इस वायरस के चलते शिशु को दस्त व उल्टी के साथ पेट में तेज दर्द होता है। इसकी वजह से आपके बच्चे को थकावट महसूस हो सकती है। बच्चे में पानी की कमी भी हो जाती है। छह महीने से ज्यादा उम्र वाले बच्चे दूषित भोजन करने के कारण इस वायरस के शिकार होते हैं, जबकि स्तनपान करने वाले शिशु को धूल-मिट्टी या दूषित चीजों के संपर्क में आने पर यह संक्रमण हो सकता है। रोटावायरस संक्रमण दुनिया में शिशु मृत्यु दर का प्रमुख कारण है (4)

इलाज : रोटावायरस में अगर शिशु को दस्त होता है तो उसे फ्लूएड चढ़ाया जाता है। इसके अलावा पानी, चीनी और नमक का घोल तैयार करके भी पिलाया जा सकता है (5)। कोशिश करें कि डब्ल्यूएचओ प्रमाणित ओआरएस ही दें। अगर घर में नमक, चीनी और पानी का घोल तैयार कर रहें हैं, तो दिशा-निर्देशों का बहुत सटीक रूप से पालन करें क्योंकि नमक या चीनी की थोड़ी-सी भी गलत मात्रा दस्त की समस्या को बढ़ा भी सकती है।

  • साल्मोनेला : इसमें बच्चे की आंतें संक्रमित होती हैं और पेट में खिंचाव होता है, जिस कारण बच्चे को पेट में दर्द होता है (6)। यह संक्रमण दूषित भोजन और दूषित पानी के सेवन से होता है। अगर बच्चा दूषित चीजों के संपर्क में आए, तो भी बैक्टीरिया पनप सकता है।

इलाज : बच्चे के आस-पास साफ-सफाई रखने से इस संक्रमण को रोकने में कुछ हद तक कामयाबी पाई जा सकती है। डॉक्टर इस दौरान इलाज करने के लिये एंटीबायोटिक्स भी दे सकते हैं (7)

  • स्ट्रेप्टोकोकस : इसमें बच्चे के गले में संक्रमण हो सकता है। अगर बच्चा खांसी या फिर स्ट्रेप्टोकोकस से प्रभावित व्यक्ति के संपर्क में आता है, तो यह बीमारी उसे भी हो सकती है। इसलिए, अगर आपके गले में खराश है, तो अपने बच्चे के साथ खेलने से बचें और मास्क पहनें।

इलाज : इसमें डॉक्टर बच्चे का इलाज करने के लिए दवाइयां देते हैं। दवाइयां शिशु की उम्र और बीमारी को ध्यान में रखकर दी जाती हैं (8)

  • एडीनोवायरस : यह वायरस श्वास नलिका के जरिए आंतों में तेजी से फैलता है। अगर बच्चा नियमित रूप से अपने मुंह में कोई दूषित वस्तु डालता रहे, तो इस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। एडीनोवायरस लंबे समय तक किसी भी चीज पर मौजूद रह सकता है। यह खांसी और छींकने से भी फैल सकता है (9)

इलाज : डॉक्टर इलाज के तौर पर शिशु को एंटीबायोटिक्स दे सकते हैं (10)। साथ ही शिशु को दूषित जगह व वस्तुओं से दूर रखना चाहिए। माता-पिता को नियमित रूप से हाथ धोने चाहिए और बच्चे के खिलौने समय-समय पर साफ करने चाहिए।

  • बोटुलिज्म : यह संक्रमण आंत में बैक्टीरिया के कारण होता है, जो दूषित भोजन के सेवन से बच्चे को हो सकता है। इससे शिशु सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। इसमें शिशु को पेट में ऐंठन हो सकती है।

इलाज: इसका उपचार करते समय बच्चे को एंटीटॉक्सिन दे सकते हैं और शिशु के खाने-पीने का भी ध्यान रखा जाता है (11)

  • पैरासिटिक संक्रमण : यह उन शिशुओं में सबसे अधिक होता है, जो ज्यादा ठोस खाना खाते हैं। यह जियार्डिया लैम्बलिया (एक प्रकार का जीवाणु) के कारण होता है, जो गंदे पानी और दूषित भोजन के साथ शिशु के पेट में जाता है और बीमार कर सकता है (12)

नोट : ये सभी संक्रमण वयस्कों को भी हो सकते हैं, लेकिन शिशुओं का इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, इसलिए वो जल्दी इनकी चपेट में आ जाते हैं।

2. कोलिक

इसमें शिशु को गैस बनती है, जिस कारण उसे पेट में दर्द होता है। इस अवस्था में शिशु ज्यादा रोता है। कोलिन 5 महीने तक की आयु के शिशुओं को हो सकता है। अगर आपका शिशु दिनभर में लगभग 2 घंटे रोए, तो उसके रोने का कारण गैस हो सकती है (13)

उपचार : शिशु की आयु के अनुसार उसका उपचार किया जाता है। डॉक्टर शिशु को सिमेथीकॉन दे सकते हैं। इससे पेट के अंदर की गैस बाहर निकल जाती है।

3. खाने से एलर्जी होना

शिशु को खाने से एलर्जी तब होती है, जब बच्चे का इम्यून सिस्टम सही से काम नहीं करता है। वहीं, जब शिशु खाने को सही से नहीं पचा पाता है, तब वह खाने से मना कर देता है। दोनों मामलों में पेट में दर्द होता है (14)। इस स्थिति में वो शिशु ज्यादा प्रभावित होते हैं, जो नई चीजों को खाने की कोशिश करते हैं। कभी-कभी स्तनपान करने वाले बच्चे भी ऐसा व्यवहार कर सकते हैं।

उपचार : इसका सबसे अच्छा उपाय यह है कि बच्चों को एलर्जी वाले खाने से दूर रखा जाए। इसके अलावा, अगर बच्चा एलर्जी वाले खाने को किसी दूसरे खाने के साथ मिक्स करके खाए, तो भी कुछ हद तक फायदा हो सकता है।

4. गैस्ट्रोएसोफेगल रिफ्लक्स

गैस्ट्रोएसोफेगल रिफ्लक्स (GERD), एक ऐसी स्थिति है, जिसमें पेट से एसिड वापस एसोफैगस (भोजन नली) में आने लगता है, जिसके परिणामस्वरूप बेचैनी और परेशानी हो सकती है  (15)

उपचार : शिशु की उम्र और स्थिति की गंभीरता को समझते हुए शिशु का उपचार किया जाता है। डॉक्टर शिशु को खाना खिलाने के बाद गोदी में सीधा रखकर उसकी पीठ को हल्के से सहलाने के लिए कह सकते हैं (16)। इसके अलावा, रिफ्लक्स से बचने के लिए शिशुओं को खिलाने के दौरान उनके सिर को सीने के स्तर से थोड़ा ऊपर उठाकर खिलाएं।

5. एपेंडिसाइटिस

इस अवस्था में पेट के निचले हिस्से में सूजन आ जाती है। पेट के अंदर दबाव बढ़ने से पेट के निचले दाएं कोने में तेज दर्द होता है। दर्द इतना तीव्र होता है कि शिशु लगातार रोता रहता है (17) (18)

उपचार : इस स्थिति का इलाज करवाने के लिए शीघ्र चिकित्सा की जरूरत होती है। देरी करने पर एपेंडिक्स फट भी सकता है।

6. आंत में रुकावट

आंत में दो प्रकार की रुकावटें होती हैं:

  • पाइलोरिक स्टेनोसिस : पाइलोरिक स्टेनोसिस (उल्टी और मतली) तब होता है, जब पेट के निचले हिस्से की मांसपेशियां अचानक बढ़ जाती हैं। इससे भोजन का प्रवाह छोटी आंत तक ही सीमित रह जाता है (18)पाइलोरिक स्टेनोसिस एक ऐसी समस्या है जो जन्म के समय से लेकर 6 महीने के बीच के बच्चों को प्रभावित करती है। इसमें बच्चे को गंभीर उल्टी होती है, जिससे उन्हें डिहाइड्रेशन हो सकता है। इस स्थिति में शिशु को हर समय भूख लगती है, उल्टी होती है और लगातार पेट में दर्द होता है। सर्जिकल उपचार से इस समस्या को ठीक किया जा सकता है ।

      उपचार: लेप्रोस्कोपी से उपचार किया जाता है।

  • आंत्रावरोध : आंत्रावरोध वह दशा है, जब आंतों में रुकावट आ जाती है। इससे पाचन तंत्र के अंदरूनी हिस्से में सूजन आ जाती है। पेट दर्द, उल्टी और दस्त इस समस्या के कुछ लक्षण हैं। यह रोग शिशुओं में कम ही होता है, लेकिन अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोहन रोग दो आंत्रावरोध वाले रोग हैं, जो शिशुओं को प्रभावित कर सकते हैं (20)। ये समस्याएं ज्यादातर जेनेटिक की वजह से होती हैं।

उपचार : इस स्थिति का कोई निश्चित उपचार नहीं है। सिर्फ दर्द व उससे संबंधित लक्षणों को कम करने के लिए दवा ही दी जाती है।

7. मूत्र संक्रमण :

बच्चों को मूत्र संक्रमण की समस्या भी हो सकती है (21)। इसमें पेट के निचले हिस्से में दर्द होता हैं और पेशाब करते समय शिशु को दिक्कत होती है।

उपचार : इसके लिए एंटीबायोटिक्स ही एकमात्र उपचार है। स्तनपान करने वाले शिशुओं में इंट्रावेनस थेरेपी का उपयोग करके दवा को सीधे रक्त प्रवाह में पहुंचाया जाता है (21)

8. शिशुओं में कब्ज की समस्या

एक साल से छोटे बच्चों में कब्ज आम बात है। इस वजह से उनका मल सख्त होता है, जो मुश्किल से बाहर निकलता है। इससे बच्चे के पेट में सूजन हो जाती है, जिससे पेट में दर्द और ऐंठन होती है (22)

उपचार: जिन बच्चों ने अभी-अभी खाना शुरू किया है, उन्हें सब्जियां, दलिया व ओट्स आदि देने चाहिए। उन्हें पर्याप्त पानी भी पिलाना चाहिए। शिशु की मालिश करने से भी कब्ज ठीक हो सकती है।

9. गैस की समस्या

अगर शिशु दूध पीते समय बोतल की निप्पल को ठीक से नहीं पकड़ता है, तो दूध के साथ हवा भी पेट में चली जाती है। इससे बच्चे को गैस बन सकती है। इस दौरान शिशु बेचैन रहेगा, लेकिन गैस के गुजरने के बाद राहत महसूस करेगा।

उपचार : हालांकि, गैस बनने से शिशु को कोई गंभीर समस्या नहीं होती, लेकिन शिशु के पेट की मालिश करके इस समस्या को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। अगर गैस के कारण शिशु को ज्यादा परेशानी हो रही है, तो डॉक्टर दवा दे सकते हैं।

10. टॉक्सिक पदार्थ खाने से दर्द

शिशु अपने मुंह में कुछ भी सामान डाल लेते हैं, जिस कारण विषैले जीवाणु व टॉक्सिक पदार्थ उनके पेट में चले जाते हैं। इस कारण उनके पेट में इंफेक्शन व दर्द हो सकता है। इससे शिशु को बचाने के लिए तुरंत डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए और सही उपचार करवाना चाहिए।

उपचार : डॉक्टर लक्षणों को देखने और गंभीरता का आंकलन करने के बाद ही टॉक्सिक पदार्थ से निपट सकता है। अगर टॉक्सिक पदार्थ का स्तर अधिक है, तो डॉक्टर बच्चे को उल्टी करवाते हैं। इसके अलावा, बच्चे को ज्यादा पानी भी पिलाया जा सकता है, ताकि वह जल्द टॉक्सिक पदार्थ को बाहर निकाल सके।

11. मोशन सिकनेस

मोशन सिकनेस असामान्य है और इससे पेट दर्द हो सकता है। यह उन शिशुओं में हो सकता है, जो पहली बार हवाई यात्रा कर रहे हों, बस या कार से जा रहे हों या पहली बार लिफ्ट का उपयोग करते हैं। इससे पेट में दर्द व उल्टी हो सकती है।

उपचार: इस दौरान आप उसके साथ खेल सकती हैं, ताकि उसे मोशन सिकनेस से दूर किया जा सके।

12. ज्यादा भूख से दर्द होना

ज्यादा देर तक भूखे रहने से शिशु को पेट दर्द हो सकता है। शिशुओं का शरीर बढ़ता रहता है, इस वजह से वो अपनी भूख को रोक नहीं पाते हैं। वहीं, शिशु अगर ज्यादा दूध पीता है, तो भी उसे पेट दर्द हो सकता है।

उपचार: अगर बच्चे को समय-समय पर खिलाया या दूध पिलाया जाए, तो उसकी भूख रोकी जा सकती है। वहीं, जब आपका बच्चा खाने को उल्टी के जरिए निकाल देता है, तो इसका मतलब यह है कि उसने ज्यादा खा लिया है। डॉक्टर आपको बच्चे के फीडिंग  शेड्यूल के बारे में बेहतर तरीके से बता सकते हैं।

13. शिशुओं को चोट लगना

अक्सर शिशुओं को खेलते हुए चोट लग जाती है। शिशु चलने की कोशिश में फर्श पर पड़ी किसी भी चीज पर गिर सकता है, जिससे पेट पर चोट लग सकती है। इस कारण शिशु के पेट में दर्द हो सकता है।

उपचार: कोशिश करें कि बच्चे को खेलते हुए किसी प्रकार की चोट न लगे। वहीं, अगर आपको लगे कि बच्चे को कोई अंदरूनी चोट लगी है, तो तुरंत डॉक्टर से जांच करवाएं।

शिशु को पेट दर्द में क्या आहार दें?

शिशु को समझदारी से खिलाना-पिलाना चाहिए। कुछ चीजें उन्हें फायदा पहुंचाती हैं और कुछ नुकसान। शिशु को पेट में दर्द होने पर क्या खिलाएं, यहां हम उसी बारे में बता रहे हैं :

  1. स्तनपान : मां के दूध में सभी जरूरी पोषक तत्व होते हैं। इससे बच्चे का पाचन तंत्र अच्छी तरह काम करता है और पेट ठीक रहता है (23)
  1. सब्जियों का सूप : अगर आपका बच्चा छह महीने से ज्यादा उम्र का है, तो आप उसे ताजा घर की बनी सब्जी का सूप पिला सकती हैं। तरल भोजन पेट के लिए आरामदायक होता है।
  1. फलों की पतली प्यूरी: अपने बच्चे को फलों की प्यूरी दें, क्योंकि उनमें प्राकृतिक शर्करा होती है, जो ऊर्जा का अच्छा स्रोत है। इसे बच्चे के लिए पचाना आसान होता है।
  1. बेबी सीरिल : आप चावल, जौ या जई से बना दलिया बच्चे को खिला सकती हैं। इनमें फाइबर की मात्रा अधिक होती है, जिससे कब्ज की समस्या दूर होती है। वहीं, चावल से बने खाद्य पदार्थ भी अच्छे होते हैं, जो ग्लूटन फ्री और पचाने में आसान होते हैं।

शिशुओं में पेट दर्द कितने समय तक रहता है?

शिशुओं में दर्द होने के कई कारण हो सकते हैं और दर्द की अवधि भी उन कारणों पर निर्भर करती है। शिशुओं की उम्र के हिसाब से भी दर्द के कारणों की पहचान की जाती है और उनका समय पर इलाज किया जा सकता है।

घरेलू उपचार से ठीक करें पेट दर्द | Bacho Ke Pet Dard Ka Gharelu Upay

  1. गैस की समस्‍या : अगर स्तनपान करने वाले शिशु को गैस की वजह से पेट में दर्द हो रहा है, तो मां को मेथी का सेवन नहीं करना चाहिए।
  1. डकार : अगर बच्‍चा ज्यादा रो रहा है, तो उसे गोद में बैठाकर या कंधे से लगाकर पेट के निचले हिस्से व पीठ पर हल्‍के हाथ से सहलाएं, ताकि गैस निकल जाए।
  1. हल्के गर्म पानी से नहलाएं : शिशु को हल्के गर्म पानी से नहलाएं। गरम पानी से पेट का दर्द कम होने की संभावना बढ़ जाती है। अपने शिशु को टब में सिर्फ 5-8 मिनट तक के लिये ही बैठाएं और पानी सिर्फ उसके पेट तक ही रखें।
  1. गुनगुना पानी पिलाएं : पेट दर्द में 6 महीने से बड़े शिशुओं को गुनगुना पानी पिलाने की सलाह दी जाती है और इसे देने से कोई साइड इफेक्‍ट नहीं होता है।
  1. मालिश करें : शिशु को पीठ के बल लेटाकर गुनगुने तेल से उसके पेट की मालिश करें।
  1. दही खिलाएं: 6 महीने से बड़े शिशु को आप दही भी खिला सकती हैं। खासतौर पर गर्मियों के दिनों में इससे शिशु के पेट को आराम मिलेगा।
  1. चावल का पानी : 6 महीने से बड़े शिशु को चावल का पानी पिलाने से पेट में ठंडक मिलती है और दर्द में भी राहत मिलती है।
  1. हींग : बच्चों के पेट में दर्द होने पर थोड़ी-सी हींग पेट पर मलने से भी दर्द से राहत मिल सकती है। आजकल बाजार में इसके रोल-ऑन भी आसानी से उपलब्ध हैं।

शिशु के पेट दर्द को कैसे रोकें?

आपके शिशु के पेट में दर्द न हो, इसके लिए सावधानियां बरतनी भी जरूरी हैं। इस संबंध में हम यहां कुछ जरूरी टिप्स दे रहे हैं (24):

  1. स्वच्छ और साफ भोजन : हाइजेनिक भोजन उन रोगजनकों से मुक्त होता है, जो दूषित भोजन और पानी से फैलते हैं। अपने शिशु के भोजन को हाइजेनिक वातावरण में तैयार करें। हमेशा खाना बनाने से पहले हाथों को अच्छी तरह धोएं और फलों व सब्जियों को भी पानी से साफ करके ही बनाएं।
  1. एलर्जी से शिशु को बचाएं : आपके बच्चे को किस तरह के खाने से एलर्जी होती है, उसे समझें।
  1. बच्चे को ठीक से दूध पिलाएं : हर बार जब बच्चा स्तनपान करता है, तो ध्यान रखें कि दूध के साथ हवा उसके मुंह में न जाए।
  1. बच्चे की स्वच्छता पर बहुत ध्यान दें : अक्सर शिशु हाथ में आए किसी भी सामान को मुंह में डाल लेते हैं। इससे रोगाणु बच्चे के मुंह और पेट में प्रवेश करते हैं। इसलिए, घर को साफ रखें और ध्यान रखें कि बच्चा कुछ भी अपने मुंह में न डाल ले। साथ ही बच्चे को नियमित रूप से स्नान करवाएं, ताकि उस पर लगी धूल-मिट्टी साफ होती रहे।
  1. गैस बनाने वाले आहार : स्तनपान कराने वाली माताएं प्याज, पत्ता गोभी, लहसुन, ब्रोकली, खीरा, लाल मिर्च, और काली मिर्च का सेवन कम ही करें, ताकि शिशु को गैस न बने।

पेट का दर्द शिशु के लिए दर्दनाक हो सकता है, जो गंभीर स्वास्थ्य समस्या का कारण भी बन सकता है। इसलिए, सावधानी बरतने और सही समय पर डॉक्टरी उपचार के जरिए बच्चों में पेट दर्द की समस्या को ठीक किया जा सकता है। वहीं, जागरूक रहने के लिए लेख में दी गई जानकारी को अच्छी तरह जरूर पढ़ें। आप चाहें, तो इस लेख को अन्य लोगों के साथ भी साझा कर सकते हैं। उम्मीद करते हैं कि यह लेख आपके शिशु के बेहतर स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होगा।

References:

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